यूपी में वोटर लिस्ट पर धर्मसंकट: साधु-संतों के ‘मां के नाम’ पर अटकी बीजेपी, चुनाव आयोग ने बढ़ाई SIR की डेडलाइन

SIR in Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश के मंदिर नगरों - अयोध्या, वाराणसी और मथुरा-वृंदावन - में साधु-संतों के SIR (Special Intensive Revision) फॉर्म भरवाने में भाजपा को बड़ी परेशानी हो रही है. साधु-संत मातृ-नाम का कॉलम भरने से हिचक रहे हैं क्योंकि संन्यास परंपरा में वे अपने गुरु को पिता मानते हैं और जैविक माता का नाम उपयोग नहीं करते. कई साधुओं ने ‘जानकी’, ‘सीता’ या ‘कौशल्या’ का नाम लिख दिया है ताकि फॉर्म अधूरा न रहे. BJP को डर है कि बिना मातृ-नाम वाले फॉर्म रिजेक्ट होकर साधुओं के नाम मतदाता सूची से हट सकते हैं - जो पार्टी के लिए बड़ा नुकसान होगा, खासकर अयोध्या में जहां 16,000 से अधिक साधु-संत हैं.;

SIR in Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी - अयोध्या, काशी (वाराणसी) और मथुरा-वृंदावन - इस बार चुनावी राजनीति में एक अजीब और अप्रत्याशित समस्या का केंद्र बन गई हैं. इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के अुसार इसके पीछे की वजह है साधु-संतों के मतदाता सूची में शामिल होने के लिए जरूरी ‘Special Intensive Revision (SIR)’ फॉर्म, जिन्हें भरवाने में भाजपा को अभूतपूर्व मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

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इसी बीच, चुनाव आयोग ने गुरुवार को SIR फॉर्मों की अंतिम तारीख 11 दिसंबर से बढ़ाकर 26 दिसंबर कर दी, जिससे भाजपा को थोड़ी राहत मिली है. लेकिन सवाल यह है कि आखिर ऐसी क्या बाधा आ गई कि सत्ताधारी दल को उन साधु-संतों को मनाना पड़ रहा है जिन्हें वह अपना ‘सबसे मजबूत समर्थन आधार’ मानती है?

मातृ-नाम का कॉलम बना सबसे बड़ा संकट

द इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सबसे पेचीदा समस्या यह है कि साधु-संत SIR फॉर्म में ‘मां का नाम’ लिखने से हिचक रहे हैं, जबकि यह कॉलम खाली रहने पर फॉर्म रिजेक्ट होने की आशंका है. कई साधु-संत, अपने पारंपरिक धर्म-मार्ग के अनुसार, गुरु का नाम ही अपने ‘पिता’ के रूप में लिखते हैं, क्योंकि वे गृहस्थ जीवन त्यागकर संन्यास लेते हैं. ऐसे में वे अपनी जैविक मां का नाम लिखना उचित नहीं मानते.

“जो नहीं जानते, वे जानकी लिखते हैं” - रामविलास वेदांती

अयोध्या के पूर्व BJP सांसद और विहिप नेता रामविलास वेदांती ने तो फॉर्म में अपनी मां के नाम की जगह ‘जानकी’ (सीता माता) लिख दिया. वे कहते हैं, “मां का नाम लिखना जरूरी है, इसलिए मैंने जानकी लिखा है. जो साधु अपनी मां का नाम नहीं जानते, वे जानकी ही लिखते हैं.” यही नहीं, दिगंबर अखाड़े के महामंडलेश्वर प्रेम शंकर दास ने भी ‘जानकी’ को अपनी मां बताया और कहा, “हम विरक्त परंपरा से आते हैं… हमारे गुरु भी गृहस्थ नहीं थे. धार्मिक कारणों से मैंने जानकी को ही अपनी माता माना है.”

BJP की चिंता: नाम कटे तो वोट बैंक को झटका

स्थानीय भाजपा नेताओं के अनुसार, “अगर साधुओं के फॉर्म में मां का नाम खाली रहा, तो SIR के दौरान उनके नाम हटाए जा सकते हैं.” “यह पार्टी के लिए बड़ा झटका होगा, क्योंकि अयोध्या में करीब 16,000 साधु-संत हैं.” अयोध्या - जो फैज़ाबाद लोकसभा सीट का हिस्सा है - में 2024 की हार के बाद भी BJP को उम्मीद साधु समाज से ही थी. 2024 की चुनावी शिकस्त के बाद एकमात्र राहत यही थी कि अयोध्या विधानसभा क्षेत्र में भाजपा 4,667 वोटों से आगे रही.

पार्टी के लिए चिंता यह है कि राम मंदिर आंदोलन से जुड़े कई बड़े महंत अखाड़ा प्रमुख और शहर के बड़े आश्रमों के संत यही वोट बैंक बनाते हैं. अवध क्षेत्र के बीजेपी महासचिव विजय प्रताप सिंह ने इंडियन एक्‍सप्रेस को बताया, “अधूरे फॉर्म रिजेक्ट होने का डर था. इसलिए हमने साधुओं से कहा कि वे जानकी या अपनी परंपरा के किसी पवित्र नाम को मातृ-नाम के रूप में भरें. कई संतों ने हमारी बात मान ली.”

