संजीव कुमार ने शोले में 'ठाकुर' बनकर अमर किरदार रचा, लेकिन उनकी असली ज़िंदगी एक अधूरी कविता बनकर रह गई. रेखा से लेकर हेमा तक उनके इश्क के अफसाने अधूरे रहे. मां को खोने के बाद अकेलेपन ने उन्हें तोड़ दिया. ये कहानी है एक ऐसे कलाकार की, जिसने दुनिया को हंसाया, पर खुद दर्द से मुस्कराता रहा.