कौन हैं मौलाना साजिद रशीदी? डिंपल यादव पर भद्दी टिप्पणी कर फंसे, अब दर्ज हुआ मुकदमा

टीवी डिबेट के दौरान समाजवादी पार्टी सांसद डिंपल यादव के पहनावे पर भद्दी टिप्पणी करना मौलाना साजिद रशीदी को भारी पड़ गया है. वीडियो वायरल होने के बाद लखनऊ के विभूतिखंड थाने में उनके खिलाफ FIR दर्ज हो गई है. उन पर IT एक्ट समेत कई धाराएं लगाई गई हैं. इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर भी भारी विरोध हो रहा है.;

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Edited By :  नवनीत कुमार
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भारत में टीवी डिबेट्स सिर्फ विचारों के आदान-प्रदान का मंच नहीं रह गए हैं, वे अब अक्सर नफ़रत, भड़काऊ टिप्पणियों और सामाजिक तनाव का स्रोत बनते जा रहे हैं. हालिया मामला ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद रशीदी का है, जिन्होंने एक टीवी डिबेट शो में समाजवादी पार्टी सांसद डिंपल यादव के पहनावे को लेकर एक अशोभनीय टिप्पणी कर दी. मामला उस वक्त चर्चा में आया जब दिल्ली के संसद मार्ग स्थित मस्जिद में हुई समाजवादी पार्टी की बैठक पर चर्चा चल रही थी.

टीवी स्क्रीन पर जब मस्जिद में हुई बैठक की तस्वीरें दिखाईं जा रही थीं, तो मौलाना ने दो महिलाओं की ओर इशारा किया – एक सांसद इकरा हसन थीं जिन्होंने सिर ढक रखा था, और दूसरी थीं डिंपल यादव. मौलाना ने यह कहते हुए डिंपल यादव पर टिप्पणी की कि वे बिना सिर ढके मस्जिद में बैठी थीं, जो इस्लामिक मर्यादाओं के खिलाफ है. हालांकि, डिंपल यादव मुस्लिम नहीं हैं, और धार्मिक मर्यादाएं उनके लिए बाध्यकारी नहीं. इस पर टिप्पणी कर मौलाना ने न केवल एक महिला की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को चुनौती दी, बल्कि यह भी जता दिया कि किस तरह धार्मिक कट्टरता महिलाओं की आज़ादी पर हमला करती है.

डिंपल यादव पर हमला या महिला समाज पर?

यह मसला किसी एक सांसद या राजनेता पर व्यक्तिगत टिप्पणी भर नहीं है. जब किसी महिला को उसके पहनावे के आधार पर सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जाता है, तो यह पूरे महिला समाज के आत्मसम्मान पर चोट होती है. डिंपल यादव एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि हैं, और उन पर इस प्रकार की सार्वजनिक टिप्पणी ना केवल अनुचित, बल्कि लोकतांत्रिक गरिमा का उल्लंघन भी है. इस विवाद ने एक बार फिर यह उजागर कर दिया कि राजनीति और धार्मिक मंचों पर महिलाओं को किस प्रकार निशाना बनाया जाता है.

विभूतिखंड थाने में मामला दर्ज

यह बयान सिर्फ मीडिया की सुर्खियों तक नहीं रुका. समाजवादी पार्टी नेता प्रवेश यादव ने लखनऊ के विभूतिखंड थाने में मौलाना साजिद रशीदी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाई. दर्ज एफआईआर में उन पर कई गंभीर धाराएं लगाई गई हैं – जैसे BNS की धारा 79 (महिला के सम्मान को ठेस पहुंचाना), 196 (धार्मिक वैमनस्य फैलाना), 197 (धार्मिक भावनाओं को आहत करना), 299 (आपराधिक डराना), 352, 353 और IT Act की धारा 67 (अश्लील सामग्री का प्रसारण). इन धाराओं के तहत सजा तीन से पांच साल तक हो सकती है, साथ ही जुर्माना भी भारी भरकम.

कौन हैं मौलाना साजिद रशीदी?

