EXCLUSIVE: अभिनेता घनश्याम गर्ग ने सुनाई सीरीज ‘छोटे यादव’ का नाम बदलकर ‘बिंदिया के बाहुबली’ करने की इनसाइड स्टोरी...
वेब-सीरीज ‘बिंदिया के बाहुबली’ शुरू में ‘छोटे यादव’ के नाम से बन रही थी, लेकिन कानूनी और इनवेस्टिगेशन टीम के सुझाव पर नाम बदला गया. इस सीरीज की शूटिंग कोरोना काल में लखनऊ में हुई, जिसमें दमदार अभिनय और कहानी दर्शकों को बांधे रखती है. सौरभ शुक्ला, रणवीर शौरी, सुशांत सिंह, घनश्याम गर्ग जैसे कलाकारों ने शानदार प्रदर्शन किया. कहानी छोटे कस्बे की राजनीति, दबंगई और माफिया-डॉन ड्रामे पर आधारित है.
हाल ही में रिलीज हुई वेब-सीरीज ‘बिंदिया के बाहुबली’ शुरूआती दौर में चर्चाओं में आ गई है. दमदार स्टोरी, स्क्रिप्ट तो है ही. साथ ही इसमें मौजूद कलाकार सौरभ शुक्ला, रणवीर शौरी, सुशांत सिंह, सीमा बिश्वास (बैंडिट क्वीन फेम), शीबा चड्ढा, विनीत कुमार, तनिष्ठा चटर्ची और गोविंद नामदेव, क्रांति प्रकाश झा, योगेंद्र विक्रम सिंह, विनीत कुमार, घनश्याम गर्ग, की गजब की एक्टिंग ने भी कमाल कर डाला है. राज अमित कुमार द्वारा निर्देशित और इस वक्त एमएक्स प्लेयर पर मौजूद इस बेव सीरीज को बस एक बार देखने बैठ जाइए, तो इसकी कहानी और कलाकार आपको स्क्रीन से हटने ही नहीं देते हैं. आखिर क्यों?
इस सवाल के जवाब के लिए स्टेट मिरर हिंदी के नई दिल्ली में मौजूद एडिटर इनवेस्टीगेशन ने गुरुवार (28 अगस्त 2025) को एक्सक्सूलिव बात की, इन तमाम मंझे हुए कलाकारों की टोली में शामिल सीरीज में दारोगा-सब इंस्पेक्टर दीन बिहारी की दमदार भूमिका निभाने वाले और इस वक्त माया नगरी मुंबई में मौजूद घनश्याम गर्ग से. पावर, पॉलिटिक्स मनोरंजन से भरपूर इस सीरीज को देखने बैठिए तो बस आपको 10-15 मिनट शुरू के, कहानी समझने के लिए सब्र के साथ देने होंगे. उसके बाद तो आप अपने घर-परिवार के बाकी यार-दोस्तों-सदस्यों को भी सीरीज देखने वाली टोली में शामिल किए बिना नहीं रह सकते हैं.
एक्सक्लूसिव बातचीत के दौरान सीरीज के सह-अभिनेता और सीरीज में दारोगा दीन बिहारी की भूमिका निभाने वाले घनश्याम गर्ग कहते हैं, “दरअसल यह सिर्फ खाने-कमाने भर तक वाली सीरीज नहीं है. इस सीरीज की शूटिंग के पीछे सबसे खतरनाक किस्सा यह जुड़ा है कि इसकी शूटिंग भरे भयंकर कोरोना काल में हुई है. जब दुनिया का हर इंसान अपनी एक एक सांस की भीख मांग रहा था. उस रूह कंपा देने वाले दौर में बिंदिया के बाहुबली की यूनिट लखनऊ में शूटिंग कर रही थी.”
