IPS Ashish Gupta: अब यूपी को DGP नहीं ‘बुलडोजर-मैन’ पुलिस चीफ चाहिए, जो हुकूमत के इशारे पर ‘नाच’ सके!

उत्तर प्रदेश में वरिष्ठता क्रम को दरकिनार कर 1991 बैच के आईपीएस राजीव कृष्ण को डीजीपी बनाए जाने पर विवाद गहरा गया है. 1989 बैच के वरिष्ठ अधिकारी आशीष गुप्ता की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति और उन्हें डीजीपी न बनाए जाने को लेकर समाजवादी पार्टी ने योगी सरकार पर निशाना साधा है. तो क्‍या डीजीपी बनने के लिए केवल वरिष्‍ठता ही पैमाना होती है?;

By :  संजीव चौहान
Updated On : 15 Jun 2025 8:00 PM IST

1989 बैच यूपी कैडर के आईपीएस अधिकारी आशीष गुप्ता (IPS Ashish Gupta) ने उत्तर प्रदेश पुलिस सेवा पूरी होने से करीब डेढ़ साल पहले स्वैच्छिक-सेवानिवृत्ति जबसे ली है. तभी से वे चर्चाओं में हैं. इन चर्चाओं को तब और बल मिला कहिए या फिर रफ्तार मिली जब, आशीष गुप्ता का इस्तीफा मंजूर कर लिया गया. इस्तीफा मंजूर किए जाने के आसपास ही उनसे आईपीएस सेवा में 2 बैच जूनियर यानी, 1991 बैच के आईपीएस अधिकारी राजीव कृष्ण (DG UP IPS Rajeev Krishna) को योगी की हुकूमत ने ‘काम-चलाऊ’ (जुगाड़ू) पुलिस महानिदेशक बना दिया. राजीव कृष्ण को डीजीपी बनाए जाते ही उन चिंगारियों को ‘तेज हवा’ मिलने लगी, जिनमें दबी जुबान कहा जा रहा था कि इस बार अगर राज्य सरकार ने आईपीएस वरिष्ठता क्रम के हिसाब से पुलिस महानिदेशक नहीं बनाया, तो सरकार के इस कदम से कई वरिष्ठ आईपीएस का ‘दिल’ टूट जाएगा.

उनमें ‘हीन-भावना’ घर कर जाएगी. फिलहाल हुआ भी वही जिसकी आशंका थी. राज्य में आईपीएस के वरिष्ठता क्रम को नजरंदाज करके, साल 2025 के जून महीने में सूबे में काम-चलाऊ पुलिस महानिदेशक नियुक्त कर दिया गया. क्या यह सही हुआ? इसी सवाल के जवाब के लिए स्टेट मिरर हिंदी ने तमाम संबंधित पक्षों से ऑन-रिकॉर्ड ऑफ रिकॉर्ड बात की. मसलन, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश के तीन पूर्व पुलिस महानिदेशक (वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी पूर्व आईपीएस डीजी बीएसएफ, डीजीपी असम व उत्तर प्रदेश प्रकाश सिंह, यूपी के पूर्व डीजीपी डॉ. विक्रम सिंह, उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी) और कुछ मौजूदा सत्ता-विरोधी (विपक्ष) पक्षों के पदाधिकारियों से.

DGP बनने को IPS ही पहली योग्यता नहीं

आशीष गुप्ता की सेवा बेदाग रही है. वह राज्य की हुकूमत, आईपीएस लॉबी, सत्ता के गलियारों में भी कभी चर्आंओं में नहीं रहे, फिर राज्य पुलिस महानिदेशक बनने के वरीष्ठता क्रम पर भी खरे उतरते हैं, फिर भी इन्हें डीजीपी का पद न सौंपकर, अस्थाई रूप से उनके जूनियर बैच के आईपीएस को पुलिस महकमे की लगाम सौंप दी गई..क्या यह सही है? सवाल के जवाब में भारतीय पुलिस सेवा 1959 यूपी कैडर के दबंग आईपीएस प्रकाश सिंह ने कहा, “सूबे का डीजीपी बनना हर किसी के वश की बात नहीं होती है. डीजी बनने वाले का सिर्फ आईपीएस होना ही प्रथम योग्यता नहीं होती है.”

