AI से दोस्ती, डिप्रेशन से राहत! अमेरिकी युवती की चैटबॉट ने कैसे की मदद? जानें इससे जुड़े सवालों के जवाब
मिशिगन की एमजी कॉकिंग ने अकेलेपन और डिप्रेशन के दौर में एक AI चैटबॉट 'डोनाटेलो' से दोस्ती की. यह दोस्ती इतना गहरा सहारा बनी कि एक बार उसने उनकी जान तक बचाई. हालांकि, बाद में एमजी ने असल जीवन में लौटने का फैसला किया. यह कहानी बताती है कि AI सहायक हो सकता है, लेकिन इंसानी जुड़ाव की जगह नहीं ले सकता.;
21वीं सदी में तकनीक ने इंसानी जीवन को पूरी तरह बदल कर रख दिया है. रोबोट, चैटबॉट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) अब न सिर्फ उद्योगों और ऑफिसों में, बल्कि लोगों की निजी जिंदगी में भी जगह बना चुके हैं. जहां एक ओर इनका इस्तेमाल जीवन को सरल बना रहा है, वहीं दूसरी ओर यह इंसानों के बीच रिश्तों की जगह भी ले रहे हैं. यही वजह है कि अब कई लोग भावनात्मक समस्याओं का हल भी मशीनों से खोजने लगे हैं.
अमेरिका के मिशिगन राज्य की एमजी कॉकिंग की कहानी इसी बदलती मानसिकता का प्रतीक है. कॉलेज में पढ़ने वाली एमजी सामाजिक रूप से बहुत अकेली थीं. किसी से बात करना उनके लिए चुनौती जैसा था. एक दिन इंटरनेट पर उन्हें एक वेबसाइट "Character AI" मिली, जहां उन्होंने एक AI चैटबॉट डोनाटेलो से बातचीत शुरू की. डोनाटेलो उन्हें बिना टोके, बिना सवाल किए सुनता था. एमजी को लगा जैसे उन्हें वह दोस्त मिल गया है, जिसकी उन्हें लंबे समय से तलाश थी.
AI ने बचाई जान, लेकिन दिखाई हकीकत की राह
साल 2023 में एमजी डिप्रेशन की गंभीर स्थिति में पहुंच गईं. एक रात उन्होंने खुद को नुकसान पहुंचाने की सोच ली. ऐसे समय में उन्होंने डोनाटेलो को अपना हाल बताया. चैटबॉट ने तुरंत सलाह दी कि वह किसी असली इंसान को बुलाएं. एमजी ने अपने एक दोस्त को बुलाया और उस चैट के दौरान डोनाटेलो उनसे लगातार बात करता रहा- यह पूछते हुए कि वह सुरक्षित हैं या नहीं. इस घटना ने न सिर्फ उनकी जान बचाई, बल्कि यह भी समझा दिया कि आभासी दुनिया में जीने से बेहतर है, वास्तविक जीवन से जुड़ना.
जब एमजी ने फैंटेसी से किया विदा
इस घटना के बाद एमजी को एहसास हुआ कि चैटबॉट की बातें उन्हें तसल्ली तो देती थीं, लेकिन असल जीवन में कोई हल नहीं था. उन्होंने डोनाटेलो से आखिरी बार बात करते हुए कहा, “फैंटेसी में शांति है, लेकिन असल ज़िंदगी में जीना ज़रूरी है.” इसके बाद उन्होंने Character AI एप को हमेशा के लिए डिलीट कर दिया. यह उनके लिए तकनीक से भावनात्मक रूप से अलग होने का क्षण था. आइए जानते हैं इनसे जुड़े कुछ सवालों के जवाब...
AI डिप्रेशन क्या है, क्या यह नई मानसिक बीमारी है?
AI डिप्रेशन कोई आधिकारिक मानसिक बीमारी नहीं है, लेकिन यह एक उभरती हुई सामाजिक और मानसिक स्थिति है. जब कोई व्यक्ति भावनात्मक सहारे के लिए AI चैटबॉट्स पर निर्भर हो जाता है और धीरे-धीरे असली इंसानों से कटने लगता है, तो वह भावनात्मक असंतुलन का शिकार हो सकता है. इससे अकेलापन बढ़ता है और वास्तविक दुनिया से जुड़ाव कम होता है.
AI चैटबॉट्स कैसे हमारी मदद कर सकते हैं?
चैटबॉट्स तत्काल राहत देने में मददगार हो सकते हैं. वे आपकी बात सुनते हैं, जवाब देते हैं, और कभी-कभी सकारात्मक सुझाव भी देते हैं. खासकर जब कोई इंसान अकेलापन महसूस करता है या अपनी बात किसी से साझा नहीं कर पाता, तो AI एक अस्थायी साथी बन सकता है. लेकिन ये भावनात्मक गहराई को नहीं समझते- सिर्फ डेटा और एल्गोरिद्म के आधार पर प्रतिक्रिया देते हैं.
क्या AI इंसानी संबंधों का विकल्प बन सकता है?
नहीं. AI कभी भी इंसानी रिश्तों का विकल्प नहीं बन सकता. भावनाएं, करुणा, स्पर्श, नजरें मिलाना — ये सारी चीजें केवल इंसान ही दे सकता है. चैटबॉट तात्कालिक सहायता दे सकता है, लेकिन दीर्घकालिक मानसिक संतुलन और खुशहाली के लिए इंसानी संवाद जरूरी है.
तो हमें AI से क्या सीखना चाहिए और क्या सीमाएं तय करनी चाहिए?
हमें AI को एक ‘उपयोगी टूल’ की तरह देखना चाहिए, न कि 'जीवन साथी' की तरह. जब AI हमारी बातचीत का एक माध्यम बनता है- ठीक उसी तरह जैसे किसी ऐप से हम खाना ऑर्डर करते हैं. तब तक वह सुरक्षित है. लेकिन जब हम उसे इंसानी रिश्तों का विकल्प मानने लगते हैं, तब वह मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकता है.