सौरभ शुक्ला और रणवीर शौरी खींच रहे दर्शक
आज की OTT वाली दुनिया में बगैर ‘बाहुबली’ और ‘देसी तड़का’ का कॉकटेल के कोई सीरीजि बाजार में सफल ही नहीं हो सकती है. तो फिर भला ‘बिंदिया के बाहुबली’ में यह सब शामिल क्यों नहीं किया जाता है. सो इसमें भी छोटे शहरों की ओछी-मतलब-परस्ती वाली राजनीति की झलक, माफिया-डॉन, फैमली ड्रामे का कॉकटेल भरपूर मात्रा में समाहित है. भले ही इस सीरीज को शुरू में चेतावनी क्यों न दी गई हो कि सीरीज में गाली-गलौज मौजूद है सावधानी से देखें. इसके बाद भी सौरभ शुक्ला और रणवीर शौरी की दमदार एक्टिंग को देखने लोग इस सीरीज तक पहुंच ही रहे हैं.
कोरोना काल में हुई शूटिंग
कोरोना काल में जब इस मायावी दुनिया का हर इंसान अपनी जिंदगी-सांसों की भीख मांगने की जद्दो-जहद में जूझता हुआ हांफ रहा था, तब भी ‘बिंदिया के बाहुबली’ जैसी सीरीज की शूटिंग क्यों नहीं रोकी गई? इस कदर का खतरा मोल लेने की क्या जरूरत थी? क्या सीरीज की 'कास्ट-क्रू' के जीवन से बढ़कर था, सीरीज की शूटिंग पूरी करना? स्टेट मिरर हिंदी के बेहद टेढ़े सवाल के सीधे-सपाट जवाब में वेब-सीरीज में सब-इंस्पेक्टर थानेदार दीन बिहारी की दमदार भूमिका में अपने अभिनय की अलग ही छाप छोड़ने वाले घनश्याम गर्ग बोले, “दरअसल उस वक्त इसी शूटिंग का शेड्यूल पहले से बना हुआ था. कलाकारों की भी अपनी अपनी कुछ निजी जिम्मेदारियां थीं. शूटिंग को बीच में छोड़ने का मतलब था एकजुट होकर जुटी पूरी टीम के तितर-बितर होते ही, सीरीज की शूटिंग अंतहीन समय तक के लिए फंस जाना. और यह भी तय नहीं था कि कोरोना जैसी महामारी खतम कब तक होगी. लिहाजा सामूहिक फैसला लिया गया कि, जैसे भी हो सबकी हिफाजत के ख्याल को प्राथमिकता देते हुए सीरीज की शूटिंग को पूरा ही किया जाए. जहां तक मैं अगर अपनी निजी बात करूं तो मेरे सामने तो पेट की भूख शांत करने और परिवार को पालने का सवाल मुंह बाए खड़ा था.”
Image Credit: IMDB
चूंकि सीरीज के नाम के साथ ‘बाहुबली’ जुड़ा है. तो ऐसे में जाहिर सी बात है कि इस शब्द के आगे-पीछे कोई “धार्मिक और संस्कारी ज्ञान की बातें या श्लोक” तो नहीं ही लिखे-जुड़े होंगे. लिहाजा यही वजह है कि सीरीज निर्माताओं ने सीरीज के शुरू में ही चेतावनी दे दी है कि, सीरीज को हेडफोन लगाकर ही देखें. कहने-देखने और दर्शकों को बांधे रखने की गरज से सीरीज में ह्यूमर-हंसी-मजाक का भी बीच बीच में तड़का लगाया गया है. ताकि दर्शक सिर्फ बदमाशी, पुलिस थाना चौकी गाली-गलौज देखते-सुनते सुनते बोर न हो जाए. और सीरीज के बिजनेस का भट्ठा ही बैठ जाए.
