लीक सीक्रेट डाक्यूमेंट में ईरान की तबाही का ब्लू प्रिंट, दुश्मन हुए ढेर लेकिन युद्ध जारी! आखिर चाहते क्या हैं PM नेतन्याहू?
Israel Iran War: हमास चीफ याह्या सिनवार की मौत से पूरी दुनिया कयास लगा रही थी कि अब नेतन्याहू युद्ध विराम की ओर बढ़ेंगे. हालांकि, जंग खत्म हो जाए ऐसा कोई भी इशारा पीएम नेतन्याहू की ओर से नहीं मिल रहे है. रिपोर्ट में ये भी दावा किया जा रहा है कि इस युद्ध का अंत अभी नहीं वाला है, क्योंकि नेतन्याहू का मकसद अभी पूरा नहीं हुआ है.;
Israel Iran War: हमास के आखिरी चीफ याह्या सिनवार के मारे जाने के बाद भी इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू युद्ध से पीछे हटने का नाम नहीं ले रहे हैं. वह लगातार अपने दुश्मनों पर हमला जारी रखने की बात पर अड़े हैं. अब हाल में ही एक अमेरिका खुफिया दस्तावेज लीक होने के बाद तो ऐसा खुलासा सामने आया, जिसने सभी के रोंगटे खड़े कर दिए.
लीक हुए खुफिया दस्तावेज से यह पता चला है कि इजरायल मीडियम रेंज की बैलिस्टिक मिसाइल जेरिको-2 16 अक्टूबर 2024 को ईरान पर हमले की तैयारी कर रहा था. हालांकि, ये मिसाइल न्यूक्लियर हथियार नहीं है. इस मिसाइल को इजरायल 2026 में हटा देगा. इसे लेकर माना जा रहा है कि अगर जंग होती है, तो इस मिसाइल के पूरे जखीरे को इजरायल, ईरान और अपने दुश्मनों पर गिराकर तबाह कर देगा.
सिनवार की मौत के बाद युद्ध विराम?
मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि जियो पॉलिटिक्स एक्सपर्ट्स का मानना है कि नेतन्याहू अपने देश को निजी फायदे के लिए जंग में उलझाए रखने की तैयारी में हैं. वह फिलिस्तीनियों को भगाकर उनकी जमीन पर लंबे समय के लिए कब्जा करने की तैयारी कर रहे हैं. उन पर 2019 में तीन अलग-अलग मामलों में धोखाधड़ी, रिश्वतखोरी और विश्वासघात के आरोप लगाए गए.
यही कारण है कि नेतन्याहू को लंबे समय से सत्ता खोने का डर सता रहा है. अगर वह सत्ता से बाहर होते हैं तो उन्हें कई साल जेल में भी बिताने की नौबत भी आ सकती है. नेतन्याहू ने जंग की शुरुआत में ही साफ किया था कि वह हमास का पूरी तरह से सफाया चाहते हैं. उनका कहना है कि वह अभी गाजा से अपने सेना पूरी तरह से वापस नहीं लेंगे.
अदालत को कंट्रोल करने की कोशिश में थे नेतन्याहू
पीएम नेतन्याहू जब साल 2020 की देश की न्यायिक प्रणाली की स्वतंत्रता को कमजोर करने तथा इसके न्यायाधीशों को राजनीतिक नियंत्रण के अधीन बनाने की योजना बनाई थी. उन्होंने ऐसे कानून प्रस्तावित किए जो सरकार को न्यायाधीशों की नियुक्ति करने, न्यायालय की निगरानी को सीमित करने और यहां तक कि न्यायालय को दरकिनार करने की अनुमति देकर देश की न्यायपालिका को कमजोर कर करते थे.