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हरियाणा विधानसभा चुनाव: चार पीढ़ियों की चौधराहट के जनक थे ताऊ देवीलाल, जानें सियासी रसूख का इतिहास

हरियाणा में अगर राजनीति की बात की जाएगी तो सबसे पहले चौधरी देवीलाल का नाम आएगा। इनका बिना हरियाणा की राजनीति का इतिहास नहीं लिखा जा सकता है। चौधरी देवीलाल की वजह से इनकी चार पीढ़ी राजनीति में अपना पांव जमाए हुए हैं।

हरियाणा विधानसभा चुनाव: चार पीढ़ियों की चौधराहट के जनक थे ताऊ देवीलाल, जानें सियासी रसूख का इतिहास
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नवनीत कुमार
by: नवनीत कुमार

Published on: 12 Sept 2024 7:34 PM

हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां जोरशोर से प्रचार प्रसार में लगी हैं। हरियाणा में अगर राजनीति की बात की जाएगी तो सबसे पहले चौधरी देवीलाल का नाम आएगा। इनका बिना हरियाणा की राजनीति का इतिहास नहीं लिखा जा सकता है। चौधरी देवीलाल की वजह से इनकी चार पीढ़ी राजनीति में अपना पांव जमाए हुए हैं।

हरियाणा का ताऊ और भारत के उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल का जन्म 25 सितंबर 1914 को सिरसा जिले के तेजा खेड़ा गांव में हुआ था। आजादी के बाद पहली बार 1952 में लोकसभा चुनाव हुआ था। इस चुनाव में चौधरी देवीलाल उस वक़्त संयुक्त पंजाब हुआ करता था, उस विधानसभा में विधायक बनकर गए।

चौधरी देवीलाल ने अपने पहले ही भाषण में भाषा के आधार पर अलग हरियाणा राज्य की मांग उठाई थी। तब से उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली वो लोगों के बीच लोकप्रिय होते चले गए। रुतबा ऐसा बढ़ा कि 1957 और 1962 में भी वह विधायक बनकर पंजाब विधानसभा पहुंचे।

बंसीलाल से बिगड़े संबंध

हरियाणा बनने के बाद उनकी मुख्यमंत्री बंसीलाल से खटपट हो गई। बात इतनी बिगड़ गई कि जब 1968 में मध्यावधि चुनाव होना था। इस चुनाव में कांग्रेस ने चौधरी देवीलाल को टिकट ही नहीं दिया। देवीलाल का कांग्रेस से मोह भंग हो गया और उन्होंने 1971 में कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया। 1972 के विधानसभा चुनाव में वह बंसीलाल के खिलाफ तोशाम और भजन लाल के खिलाफ आदमपुर हलके से चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन दोनों ही जगह उन्हें मुंह की खानी पड़ी।

इस हार का सदमा चौधरी देवीलाल को लगा, वह कुछ दिनों के लिए राजनीति से दूर हो गए। मगर जमीन से जुड़े नेता ज्यादा दिन तक राजनीति से दूर नहीं रह सकते हैं। साल 1974 में गेहूं की जबरन खरीदी की जा रही थी। इसके खिलाफ उन्होंने किसान आंदोलन की कमान संभाली और दोबारा राजनीति में एक्टिव हो गए।

जब इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई तो इस दौरान उन्होंने कई आंदोलन किया और एक्टिव रहे। इसका असर ये हुआ कि वह हरियाणा में सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे। वह दो बार 1977-79 और फिर 1987 में हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें दो जगह हरियाणा की रोहतक और राजस्थान की सीकर लोकसभा सीट से जीत मिली। जब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी तो वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने।

चौधरी देवीलाल ने हरियाणा का ताऊ बनने के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी तक छोड़ दी और उप प्रधानमंत्री का पद लिया। 1989 से 1991 तक वीपी सिंह और चंद्र शेखर की सरकारों में वह उप-प्रधानमंत्री पद पर रहे। इसके बाद तीन बार भूपिंदर सिंह हुड्डा ने उन्हें हराया।

6 अप्रैल 2001 को 86 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था। उनकी समाधि दिल्ली में है जिसका नाम संघर्ष घाट है।

परिवार के कौन कौन सदस्य कर रहे राजनीति

देवीलाल के चार बेटे हुए, ओम प्रकाश चौटाला, रणजीत सिंह, प्रताप सिंह और जगदीश सिंह।

ओमप्रकाश चौटाला पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे हैं। सोने की घड़ियों की तस्करी के आरोप में पकड़े जाने के बाद देवीलाल ने उन्हें परिवार से निकाल दिया था। मगर जब उत्तराधिकारी घोषित करने की बारी आई तो देवीलाल ने अपनी राजनीतिक विरासत ओमप्रकाश चौटाला को ही सौंपी।

देवीलाल के दूसरे बेटे रणजीत सिंह चौटाला ने ओमप्रकाश चौटाला से दूरी बनाकर रखी। कभी उन्हें देवीलाल की विरासत का सियासी उत्तराधिकारी माना जाता था, मगर देवीलाल ने ओम प्रकाश चौटाला को चुना। इसके बाद रणजीत चौटाला ने लोकदल से किनारा कर लिया और कांग्रेस में शामिल हो गए।

जिस तरह चौधरी देवीलाल के दोनों बेटों के बीच लड़ाई हुई। वैसी ही लड़ाई ओम प्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत-दिग्विजय और छोटे बेटे अभय चौटाला के बीच हुई। मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बनने की चाहत ने पार्टी के दो टुकड़े कर दिए। अब अभय चौटाला और दुष्यंत चौटाला अलग अलग पार्टी बनाकर हरियाणा में राजनीति कर रहे हैं।

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