मुंबई की भीड़ में मौके सबके पास आते हैं
साल 1999-2000 के दौर में स्टेज-मंच से अभिनय की बारीकियां सीखने-परखने की शुरूआत करने वाले घनश्याम गर्ग आज मंझे हुए कलाकारों में शुमार हो चुके हैं. अब वे चकाचौंध वाली मुंबई की भीड़ में भी साबित करने में कामयाब हो चुके हैं कि, “मुंबई की भीड़ में मौके सबके पास आते हैं. आप कितने सब्र और सजगता के साथ हाथ आए मौके को कब और कैसे फुर्ती से लपक पाते हैं? इसकी जिम्मेदारी हुनरमंद कलाकार की खुद की है. अभिनय का काम पाने की उम्मीद वाली लंबी लाइन में लगे रहने के दौरान, अगर आप ऊब-थककर अगर चाय या पानी पीने भी चले गए, तो समझिए वही मौका आपको मुंबई की चकाचौंध वाली अभिनय की दुनिया में काम दिलाने का आएगा. चूंकि आपने सब्र और मौका दोनों ही खुद ही खो दिए होते हैं. तो ऐसे में मुंबई की भीड़ में किसी को इतनी फुर्सत नहीं है कि जो कोई आपको यहां काम देने के लिए आवाज देकर पुकारेगा-बुलाएगा. यह तो जरुरतमंद को ही करना है कि वह सब्र के साथ मौके की तलाश वाली लाइन से बाहर न निकल जाए.”
‘बिंदिया के बाहुबली’ की इनसाइड स्टोरी
स्टेट मिरर हिंदी के साथ विशेष बातचीत के दौरान एक सवाल के जवाब में ‘बिंदिया के बाहुबली’ की इनसाइड स्टोरी भी सीरीज के सब इंस्पेक्टर दीन बिहारी और मंझे हुए सह-अभिनेता घनश्याम गर्ग बताते हैं, “दरअसल यह 95 फीसदी सच्ची कहानी पर आधारित सीरीज है. हां, पांच फीसदी स्क्रिप्ट इसमें जो कुछ मौजूद है वह, कहानी को अंत तक पहुंचाने और दर्शकों को सीरीज के साथ ऑन-स्क्रीन बनाए रखने के लिए जोड़ा भी गया है. कह सकता हूं कि सीरीज सच्ची घटना पर आधारित है.” सुना है कि इस सीरीज का नाम पहले 'छोटे यादव' रखा गया था, अगर स्टेट मिरर हिंदी के पास मौजूद यह जानकारी सही है तो फिर सवाल यह कि, नाम बदलकर 'बिंदिया के बाहुबली' ही क्यों रखा गया?
इस वजह से बदला सीरीज का नाम
दोनों ही सवाल के जवाब विस्तार से देते हुए अभिनेता घनश्याम गर्ग कहते हैं, “हां, स्टेट मिरर हिंदी के इस सवाल में दम है कि सीरीज का शुरूआती दौर में नाम छोटे-यादव रखा गया था. बाद में निर्माताओं की इनवेस्टीगेटिव और कानूनी टीम ने जब कुछ इनपुट दिया कि, छोटे-यादव को लेकर सीरीज की रिलीज लफड़े में पड़-फंस सकती है. तब सामूहिक फैसले से तय हुआ कि छोटे यादव को बदलकर नाम 'बिंदिया के बाहुबली' कर दिया जाए. सीरीज के नाम में मौजूद 'बिंदिया' दरअसल स्त्रीलिंग है जरूर मगर कहानी/स्क्रिप्ट में यह कोई स्त्री-महिला या लड़की नहीं है. बिंदिया किसी जगह का नाम है. बिंदिया के बाहुबली यानी बिंदिया जगह के बाहुबली, से है तात्पर्य न कि किसी महिला या स्त्री अथवा लड़की से बिंदिया का कोई ताल्लुक है.”