ऐसे वरिष्ठ आईपीएस DGP न बनाए जाएं

भारत सीमा सुरक्षा बल के रिटायर्ड महानिदेशक, असम और यूपी के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह बात जारी रखते हुए बोले, “कई आईपीएस सिर्फ पुलिस मुख्यालय में कागज कलम चलाते-चलाते, फाइलों से खेलते-खेलते पुलिस महकमे में वरिष्ठ हो जाते हैं. उन्हें जब पुलिस की प्रैक्टिकल नॉलेज ही नहीं तो कैसे और क्यों ऐसों को सिर्फ उनकी आईपीएस की वरिष्ठता ध्यान में रखते हुए, राज्य पुलिस की बागडोर सौंप दी जानी चाहिए. कानून, पुलिस और जन-सुरक्षा से खिलवाड़ करने के लिए. मुझे याद है हरियाणा में साल 2016 में बड़े दंगा-फसाद हो गया था. उसकी जांच मेरे पास आई. मैंने जांच की तो पता चला कि उस वक्त राज्य के पुलिस महानिदेशक पद पर मौजूद आईपीएस अधिकारी तो किसी भी दंगा-स्थल का दौरा करने ही नहीं पहुंचे थे.

 

दफ्तर में बैठकर ‘पुलिस-कानून’ नहीं हांके जाते

जांच को दौरान जब मैंने उनसे पूछा कि राज्य का पुलिस महानिदेशक होने के बाद भी वे हालात गंभीर होने वाले जिलों में या स्थानों पर खुद दौरान करने क्यों नहीं गए? उनका जवाब था कि उनकी तबियत खराब थी. और वे पुलिस महानिदेशालय (DG Haryana) में ही बैठकर काम कर रहे थे. अब सोचिए ऐसे किसी वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी के हाथ में सूबे की पुलिस और कानून-व्यवस्था की बागडोर देकर क्या किसी सूबे की हुकूमत को अपना राज्य बैठे-बैठे ही फुंकवा डालना चाहिए? मेरी जांच रिपोर्ट के आधार पर ही वो आईपीएस और हरियाणा के पुलिस महानिदेश पद से हटा दिये गए थे. सूबे के डीजीपी का दायित्व है हर हाल में प्रैक्टिकल पुलिसिंग पर अमल करना और अमल करवाना.”

DGP नियुक्ति में निजी-राजनीतिक स्वार्थ!

स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में बीएसएफ (DG BSF) के रिटायर्ड महानिदेशक आईपीएस प्रकाश सिंह (IPS Prakash Singh) बोले, “देखिए राजनीति हो या फिर कोई और. निजी स्वार्थ सबके कहीं भी नीहित हो सकते हैं होते हैं. फिर चाहे वो देश-प्रदेश की राजनीति हो या फिर ब्यूरोक्रेसी. जहां तक किसी राज्य का पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) नियुक्त करने में राजनीति या निजी स्वार्थ-साधने का सवाल है, तो मुझे यह बताइए इससे आज देश का कौन सा महकमा बचा है. सब अपने-अपने चहेते को अपने हिसाब-किताब से ‘फिट’ करते हैं. आप तो यूपी के डीजीपी की नियुक्ति की बात कर रहे हैं. कई राज्यों के राज्यपाल, उप-राज्यपाल तक ऐसे लगे हुए हैं, जिन्हें कानून की एबीसीडी नहीं पता है. चूंकि वह किसी के करीबी रहे होंगे तो उन्हें ऊंची पहुंच के चलते, राज्यपाल या उप-राज्यपाल बना दिया गया है. कौन सोचता है जलते हुए मणिपुर जैसे राज्यों के बारे में?

