बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान के निशां क्यों मिटा रहा बांग्लादेश? मुक्ति संग्राम के नायक के साथ ऐसा सुलूक

बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश के राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान से जुड़े सभी दिनों की छुट्टी को रद्द करने का फैसला लिया है. इस फैसले के बाद उनकी आलोचना भी हो रही है. बता दें, यूनुस सरकार ने 15 अगस्त को मनाए जा रहे राष्ट्रीय शोक दिवस को भी रद्द कर दिया है.;

Curated By :  नवनीत कुमार
Updated On : 18 Oct 2024 3:44 PM IST

बांग्लादेश में जब से सरकार बदली है तब से लगातार बदलाव देखने को मिल रहा है. हाल ही मेंअंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश के राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान से जुड़े सभी दिनों की छुट्टी को रद्द करने का फैसला लिया है. इस फैसले के बाद उनकी आलोचना भी हो रही है.

बता दें, यूनुस सरकार ने 15 अगस्त को मनाए जा रहे राष्ट्रीय शोक दिवस को रद्द कर दिया है.इसी दिन 1975 में आजाद बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान को उनके घर पर परिवार के साथ सेना के जवानों ने मार डाला था. इसके साथ ही 17 मार्च को मुजीबुर्रहमान के जन्मदिन, 7 मार्च को बंगबंधु का एतिहासिक भाषण और 8 अगस्त को उनकी पत्नी और पूर्व पीएम हसीना की मां बेगम फाजिलतुन्नेसा का और 4 नवंबर को राष्ट्रीय संविधान दिवस की छुट्टी को भी रद्द कर दिया गया है. आइये अब आपको बताते हैं कि बांग्लादेश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान कौन थे और बंदलादेश की आजादी में उनकी क्या भूमिका थी.

पाक से दिलाई थी मुक्ति

बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान का जन्म 17 मार्च 1920 को ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रांत के फरीदपुर जिले में हुआ था. वह जमींदार परिवार से थे. उन्हें बांग्लादेश का जनक भी कहा जाता है. उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई करते हुए देश को मुक्ति दिलाई. इस लड़ाई में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनकी सहायता की थी. इसके बाद वह बांग्लादेश के प्रथम राष्ट्रपति और बाद में प्रधानमंत्री भी बने. उन्हें शेख मुजीब और बंगबंधु कहा जाता था.

कमरा नंबर 24 से शुरू की आजादी की लड़ाई

शेख मुजीब जब सातवीं में थे तब उन्हें ग्लूकोमा नामक बीमारी हो गई थी, इस वजह से उन्होंने चार साल पढ़ाई रोक दी थी. बाद में उन्होंने गोपालगंज (वर्तमान बिहार) मिशनरी स्कूल से 10वीं की परीक्षा पास की थी. इसके बाद वह कलकत्ता के इस्लामिया कॉलेज आ गए. वहां उन्हें हॉस्टल में रहने के लिए कमरा नंबर 24 दिया गया था. यहां उन्होंने मुस्लिमों के लिए अलग देश यानी पाकिस्तान की मांग करने वाले आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया। इस बात का जिक्र उन्होंने अपनी जीवनी 'अनफिनिश्ड: ए मेमॉयर' में भी की थी. उन्होंने लिखा था कि मुझे विश्वास था कि हमें पाकिस्तान बनाना होगा और इसके बिना दुनिया के हमारे हिस्से में मुसलमानों का कोई भविष्य नहीं है. उन्होंने मदारीपुर में मुस्लिम छात्र लीग की स्थापना की थी.

अपने मुल्क के भ्रम में जी रहे थे मुजीब

मुजीबुर्रहमान को लगता था कि भारत से दो देश अलग होंगे और पूर्वी पाकिस्तान निश्चित रूप से उनका अपना मुल्क होगा. मुस्लिम लीग अविभाजित भारत को तोड़कर एक नहीं दो मुस्लिम राष्ट्र बनाना चाहती थी. साल 1946 में उनका ये भ्रम दिल्ली में हुई मुस्लिम लीग की बैठक में टूट गया. इस बैठक में नया प्रस्ताव पास हुआ कि अब दो के बजाय एक ही देश बनेगा. मुजीबुर्रहमान को हैरानी हुई और उन्होंने अपनी शिकायत मुस्लिम लीग के बड़े नेताओं के सामने रखी. लेकिन जिन्ना समेत बड़े नेताओं ने मुजीबुर्रहमान को समझाकर मना लिया. मुस्लिम लीग के नेताओं के मनाने के बाद मुजीबुर्रहमान उस वक़्त तो मान गए लेकिन बाद में उन्होंने बंगाल आंदोलन की शुरुआत कर दी. इस आंदोलन की वजह से वह बंगाल में मुस्लिम लीग के चर्चित नेता बन गए थे.

