दुश्मन नहीं, अब पार्टनर! ट्रंप ने जुलानी से हाथ मिलाकर मिटा दी US की ‘एंटी-टेरर’ लाइन, क्या है नया मिडल ईस्ट गेमप्लान?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और सीरिया के विवादित नेता अल-जुलानी की मुलाकात वैश्विक राजनीति में नई व्यापार-केंद्रित दिशा का संकेत है. आतंकवादी अतीत के बावजूद प्रतिबंध हटाना, इज़राइल को मान्यता दिलाने की कोशिश और सीरिया के पुनर्निर्माण में अमेरिकी हितों की संभावनाएं यह सब दिखाता है कि ट्रंप की विदेश नीति अब सिर्फ मुनाफे के इर्द-गिर्द घूम रही है.;

Curated By :  नवनीत कुमार
Updated On : 15 May 2025 7:30 AM IST

एक तस्वीर बुधवार को वायरल हुई, जो वैश्विक राजनीति के बदलते मानकों की प्रतीक बन चुकी है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और सीरिया के अंतरिम नेता अहमद अल-शरा (जिन्हें पहले अबु मोहम्मद अल-जुलानी के नाम से जाना जाता था) की यह मुलाकात, परंपरागत कूटनीति से हटकर मुनाफे पर आधारित एक नई विश्व नीति को दर्शाती है. यह वह क्षण था जब दो पूरी तरह विपरीत छवियों वाले नेता एक साझा मंच पर आए और इसके पीछे की वजह कहीं अधिक गहरी है.

अल-जुलानी, जो कभी अलकायदा से जुड़े आतंकी गुट हयात तहरीर अल-शाम (HTS) का प्रमुख था, अब खुद को सीरिया का अस्थायी राष्ट्रपति कहलवाता है. बशर अल-असद को सत्ता से बेदखल करने के बाद उसने सत्ता हथियाई. यह वही जुलानी है जिस पर अमेरिका ने कभी 10 मिलियन डॉलर का इनाम घोषित किया था, जो कि दिसंबर 2024 में चुपचाप हटा लिया गया. अब वही व्यक्ति, वाशिंगटन से 'साझेदारी' की बातचीत कर रहा है.

जब कारोबार outweigh करता है चरित्र

रियाद में ट्रंप, जुलानी और सऊदी प्रिंस बिन सलमान की बैठक, असल में अमेरिका की ‘वाणिज्यिक कूटनीति’ का एक उदाहरण है. तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन भी इस वार्ता में ऑनलाइन शामिल हुए. इस बैठक के बाद ट्रंप ने सीरिया पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों को हटा लिया. सूत्रों का कहना है कि यह फ़ैसला व्यापारिक हितों और क्षेत्रीय ताकतों की सिफारिश पर लिया गया. अमेरिका ने यह दिखा दिया कि अगर व्यापार में संभावनाएं हों, तो नैतिक सीमाएं कोई मायने नहीं रखतीं.

युद्धग्रस्त देश, व्यापार का अवसर

सीरिया का हर तबाह इन्फ्रास्ट्रक्चर अमेरिका के लिए एक सुनहरा कॉन्ट्रैक्ट बन चुका है. विश्लेषकों का मानना है कि सीरिया के पुनर्निर्माण में करीब 400 बिलियन डॉलर का खर्च होगा और अमेरिका अगर इसमें मुख्य निवेशक बनता है, तो यह उसकी अर्थव्यवस्था के लिए वरदान साबित हो सकता है. ट्रंप ने पहले गाज़ा को फिर से बसाने की बात की थी, अब सीरिया उनकी नई ‘बिजनेस कॉलोनी’ बनता दिख रहा है.

डिप्लोमैसी के बहाने डीलिंग

ट्रंप ने न केवल प्रतिबंध हटाए, बल्कि जुलानी से अब्राहम समझौते में शामिल होने और इजराइल को मान्यता देने की अपील भी की. यह कदम अमेरिका-इजराइल-अरब गठजोड़ को और मजबूत करेगा और ट्रंप के पश्चिम एशिया एजेंडे को भी बल मिलेगा. जुलानी के पुराने इतिहास को किनारे रख, ट्रंप ने उसे एक डिप्लोमैटिक पार्टनर बना दिया है. इस उम्मीद में कि सौदे, स्थिरता और निवेश साथ-साथ आएंगे.

'पुनर्वास' के नाम पर राजनीतिक पुनरुत्थान

दमिश्क की सड़कों पर छिड़े जश्न ने यह दिखा दिया कि कैसे प्रतिबंध हटने की खबर को जनता ने ‘राहत’ की तरह लिया है. लेकिन इस खुशी के पीछे सच्चाई यह है कि अमेरिका एक चरमपंथी अतीत वाले नेता को ‘राजनीतिक वैधता’ देकर अपने हितों को साध रहा है. यह वही जुलानी है जिसने हजारों कैदियों को रिहा कर आतंकी खतरे को फिर से जन्म दिया.

‘आतंकवाद’ अब व्याख्या का विषय बन गया है

ट्रंप के फैसले पर सवाल उठना लाजमी है. यह पहली बार नहीं जब उन्होंने ऐसे शख्स से हाथ मिलाया है जिसकी छवि अमेरिका की एंटी-टेरर नीति के उलट हो. पाकिस्तान को IMF से फंड दिलाना हो, या कतर से गिफ्ट लेना ट्रंप का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि उनका पहला उद्देश्य हमेशा आर्थिक लाभ रहा है. आतंकवाद अब उनके लिए एक नैरेटिव है, जिसे वो अपने फायदे के अनुसार मोड़ते हैं.

अमेरिका का नया एजेंडा: 'Profit First'

ट्रंप की कूटनीति आज इतिहास की सबसे बड़ी डिफेंस डील, महंगे गिफ्ट्स, और दमिश्क में प्रस्तावित 'ट्रंप टावर' जैसी योजनाओं तक सीमित हो चुकी है. चाहे वह सीरिया हो या सऊदी, ट्रंप के लिए हर मुल्क एक संभावित निवेश गंतव्य है. भारत-पाकिस्तान सीजफायर के पीछे भी उन्होंने खुद को 'शांति-दूत' नहीं, बल्कि 'बिजनेस ब्रोकर' की तरह पेश किया. आज की अमेरिकी विदेश नीति का सबसे बड़ा नारा है: “विचारधारा नहीं, निवेश देखो.”

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