प्रयागराज में ही नहीं भारत के इस राज्य में भी होता है गंगा-यमुना का मिलन
दरअसल, उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री हाईवे से सटी गंगनानी है. यहां भागीरथी का पानी प्राचीन कुंड से एक धारा के रूप में निकलता है और यमुना में मिलता है. लेकिन प्रचार-प्रसार के अभाव और सरकारी तंत्र की उपेक्षा के कारण गंगा-यमुना का यह पहला संगम लोगों की नजरों से छिपा हुआ है.;
इन दिनों प्रयागराज में महाकुंभ की धूम मची हुई है देश-विदेश से लोग बड़ी श्रद्धा भाव से त्रिवेणी संग में डूबकी लगा के मां गंगा आशीर्वाद प्राप्त कर रहे है. जी, हां वहीं त्रिवेणी संगम जहां तीन नदियों का मिलन होता है गंगा, यमुना और सरस्वती। रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रयागराज के महाकुंभ अब तक पांच करोड़ श्रद्धालु स्नान करने आ चुके है और आधे से ज्यादा वे वहीं कैंप में रह रहे हैं. जिसमें बड़े-बड़े साधु संत में भी शामिल है.
हालांकि जहां उत्तर प्रदेश के प्रयागराज को लौता ऐसा शहर कहा जाता है जहां गंगा, यमुना का मिलन है वहीं एक राज्य का ऐसा भी है जहां मां गंगा का मिलन मां यमुना से होता है. जी, हां यह राज्य भारत का जाना-माना उत्तराखंड राज्य है. इस राज्य उत्तरकाशी में गंगा, यमुना का मिलन होता है लेकिन यह बात बहुत ही कम लोगों को पता है.
धूप-दीप के लिए टिहरी रियासत से आता था पैसा
दरअसल, उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री हाईवे से सटी गंगनानी है. यहां भागीरथी का पानी प्राचीन कुंड से एक धारा के रूप में निकलता है और यमुना में मिलता है. लेकिन प्रचार-प्रसार के अभाव और सरकारी तंत्र की उपेक्षा के कारण गंगा-यमुना का यह पहला संगम लोगों की नजरों से छिपा हुआ है. सिर्फ इतना ही नहीं गंगा,यमुना का यह मिलन केदारनाथ तक जाता है. भागीरथी की तरह इस कुंड से निकलने वाले पानी का स्तर घटता-बढ़ता रहता है. चारों धामों की तरह ही टिहरी रियासत के समय भी धूप-दीप के खर्च के लिए राजकोष से हर साल 20 रुपये मनीऑर्डर के जरिए से आते थे, जो कि टिहरी के राजा मानवेंद्र शाह की निधन के बाद एक दशक से अधिक समय से आना बंद हो गया है.इसके पौराणिक धार्मिक महत्व के कारण यहां हर साल फरवरी माह में कुंड की जातर का आयोजन किया जाता है, जो इस साल 13 फरवरी से शुरू होगा. त्रिवेणी संगम पर चूड़ाकर्म, विवाह एवं अन्य धार्मिक कार्यों का महत्व है.
जमदग्नि ऋषि ने की थी तपस्या
इस प्राचीन कुंड के पास स्थित गंगा मंदिर के पुजारी हरीश डिमरी और अंकित डिमरी का कहना है कि प्राचीन मान्यताओं पर नजर डालें तो जमदग्नि ऋषि अपने तप काल के दौरान यहां के निकट थान गांव में निवास करते थे. वह हर रोज गंगा जी में स्नान करने के लिए उत्तरकाशी जाते थे. लेकिन वृद्धावस्था में आने के बाद वह चलने फिरने में असमर्थ होने लगे और गंगा जी में उनका स्नान करना संभव नहीं था. फिर क्या था जमदग्नि ऋषि ने तपस्या करना शुरू की. जिससे गंगा जी उनकी तपस्या से इतनी खुश हुईं वह उनके नजदीक गंगनानी कुंड में आ बसी.