क्या था ऑपरेशन सर्च लाइट?

1971 में बांग्लादेश की आजादी के आंदोलन को कुचलने के लिए पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर बहुत जुल्म किया. इस दौरान लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया और जेलों में ठूंस दिया गया. पाकिस्तान के लोग बांग्ला लोगों को नीच मानते थे. उनके साथ आजादी के बाद से ही भेदभाव करते आ रहे थे. आंदोलन को रोकने के लिए की गई हिंसा को पाकिस्तान की सेना ने ऑपरेशन सर्चलाइट नाम दिया था.

बांग्लादेश की आजादी की घोषणा

ऑपरेशन सर्चलाइट में अपने लोगों को मरता देखकर 25 मार्च 1971 को शेख मुजीबुर्रहमान ने बांग्लादेश के आजादी की घोषणा कर दी थी. उन्होंने लोगों से अपील की थी कि उनके पास जो कुछ भी हो उसी से पाकिस्तानी सेना का विरोध करते रहें. यह विरोध तब तक चलते रहना चाहिए, जब तक पाकिस्तान का एक-एक सैनिक बांग्लादेश की धरती से बाहर निकल न जाएं. शेख की इस घोषणा के बाद पाकिस्तानी सेना ने ढाका के धानमंडी स्थित शेख के घर से उन्हें गिरफ्तार कर लिया था.

इंदिरा गांधी ने कैसे की थी मदद?

शेख मुजीबुर्रहमान की गिरफ़्तारी के बाद उन्हें पाकिस्तान के जाया गया था. लोगों को पता नहीं था कि वह जिंदा हैं या नहीं. इसके बाद अवामी लीग के दो नेता ताजुद्दीन अहमद और अमीर उल इस्लाम कोलकाता पहुंचे और BSF से मदद मांगी थी. BSF ने ताजुद्दीन और इंदिरा गांधी की बैठक कराई थी. जानकारी जुटाने के बाद इंदिरा गांधी ने भारत बांग्लादेश को सीमा पर मदद किया था लेकिन बांग्लादेश की आजादी पर कोई आश्वासन नहीं दिया था.

90 हजार सैनिकों का आत्मसमर्पण

भारत की मदद के बाद 13 अप्रैल को आजाद बांग्लादेश की अस्थायी सरकार का गठन हुआ था. तब नजरुल अहमद राष्ट्रपति और ताजुद्दीन अहमद को प्रधानमंत्री बनाया गया था. इसके बाद पाकिस्तान के 90 हजार से अधिक सैनिकों ने 16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना के सामने ढाका में आत्मसमर्पण कर दिया था. दोनों देशों में 13 दिन तक चला युद्ध खत्म हुआ था. इसी दिन बांग्लादेश पूरी तरीके से आजाद हुआ था.

आजादी के बाद मुजीब का ऐतिहासिक भाषण

1972 को जब मुजीब पाकिस्तान की जेल से आजाद हुए तो उन्हें पहले लंदन फिर ढाका के लिए रवाना किया गया. वह भारत को धन्यवाद देने के लिए कुछ देर दिल्ली में रुके थे. उन्होंने इंदिरा गांधी और भारत की जनता को धन्यवाद दिया था. जब वह ढाका पहुंचे थे तो वहां करीब 10 लाख लोगों की भीड़ उनके स्वागत के लिए खड़ी थी. इसके बाद वह रेस कोर्स मैदान में गए और उन्होंने ऐतिहासिक भाषण दिया था.

सेना के अफसरों ने की थी हत्या

1975 में मुजीब बर्बाद ही चुके बांग्लादेश को फिर से सही करने में लगे हुए थे, इसी बीच उनपर भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोप लगने लगे। मुजीब को लेकर लोगों के साथ साथ सेना में भी असंतोष बढ़ने लगा. 15 अगस्त 1975 को सेना के कुछ जूनियर अफ़सरों ने धनमंडी स्थित आवास पर हमला कर मुजीब की हत्या कर दी. इसके बाद उनके शव को पैतृक गांव में दफना दिया था.

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