अधिकारियों की दुविधा: आस्था बनाम कानूनी दस्तावेज

अयोध्या के एडीएम और ईआरओ अनिरुद्ध प्रताप सिंह का कहना है कि वे साधुओं से बात कर रहे हैं. वो कहते हैं, “हम समझा रहे हैं कि यह कानूनी दस्तावेज है. अगर वे चाहें तो जैविक मां का नाम लिख सकते हैं, या अपनी धार्मिक परंपरा के अनुसार भी कुछ लिख सकते हैं.” उन्होंने माना कि “कुछ साधु-संत ‘सीता’ या ‘जानकी’ लिख रहे हैं. हम वही लिख रहे हैं जो वे बताते हैं.” UP के चीफ इलेक्टोरल ऑफिसर नवदीप रिनवा से संपर्क किया गया, पर वे उपलब्ध नहीं थे.

दूसरी चुनौती: साधु-संत स्थायी पते पर नहीं मिल रहे

बड़ी दिक्कत यह भी है कि साधु-संत देशभर में धार्मिक कार्यक्रमों, पूजा-अनुष्ठान और यात्राओं में लगातार घूमते रहते हैं. इस वजह से BLOs उन्हें उनके पते पर नहीं पा रहे. एक BJP नेता ने बताया, “फॉर्म ऑनलाइन भरने का विकल्प है, लेकिन ज़्यादातर साधु-संत तकनीक का उपयोग नहीं कर पाते. इसलिए कार्यकर्ताओं को ही फॉर्म भरवाने का निर्देश दिया गया है.”

वृंदावन की मिसाल: 167 फॉर्म दिए, 43 ही लौटे

वृंदावन के एक नेता के मुताबिक, ''सुदामा कुटी आश्रम में 167 फॉर्म दिए गए थे. अब तक सिर्फ 43 वापस आए हैं. बाकी के संत यात्रा पर हैं और उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा.'' उन्होंने कहा, “अगर नाम कट गए, तो यह पार्टी के लिए मुश्किल होगी.” अयोध्या के सिद्धपीठ रामधाम आश्रम के महंत प्रेम शंकर दास ने बताया, “मेरे आश्रम में 12 वोटर हैं. उनमें से छह धार्मिक कार्यक्रमों के लिए बाहर गए हुए हैं. “BLO उनके फॉर्म अभी तक नहीं दे पाए हैं. मिलते ही उन्हें बुलाकर फॉर्म भरवाऊंगा.”

वाराणसी और मथुरा-वृंदावन में भी यही दिक्कत

वाराणसी और वृंदावन में भी कई साधु मातृ-नाम का कॉलम खाली छोड़ रहे हैं. लेकिन वहां के BJP नेताओं को भरोसा है कि “अगर नाम हट भी गए तो ड्राफ्ट रोल आने के बाद दावे और आपत्तियां दाखिल कर देंगे.” फिर भी, पार्टी स्थानीय स्तर पर कोई जोखिम नहीं लेना चाहती, इसलिए बूथ स्तर के कार्यकर्ता, स्थानीय अधिकारी और अखाड़ा परिषद के संपर्क सूत्र लगातार आश्रमों का दौरा कर रहे हैं.

चुनाव आयोग की डेडलाइन बढ़ने से BJP को राहत क्यों?

पहले अंतिम तारीख 11 दिसंबर थी, और उससे पहले तक बड़ी संख्या में फॉर्म अधूरे थे. अब नई तारीख 26 दिसंबर होने से साधुओं को वापस बुलाने, फॉर्म समझाने और दस्तावेज़ इकट्ठे करने का समय मिल गया है. भाजपा को आशा है कि अब अधिकतर साधु-संतों के नाम हटने से बच जाएंगे.

चुनाव आयोग ने हालांकि इस स्थिति पर औपचारिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन अधिकारियों के संकेत साफ हैं कि कानूनी प्रक्रिया में बदलाव नहीं होगा, फॉर्म पूरा होना अनिवार्य है, धार्मिक मान्यताओं के नाम स्वीकार किए जा सकते हैं पर दस्तावेज़ अधूरा नहीं चलेगा.

पार्टी इसे ‘संवेदनशील मुद्दा’ मान रही है, क्योंकि राम मंदिर आंदोलन से जुड़े साधु-संतों का समर्थन बीजेपी की राजनीति का बुनियादी स्तंभ रहा है. यूपी के मंदिर नगरों में इस बार चुनावी राजनीति एक अनूठे मोड़ पर है. भाजपा, जिसे साधु-संतों का स्वाभाविक समर्थन मिलता है, आज उन्हीं के फॉर्म भरवाने में संघर्ष कर रही है. मां के नाम जैसे सरल प्रतीत होने वाले कॉलम ने आस्था, परंपरा, कानूनी प्रक्रियाएं और राजनीति, सबको एक जटिल रेखा पर ला खड़ा किया है. चुनाव आयोग द्वारा तारीख बढ़ाए जाने से फिलहाल BJP की मुश्किलें कम हुई हैं, लेकिन असली परीक्षा आने वाले दिनों में होगी - जब यह तय होगा कि आखिर कितने साधु-संतों के नाम मतदाता सूची में सुरक्षित रह पाते हैं.

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