चीन की इस हरकत से बढ़ गई USA, ताइवान और जापान की टेंशन! आखिर चाहता क्या है ड्रैगन?

25 सितंबर को चीन ने ICBM का प्रशांत महासागर में सफल परीक्षण किया है. ऐसा माना जा रहा है कि 44 वर्षों में पहली बार चीन ने अंतरराष्ट्रीय महासागर क्षेत्र में ICBM का परीक्षण कर इसको माना है. हालांकि चीन ने इसे एक “नियमित व्यवस्था” बताया है, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि यह ऐसा कुछ नहीं है.;

ICBM Pic Credit- ANI
Curated By :  प्रिया पांडे
Updated On : 26 Sept 2024 2:29 PM IST

हाल के वर्षों में चीन और अमेरिकी महाशक्तियों के बीच कॉम्पिटिशन बढ़ता जा रहा है. इस कॉम्पिटिशन में चीन की intercontinental ballistic missile (ICBM) तकनीक में हुई प्रगति ने वैश्विक रणनीतिक परिदृश्य को नया रूप दिया है. 25 सितंबर को चीन ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी रॉकेट फोर्स (PLARF) द्वारा संचालित डोंगफेंग (DF)-41 ICBM का सफल टेस्ट किया. यह परीक्षण चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति और वैश्विक प्रभाव को दिखाता है. यह पहली बार है कि पिछले 44 वर्षों में चीन ने किसी ICBM परीक्षण को सार्वजनिक रूप से माना है.

DF-41, चीन के न्यूक्लियर मिसाईल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. 12,000 से 15,000 किलोमीटर की रेंज के साथ, यह मिसाइल अमेरिकी मुख्य भूमि तक पहुंच सकती है. इस ICBM को परमाणु हथियार ले जाने के लिए डिजाइन किया गया है, जो चीन को वैश्विक परमाणु क्षेत्र में प्रमुख बनाता है. DF-41 का परीक्षण न केवल चीन की तकनीकी बढ़ोतरी का संकेत है, बल्कि उसकी रणनीतिक सैन्य तैयारियों को भी दर्शाता है.

सैन्य खर्च में तेजी

चीन ने पिछले कुछ दशकों में अपनी सैन्य क्षमताओं में काफी बढ़ोतरी की है. 1992 से 2020 के बीच, चीन के रक्षा खर्च में 790 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इस बड़े इन्वेस्टमेंट ने उन्नत मिसाइल प्रणाली, नौसैनिक संसाधन और हवाई क्षमता के विकास को सक्षम किया है. इसके साथ ही, चीन ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य प्रभुत्व को चुनौती देने की क्षमता हासिल की है.

ICBM परीक्षण का महत्व

DF-41 का परीक्षण चीन के ICBM प्रोग्राम में एक नया मोड़ है. इसका पिछला ज्ञात परीक्षण मई 1980 में DF-5 मिसाइल के साथ हुआ था. इस नए परीक्षण से यह साफ हो गया है कि चीन अपने सैन्य नीति को विकसित कर रहा है. चीनी अधिकारियों ने इस परीक्षण को "सामान्य अभ्यास" करार दिया है, जो चीन की सैन्य तत्परता को दर्शाता है.

क्षेत्रीय तनाव

विश्लेषकों का मानना है कि यह परीक्षण चीन द्वारा अपनी रणनीतिक निवारक क्षमता को मजबूत करने का एक सुनियोजित कदम है, खासकर जब ताइवान पर तनाव बढ़ रहा है. चीन का यह कदम अमेरिका के साथ कॉम्पिटिशन और उसकी बढ़ती सैन्य उपस्थिति के संदर्भ में भी देखा जा रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि चीन का यह परीक्षण क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डाल सकता है और अमेरिका के साथ पहले से ही बढ़े हुए टेंशन को और बढ़ा सकता है.

वैश्विक शक्ति संघर्ष का विस्तार

चीन और अमेरिका के बीच की यह प्रतिस्पर्धा एशिया-प्रशांत क्षेत्र से परे भी है. चीन ने रूस के साथ भूमध्य सागर में नौसैनिक अभ्यास कर वैश्विक स्तर पर अपनी शक्ति को बढ़ाया है. यह सैन्य गतिविधियां दर्शाती हैं कि चीन अपने प्रभाव को सीमाओं से बाहर भी बढ़ा रहा है, जो वैश्विक स्तर पर अमेरिकी प्रभाव को चुनौती देने का संकेत है.

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