घर फूंक के तमाशा कोई नहीं देखता
वेब-सीरीज 'बिंदिया के बाहुबली' में निर्देशक राज अमित कुमार बाकी तमाम मौजूद सीरिजों से अलग नहीं दिखा पाए हैं. जैसी मारधाड़-गाली-गलौज-पावर पॉलिटिक्स की कहानियां अन्य सीरीजों में 'जबरन ठूंसी' गई हैं, उसी तरह से 'बिंदिया के बाहुबली' भरी गई है? पूछने पर अभिनेता घनश्याम गर्ग कहते हैं, “इस बारे में मुझे कुछ नहीं कहना चाहिए क्योंकि मैं निर्देशक, मार्केट एडवाइजर, फाइनेंसर तो हूं नहीं. मैं तो एक कलाकार हूं. जिसे सिर्फ अपने अभिनय तक सीमित रहना चाहिए. जहां तक आपने चूंकि बिंदिया के बाहुबली सीरीज को बाकी ओटीटी बाजार में मौजूद तमाम सीरीजों की भीड़ में ही शामिल होने जैसा सवाल किया है, तो कहना चाहूंगा कि बाजार के चलन से बाहर दौड़ने की कोशिश में फिल्मी दुनिया में कोई ज्यादा देर खड़ा नहीं हो पाता है. गला-काट प्रतिस्पर्धा में अगर हमें अपनी हदों का ख्याल रखकर आगे बढ़ना होता है तो ऐसे में ही वेब सीरीज निर्माताओं-फाइनेंसरों को बिजनेस-मार्केट का ख्याल रखकर भी आगे बढ़ना होता है. वरना तो फिर वही घर फूंक के तमाशा देखने वाली कहावत चरितार्थ हो जाएगी.”
दबंगई और सियासत का कॉम्बो
जिक्र अगर बिंदिया के बाहुबली की कहानी की करूं तो यह एक छोटे से काल्पनिक कस्बे के आसपास घूमती कहानी है. जिसमें बाहुबली-दबंग नेता (सौरभ शुक्ला) जेल में बंद है. उसका पुत्र यानी एक्टर रणवीर शौरी सत्ता हथियाने की कोशिश में जुटा है. राजनीति में कोई ऊंच-नीच नहीं होती है. पिता के जेल में बंद रहते-रहते ही बाहर मौजूद बेटा रणवीर शौरी उसके राजनीतिक सिंहासन पर अपना कब्जा जमा लेना चाहता है. हां, कहानी की प्लॉटिंग बेहद दमदार है. जिसमें दर्शक देखते-देखते कई बार उलझ कर सीरीज को आगे भी देखने के लिए बंधा रहने को विवश हो जाता है. सुशांत सिंह तो पुलिस वाले की दमदार भूमिका के साथ न्याय करने में कामयाब रहे ही हैं. उनके साथी सह-पुलिसकर्मी और दारोगा दीन बिहारी की भूमिका में मौजूद घनश्याम गर्ग ने भी कमाल का न्याय किया है. फिल्म में उनकी भूमिका के बारे में पूछे जाने पर घनश्याम गर्ग कहते हैं, “कलाकार और भूमिका कोई छोटी बड़ी नहीं होती है. कलाकारी ही किसी अभिनेता को छोटा और बड़ा बनाती है. मैंने सब इंस्पेक्टर दीन बिहारी के रूप में कैसी भूमिका निभाई है? यह सीरीज के दर्शक तय करेंगे. मुझे अभिनय के रूप में जो कुछ देना था 100 प्रतिशत ईमानदारी के साथ दे चुका हूं.
सुशांत सिंह को व्यवहार को भूल पाना नामुमकिन
बिंदिया के बाहुबली से जुड़ा कोई यादगार अनुभव जो जीवन में कभी धूमिल नहीं होगा? पूछने पर बेहद संतुलित सोच और जमीन से जुड़ी मानसिकता वाले घनश्याम गर्ग बोले, “हम जैसे हैं सामने वाला हमें वैसा ही नजर आएगा. हमें पहले अपनी सोच अपना दिमाग अपनी पसंद के काबिल बनाना होता है. तब हम सोचें कि हमारे सामने खड़ा शख्स कैसा है? बिंदिया के बाहुबली में सौरभ शुक्ला, रणवीर शौरी, सीम बिश्वास, शीबा चड्ढा के साथ काम करना ही यादगार है. मगर मेरी दोरागा दीन बिहारी की भूमिका में जो खुला मौका स्क्रिप्ट के साथ-साथ मुझे पुलिस अफसर के रूप में मौजूद सुशांत सिंह ने दिया, वह यादगार बन गया. सुशांत सिंह के व्यवहार को होश-ओ-हवाश में आइंदा भूल पाना नामुमकिन होगा.”





