सफेद कागज पर लिखा होने के बाद भी क्यों ‘ब्लैक-वारंट’ बोला जाता है? देखें Jailer और Charles Sobhraj की Inside Story
‘ब्लैक-वारंट’ किसी सजायाफ्ता मुजरिम की मौत का अंतिम कानूनी दस्तावेज होता है. यह लिखा तो ‘सफेद कागज’ के ही ऊपर होता है, इसके बाद भी इसे आखिर “ब्लैक-वारंट” क्यों कहते हैं? क्या किसी जेलर या डिप्टी सुपरिंटेंडेंट जेल ( Jail Superintendent ) की किसी खूंखार मुजरिम से दोस्ती जेल की चार-दिवारी में परवान चढ़ सकती है और उसका अंजाम क्या होगा? जेल सेवा में नए-नए भर्ती हुए डिप्टी जेल सुपरिंटेंडेंट को भला दुनिया का चार्ल्स शोभराज ( Charles Sobhraj ) जैसा कुख्यात भगोड़ा/ बिकिनी किलर/लेडी किलर ( Bikini Killer Lady Killer ) कैसे नौकरी ‘ज्वाइन’ करवाने की प्रक्रिया पूरी करवा सकता है? क्योंकि ऐसा होने से तो जेल और जरायम की दुनिया के खूंखार मुजरिम के बीच मौजूद ‘कानून’ की मर्यादा ही दम तोड़ देगी. फिर ऐसे में कैसा मुजरिम कैसी जेल और कैसे जेलर साहब? इन्हीं तमाम सवालों को खंगालने के लिए स्टेट मिरर हिंदी ( State Mirror Hindi ) के एडिटर क्राइम संजीव चौहान ( Sanjeev Chauhan ) ने पॉडकास्ट ( Podcast ) के लिए किए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के दौरान झांकने की कोशिश की है, दुनिया की कभी सबसे मजबूत-खतरनाक जेल रही और आज, दुनिया की सबसे ज्यादा बदनाम तिहाड़ जेल (नई दिल्ली भारत) के पूर्व जेलर सुनील गुप्ता ( Sunil Gupta Tihar Jail ) को. सुनील गुप्ता ‘ब्लैक-वांरट’ किताब के लेखक भी हैं. जिसके आधार पर ही नेटफिलिक्स ने हाल ही में बनाई है ब्लैक-वारंट सीरीज ( Netflix Black Warrant ). तिहाड़ जेल और वहां के अंदरखाने की तमाम रुह कंपाते सच की बखिया उधेड़ती पॉडकास्ट की यह कड़ियां, अभी आगे जारी रहेंगी हमारे यूट्यूब चैनल State Mirror Hindi पर....यह तो बस झांकी है...कहानी देखना तो बाकी है....