मौलाना साजिद रशीदी ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं और देशभर के धार्मिक व राजनीतिक मुद्दों पर अपनी बेबाक और अक्सर विवादास्पद राय रखने के लिए जाने जाते हैं. वे विभिन्न टीवी डिबेट्स में नियमित रूप से शामिल होते हैं, जहां उनके बयान अक्सर विवाद खड़े करते हैं. साजिद रशीदी कई बार हिंदू धार्मिक प्रतीकों, ऐतिहासिक व्यक्तित्वों और मुस्लिम समुदाय के राजनीतिक झुकाव पर ऐसे बयान दे चुके हैं जिन पर तीखी प्रतिक्रियाएं आई हैं. वे खुद को मुसलमानों की आवाज़ बताने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनके बयान अक्सर धार्मिक और सामाजिक टकराव की वजह बनते हैं.

कानून की धाराएं और उनकी गंभीरता

एफआईआर में जिन धाराओं का उल्लेख है, उनमें से कई भारतीय समाज के संवेदनशील पहलुओं को सुरक्षित रखने के लिए बनाई गई हैं. उदाहरण के लिए, IT Act की धारा 67 का सीधा संबंध साइबर अपराधों से है – जिसमें किसी भी प्रकार की आपत्तिजनक या अश्लील सामग्री का डिजिटल ट्रांसमिशन शामिल है. वहीं BNS की धारा 196 और 197 धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने वाले बयानों पर लगाई जाती हैं. इस मामले में चूंकि मौलाना का बयान एक राष्ट्रीय टीवी चैनल पर प्रसारित हुआ, इसलिए इसका प्रभाव और गंभीरता दोनों अधिक मानी जा रही है.

पहले भी दे चुके हैं विवादित बयान

यह पहली बार नहीं है जब मौलाना साजिद रशीदी विवादित बयान के कारण घेरे में आए हों. फरवरी 2024 में उन्होंने खुद कहा था कि उन्होंने बीजेपी को वोट दिया. यह बयान तब आया जब उन्हें एक ‘धर्मनिरपेक्ष मुस्लिम नेतृत्व’ के तौर पर देखा जाता था. इसके अलावा उन्होंने शिवाजी महाराज की उपलब्धियों पर भी सवाल खड़े किए थे और यह कहा था कि शिवाजी को इतिहास में बेवजह बड़ा बना दिया गया है. उनके कई बयानों को लेकर पहले भी मुस्लिम समुदाय, राजनेताओं और इतिहासकारों की ओर से तीखी प्रतिक्रियाएं आ चुकी हैं.

राजनीति, धर्म और महिला गरिमा के बीच टकराव

इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर उस त्रिकोण को उजागर कर दिया है जिसमें राजनीति, धर्म और महिला गरिमा बार-बार टकराते हैं. मौलाना का बयान उस सोच का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें एक महिला की सार्वजनिक भूमिका को उसके पहनावे और 'धार्मिक मर्यादा' से तौला जाता है. यह घटनाक्रम बताता है कि कैसे धार्मिक पहचान की आड़ में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कुचलने की कोशिश की जाती है. यहां सवाल केवल डिंपल यादव का नहीं, बल्कि पूरे समाज के उस ढांचे का है जो महिलाओं को परखने के लिए कपड़ों और संस्कारों की परिभाषा रचता है.

क्या होगी कार्रवाई?

अब सबसे अहम सवाल यही है कि क्या इस बार केवल सोशल मीडिया पर नाराज़गी दिखेगी या वास्तव में कोई ठोस कानूनी कार्रवाई भी होगी. क्या मौलाना को गिरफ़्तार किया जाएगा? क्या TV चैनल इस तरह के पैनलिस्ट को बुलाने पर पुनर्विचार करेंगे? और क्या राजनेता सार्वजनिक मंचों पर महिलाओं के लिए एक स्पष्ट मर्यादा की मांग करेंगे? यह मामला सिर्फ एक FIR नहीं, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी है कि वक्त आ गया है जब धर्म और राजनीति के नाम पर महिलाओं की गरिमा से खिलवाड़ बंद हो.

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