सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तलाक-ए-हसन प्रथा की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इसकी कड़ी शब्दों में निंदा की. अदालत ने सवाल उठाया कि क्या आधुनिक और सभ्य समाज में ऐसी परंपरा को स्वीकार किया जा सकता है, जिसमें महिलाओं के साथ स्पष्ट भेदभाव दिखाई देता है. सुनवाई के दौरान जजों की बेंच ने तलाक-ए-हसन को 'भेदभावपूर्ण और असमान' बताते हुए यह भी पूछा कि आखिरकार ऐसी परंपराओं का आविष्कार कैसे किया गया और इन्हें क्यों जारी रखा गया. कोर्ट ने संकेत दिए कि इस प्रथा का संवैधानिक परीक्षण आवश्यक है, क्योंकि यह महिलाओं की गरिमा और समानता के अधिकार से जुड़ा मामला है.