मजाक- मजाक में हो गई मौत...CM धामी ने की परिजनों से बात, 4 लाख की मदद की; पढ़ें एंजेल चकमा मर्डर केस में अब तक क्या हुआ
देहरादून में त्रिपुरा के छात्र एंजेल चकमा की मौत का मामला लगातार सुर्खियों में है. पुलिस का दावा है कि यह घटना नस्लीय नहीं बल्कि मजाक से शुरू हुए विवाद का नतीजा थी, जबकि परिवार और छात्र संगठन इसे नस्लीय हमला बता रहे हैं. 9 दिसंबर को हुए हमले में गंभीर रूप से घायल एंजेल 17 दिन तक जिंदगी से जूझता रहा और 26 दिसंबर को उसकी मौत हो गई. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने परिजनों से बात कर 4 लाख रुपये की सहायता का ऐलान किया है. मामले में पांच आरोपी गिरफ्तार हैं, एक फरार है.;
देहरादून में त्रिपुरा के छात्र एंजेल चकमा की मौत से जुड़े कथित नस्लीय हमले के मामले ने अब नया मोड़ ले लिया है. उत्तराखंड पुलिस ने पीड़ित परिवार के नस्लवाद से जुड़े आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि यह घटना किसी भी तरह से नस्लीय नहीं थी, बल्कि एक मजाक से उपजे विवाद का नतीजा थी. पुलिस के इस दावे के बाद मामला और ज्यादा संवेदनशील और बहस के केंद्र में आ गया है.
एक तरफ पुलिस इसे आपसी गलतफहमी और अचानक भड़की हिंसा बता रही है, तो दूसरी ओर मृतक का परिवार, उत्तर-पूर्व के छात्र संगठन और कई राजनीतिक नेता इसे नस्लीय घृणा से जुड़ा अपराध मान रहे हैं. एंजेल चकमा की मौत ने देशभर में उत्तर-पूर्वी छात्रों की सुरक्षा और सम्मान को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
पुलिस का दावा: नस्लीय हमला नहीं, मजाक से शुरू हुआ विवाद
देहरादून के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) अजय सिंह ने इंडिया टुडे टीवी से बातचीत में कहा कि 'कोई उकसावा नहीं था.' उन्होंने स्पष्ट किया कि “यह लड़ाई एक मजाक से शुरू हुई थी. इसमें नस्लवाद जैसा कुछ भी साबित नहीं होता.” SSP अजय सिंह ने यह भी कहा कि आरोपियों के नस्लीय टिप्पणी करने का सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि 'एक आरोपी नेपाल का रहने वाला है और दूसरा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र से है.' NDTV से बातचीत में भी उन्होंने दोहराया कि यह घटना नस्लीय श्रेणी में नहीं आती. 'कुछ लोग आपस में मजाक में आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल कर रहे थे, जिससे यह गलतफहमी पैदा हुई कि टिप्पणियां उन छात्रों पर की जा रही हैं.'
भाई का आरोप: ‘चिंकी’ कहकर किया गया हमला
मृतक छात्र के भाई माइकल ने पुलिस के दावों को खारिज करते हुए आरोप लगाया कि उन्हें निशाना बनाया गया. उन्होंने इंडिया टुडे से कहा कि 'वहां एक समूह शराब पी रहा था. हमारे पहुंचते ही वे हमें ‘चिंकी’ कहकर चिढ़ाने लगे.” उन्होंने आगे बताया कि “जब मैंने इसका विरोध किया तो मुझ पर कड़ा से हमला किया गया. मेरे भाई ने बीच-बचाव किया, तो उसकी पीठ में चाकू मार दिया गया.”
पिता का आरोप: FIR दर्ज करने में देरी
एंजेल चकमा के पिता तरुण प्रसाद चकमा, जो बीएसएफ में जवान हैं, ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि “शुरुआत में पुलिस ने FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया और इसे ‘मामूली मामला’ बताया.” उनका कहना है कि 'जब हम खुद पहुंचे, तब जाकर मामला दर्ज हुआ. इस देरी ने उस वक्त हमारे दर्द को और बढ़ा दिया, जब मेरा बेटा जिंदगी और मौत से जूझ रहा था.'
17 दिन जिंदगी से जूझता रहा एंजेल
पुलिस के मुताबिक, 9 दिसंबर को बाजार में हुए विवाद के दौरान एंजेल और उसके भाई पर चाकू और अन्य धारदार हथियारों से हमला किया गया. माइकल के सिर पर वार किया गया, जबकि एंजेल की गर्दन और पेट में चाकू मारा गया. 17 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद 26 दिसंबर को 24 वर्षीय एंजेल चकमा की मौत हो गई.
छात्र संगठनों ने उठाए नस्लवाद पर सवाल
नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स एसोसिएशन के नेता ऋषिकेश बरुआ ने कहा कि 'यह देश विविधताओं से भरा है. छात्रों से यह कहना कि वे साबित करें कि वे हिंदी बोल सकते हैं, बेहद शर्मनाक है.” उन्होंने आरोप लगाया कि उत्तर-पूर्व के अधिकतर छात्र किसी न किसी स्तर पर नस्लवाद का सामना करते हैं और इसके खिलाफ सख्त कानून की जरूरत है. राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: ‘राष्ट्रीय शर्म’. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस घटना को 'मानवता और संवेदनशीलता पर गहरा आघात' बताया.
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इसे 'राष्ट्रीय शर्म” करार देते हुए कहा कि 'कोई भी भारतीय अपने ही देश में पराया महसूस न करे.' अरविंद केजरीवाल ने घटना को 'दिल दहला देने वाला' बताते हुए नस्लवाद और हेट क्राइम के खिलाफ राष्ट्रीय कानून की मांग की. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एंजेल के पिता से फोन पर बात कर सख्त कार्रवाई का भरोसा दिया है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार पीड़ित परिवार के साथ पूरी तरह खड़ी है. अब तक इस मामले में पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है, जबकि एक नेपाली नागरिक फरार बताया जा रहा है.