उन्नाव रेप केस में दोषी कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट से मिली जमानत ने देशभर में नई बहस छेड़ दी है. एक ओर जहां जांच एजेंसी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, वहीं दूसरी ओर न्यायिक विवेक, कानूनी प्रावधानों और उचित प्रक्रिया (Due Process) को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं. इसी संवेदनशील मुद्दे पर State Mirror Hindi के एडिटर (क्राइम इन्वेस्टिगेशन) संजीव चौहान ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. ए. पी. सिंह से विशेष बातचीत की. इस चर्चा में जमानत से जुड़े संवैधानिक अधिकारों, अदालतों के विवेकाधिकार और आपराधिक न्याय प्रणाली की बुनियादी संरचना को पूरी तरह कानूनी नजरिए से समझाया गया. डॉ. ए. पी. सिंह ने स्पष्ट किया कि जमानत का सवाल अपराध की प्रकृति से अधिक न्यायिक प्रक्रिया और आरोपी के संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा होता है. भारतीय कानून में जमानत को सजा नहीं, बल्कि न्यायिक संतुलन का हिस्सा माना गया है, जहां अदालत तथ्यों, परिस्थितियों और कानून के दायरे में फैसला करती है. इस बातचीत में यह भी समझाया गया कि जमानत और दोषसिद्धि में क्या फर्क है, हाईकोर्ट को किन आधारों पर जमानत देने का अधिकार है और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती का कानूनी रास्ता क्या होता है...