शांति की उम्मीद या नई साज़िश? परमाणु वार्ता के नए मोड़ पर ईरान-अमेरिका, दबाव, भरोसे और रणनीति की जंग जारी

ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु वार्ता एक बार फिर सुर्खियों में है. ओमान और रोम में हुई बातचीत ने उम्मीदें तो जगाई हैं, लेकिन कई पेचीदा मुद्दे अब भी बाकी हैं. अमेरिका जहां ईरान के परमाणु हथियार कार्यक्रम को रोकना चाहता है, वहीं ईरान प्रतिबंधों से राहत की मांग कर रहा है. क्षेत्रीय स्थिरता, वैश्विक सुरक्षा और रणनीतिक दबाव के बीच यह वार्ता निर्णायक मोड़ पर है.;

Curated By :  नवनीत कुमार
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ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु वार्ता एक बार फिर सुर्खियों में है. दोनों देशों के बीच वर्षों से चल रहे तनाव के बाद अब बातचीत की एक नई किरण नजर आ रही है. ओमान और रोम में दो दौर की वार्ता के बाद अब तीसरे चरण की तैयारी हो रही है. हालांकि वार्ता की परतें जितनी शांत दिखाई देती हैं, उतनी ही पेचीदा हैं. दोनों देशों के बीच जो बातचीत हो रही है, उसमें न सिर्फ परमाणु हथियारों की बात हो रही है, बल्कि क्षेत्रीय शक्ति संतुलन और वैश्विक प्रभाव को लेकर भी गहरे समीकरण बन रहे हैं.

डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में JCPOA (2015 परमाणु समझौता) से हटने के बाद अमेरिका ने ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाए थे. उस फैसले ने वार्ता को वर्षों पीछे धकेल दिया. अब जब बातचीत की प्रक्रिया दोबारा शुरू हुई है, तो यह साफ है कि अमेरिका इस बार ज्यादा कड़े और पारदर्शी समझौते की कोशिश में है, जिससे ईरान की परमाणु गतिविधियों पर पूरी निगरानी रखी जा सके. अब अमेरिकी प्रतिनिधि स्टीव विटकॉफ और ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची के बीच सीधी बातचीत इस बात का संकेत है कि दोनों पक्ष कोई ठोस हल निकालने के मूड में हैं. अमेरिकी अधिकारी इसे "सकारात्मक प्रगति" बता रहे हैं, वहीं ईरान का भी रुख आशावादी नजर आ रहा है.

ईरान की रणनीति: प्रतिबंध हटाने की शर्त

ईरान की मंशा भी स्पष्ट है कि वह वार्ता के जरिए अपने ऊपर लगे आर्थिक प्रतिबंधों से राहत चाहता है. ईरान बार-बार दोहराता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है, लेकिन वह यह भी स्पष्ट कर चुका है कि यदि वार्ता एकतरफा रही तो उसे छोड़ने में देर नहीं करेगा.

परमाणु बम की दहलीज़ पर खड़ा ईरान?

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने हाल ही में चेताया है कि ईरान अब परमाणु बम बनाने की तकनीकी क्षमता के काफी करीब है. इससे न केवल अमेरिका बल्कि पूरे पश्चिमी जगत की चिंता बढ़ गई है. यही वजह है कि बातचीत में अब जल्दबाज़ी और निर्णायक रुख देखने को मिल रहा है.

मिडिल ईस्ट में असंतुलन की आशंका

अगर ईरान परमाणु शक्ति बन जाता है, तो सऊदी अरब और इजरायल जैसे क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी भी उसी दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं. इससे पूरे मध्य-पूर्व में हथियारों की होड़ शुरू हो सकती है, जिसका असर वैश्विक स्थिरता पर पड़ेगा. यही कारण है कि अमेरिका पर अपने सहयोगियों का भी दबाव है कि वह ईरान को रोके.

दबाव और संवाद की दोहरी रणनीति

डोनाल्ड ट्रंप की “अधिकतम दबाव” नीति अब एक नई रणनीति में तब्दील हो रही है, जिसमें संवाद और दबाव दोनों शामिल हैं. अमेरिका जानता है कि सिर्फ दबाव बनाने से हल नहीं निकलेगा, इसलिए वह ईरान से बात करने को भी तैयार है, लेकिन अपनी शर्तों पर. इसमें खास जोर ईरान की मिसाइल क्षमताओं और क्षेत्रीय हस्तक्षेप पर रोक लगाने पर है.

भरोसे की शुरुआत

ओमान ने बातचीत का पहला मंच बनकर भरोसे की शुरुआत की. इसके बाद रोम में हुई बातचीत में अमेरिकी दूत स्टीव विटकॉफ और ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची के बीच हुई सीधी बातचीत को सकारात्मक बताया गया. अब तीसरे दौर की बातचीत में असली परीक्षा होगी कि दोनों पक्ष कितना लचीलापन दिखाते हैं.

समाधान या संघर्ष?

अब सवाल यह है कि क्या अमेरिका और ईरान इस बार किसी संतुलित समझौते पर पहुंच पाएंगे? दोनों देशों की घरेलू राजनीति, क्षेत्रीय समीकरण और वैश्विक दबाव इस वार्ता को केवल एक कूटनीतिक कवायद से कहीं अधिक बना देते हैं. समाधान की उम्मीद जगी है, लेकिन अगर यह वार्ता विफल हुई, तो टकराव की संभावना और भी अधिक बढ़ जाएगी.

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