हमारी दादी को वापस लाओ.... 73 वर्षीय हरजीत कौर के लिए अमेरिका में मचा है बवाल, बेड़ियां पहनाकर रखा कोठरी में

8 सितंबर को हरजीत कौर सैन फ्रांसिस्को के ICE कार्यालय में एक नियमित चेक-इन के लिए गई थी. उन्हें लगा यह सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन वहीं उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद उन्हें फ्रेस्नो और बेकर्सफील्ड की हिरासत सुविधाओं में रखा गया.;

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Edited By :  रूपाली राय
Updated On : 26 Sept 2025 8:18 AM IST

पंजाब की रहने वाली 73 वर्षीय हरजीत कौर को अमेरिका से तीन दशक से भी ज़्यादा समय बाद बेदखल कर दिया गया. यह मामला अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में है, क्योंकि आप्रवासी अधिकारों से जुड़े संगठनों ने इसे बेहद क्रूर, अमानवीय और अनावश्यक कदम बताया है. हरजीत कौर 23 सितंबर को अमेरिका की आव्रजन एजेंसी आईसीई (ICE – Immigration and Customs Enforcement) द्वारा एक चार्टर्ड विमान से दिल्ली लाई गईं. उनके वकील दीपक अहलूवालिया के अनुसार, रविवार की रात उन्हें अचानक कैलिफोर्निया के बेकर्सफील्ड से लॉस एंजिल्स ले जाया गया. वहां से उन्हें जॉर्जिया शिफ्ट किया गया और फिर सीधे भारत भेज दिया गया. इस दौरान उनके साथ बेहद कठोर व्यवहार हुआ. उन्हें बेड़ियां पहनाई गईं, कंक्रीट के छोटे-छोटे कमरों (कोठरियों) में रखा गया और कई बार बुनियादी ज़रूरतें तक नहीं दी गईं.

वकील अहलूवालिया ने कहा कि निर्वासन की प्रक्रिया इतनी जल्दबाज़ी में हुई कि हरजीत कौर को अपने परिवार से मिलने, अलविदा कहने या अपना निजी सामान लेने की अनुमति तक नहीं दी गई. उन्होंने इसे पूरी तरह अमानवीय और संवेदनहीन कदम बताया. हरजीत कौर की उम्र 73 साल है. वह विधवा हैं और बीपी और डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रही हैं. सिख कोलिशन ने इस निर्वासन को "अस्वीकार्य से भी परे" करार दिया. उनका कहना है कि इतनी उम्रदराज़ महिला, जिनका स्वास्थ्य पहले ही कमजोर है, को इस तरह बेड़ियों में बांधकर भेजना न सिर्फ़ अमानवीय है बल्कि मानवीय अधिकारों का उल्लंघन भी है. 

क्या है मामला?

8 सितंबर को हरजीत कौर सैन फ्रांसिस्को के ICE कार्यालय में एक नियमित चेक-इन के लिए गई थी. उन्हें लगा यह सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन वहीं उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद उन्हें फ्रेस्नो और बेकर्सफील्ड की हिरासत सुविधाओं में रखा गया. परिवार का आरोप है कि वहां उन्हें दवाइयों तक की ठीक से नहीं दी गई. हरजीत कौर 1992 में एक अकेली मां के तौर पर अमेरिका गई थी. उन्होंने वहां एक भारतीय साड़ी की दुकान में सिलाई का काम किया. ईमानदारी से टैक्स चुकाया और गुरुद्वारों में सेवा की. 2005 में उनका शरण आवेदन (Asylum Application) खारिज कर दिया गया और निर्वासन का आदेश दे दिया गया. इसके बावजूद, पिछले 13 सालों से उन्होंने हर नियम का पालन किया चाहे वह आईसीई के चेक-इन हों या वर्क परमिट का नवीनीकरण. लेकिन भारतीय वाणिज्य दूतावास से देर से मिलने वाले यात्रा दस्तावेज़ों की वजह से उनका निर्वासन बार-बार टलता रहा. 

अमेरिकी नेताओं की प्रतिक्रिया

उनके अचानक इस तरह से देश से निकले जाने से कैलिफोर्निया में आक्रोश फैला दिया. सैकड़ों लोग सड़कों पर उतरे और विरोध प्रदर्शन किया. लोग हाथों में तख्तियाँ लिए थे, जिन पर लिखा था- हमारी दादी से हाथ हटाओ और हरजीत कौर यहीं की हैं.' स्थानीय नेताओं और संगठनों ने भी इस कार्रवाई की आलोचना की. कैलिफोर्निया के सांसद जॉन गैरामेंडी, सीनेटर जेसी एरेगुइन और अन्य नेताओं ने आईसीई से अपील की कि हरजीत कौर का निर्वासन रोका जाए. उनका कहना था कि यह एक गलत प्राथमिकता है, क्योंकि इस उम्र की महिला किसी के लिए खतरा नहीं है. 

आईसीई का पक्ष

आरोपों के बीच आईसीई ने अपने बचाव में बयान जारी किया. उन्होंने कहा, 'हरजीत कौर ने नौवें सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स तक कई बार अपील की, लेकिन हर बार हार गईं. जब सभी कानूनी विकल्प खत्म हो गए, तो एजेंसी के पास आदेश को लागू करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. आईसीई ने कहा कि अब अमेरिकी टैक्सपेयर्स का पैसा उनके केस पर और खर्च नहीं होगा. वहीं मानवाधिकार और प्रवासी संगठनों ने कहा कि यह घटना दिखाती है कि ट्रंप प्रशासन के दौरान बढ़ते निर्वासन ने कितनी बड़ी मानवीय कीमत वसूली है. सिख कोलिशन ने कहा, 'यह सिर्फ़ एक दादी की कहानी नहीं है. यह उन लाखों प्रवासी परिवारों की कहानी है, जो दशकों से अमेरिका में रह रहे हैं, मेहनत कर रहे हैं और अपने समुदाय की सेवा कर रहे हैं, लेकिन सिस्टम की कठोरता का शिकार हो रहे हैं.'

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