 

डीजीपी सूबे की हुकूमत की पसंद पर निर्भर

आईपीएस सेवा से ऐच्छिक सेवा-निवृत्ति ले कर जा चुके यूपी के वरिष्ठ पुलिस अफसर आशीष गुप्ता को डीजीपी न बनाए जाने और उनके दो बैच जूनियर आईपीएस राजीव कृष्ण के हाथों में सूबे की पुलिस-कानून व्यवस्था की लगाम दे दिए जाने के बारे में पूछे जाने पर पूर्व पुलिस महानिदेशक असम-यूपी प्रकाश सिंह बोले, “कोई भी ब्यूरोक्रेट निर्धारित नियम कानूनों के हिसाब से ऐच्छिक सेवा-निवृत्ति लेने के लिए स्वतंत्र है. जहां तक बात आशीष गुप्ता को डीजीपी न बनाए जाने की है या उनके जूनियर राजीव कृष्ण को डीजीपी बना दिए जाने की बात.

तो यह सूबे की सरकार पर निर्भर करता है कि उसकी नजर में कौन आईपीएस अधिकारी, राज्य की कानून-पुलिस व्यवस्था संभाल पाने में किस हद की काबिलियत रखता है? अगर हुकूमत का डीजीपी बनाया हुआ कोई आईपीएस अधिकारी राज्य में कानून-पुलिस व्यवस्था नहीं संभाल पाता है तो भी तो, ठीकरा उसी के सिर फूटेगा न. और फिर जब आशीष गुप्ता ने एच्छिक सेवा-निवृत्ति के लिए पहले ही आवेदन कर दिया होगा, तब फिर उन्हें राज्य का डीजीपी बनाए जाने पर विचार आने का सवाल ही कहां कैसे उठता है?”

मैं राजनीति के चक्कर में कभी नहीं रहा

एक सवाल के जवाब में बेबाकी से बोलते हुए पूर्व आईपीएस और दो राज्यों के डीजी, बीएसएफ जैसी दुनिया की बड़ी फोर्स के मुखिया रह चुके प्रकाश सिंह बोले, ‘बात अगर सिर्फ सिफारिश पर डीजी या डीजीपी बना दिए जाने की करूं तो, मैं इससे दूर रहा हूं. आज जहां आईएएस आईपीएस को एक राज्य का चीफ-सेक्रेटरी-पुलिस महानिदेशक बनने का मौका नहीं मिल पा रहा है. मैं उत्तर प्रदेश और आसाम का डीजीपी, बीएसएफ का डीजी बनाया गया था. मेरा कोई पॉलिटिकल लिंक नहीं था. न ही मेरी और कहीं ऐसी जगह पर घुसपैठ थी जो मुझे डीजी या डीजीपी बनवाने की सिफारिश हो पाती. मेरा पुलिस सर्विस ट्रैक रिकॉर्ड भी यही रहा कि मैं किसी की नहीं सुनता हूं. जो अपनी आंख कान से दिखाई सुनाई पड़ता है. उसी पर काम करता हूं.’

CM को बोलकर डीजीपी पद छोड़ दिया था

अपनी बात जारी रखते हुए प्रकाश सिंह कहते हैं, “इसके बाद भी मुझे दो स्टेट का पुलिस मुखिया (असम और उत्तर प्रदेश) तथा बीएसएफ का डीजी हुकूमत ने ही बनाया था. दरअसल इन पदों पर बात सीनियरी-जूनियरटी की नहीं होती है. जिसे प्रैक्टिल नॉलिज फोर्स को संभालने की होती है. उसे प्राथमिकता दी जाती है. हां, इतना जरूर है कि जब ब्यूरोक्रेट के स्वाभिमान पर बात आ जाए, तो उसको पहली प्राथमिकता पर अपना स्वाभिमान रखना चाहिए. जब मैं आसाम का डीजीपी बनाया गया तो उसके कुछ दिन बाद ही आसाम के तत्कालीन चीफ मिनिस्टर ने मुझे अपने हिसाब से हांकना शुरू किया था. मैंने उन्हें साफ कह दिया कि स्टेट पुलिस का बॉस मैं हूं. राज्य की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर है. आप जरूरत से ज्यादा टांग न अड़ाएं. वे माने नहीं और मैंने डीजीपी आसाम की कुर्सी छोड़ने में एक सेकेंड का वक्त नहीं लिया.”

 

आशीष गुप्ता की काबिलियत पर शक नहीं

इस बारे में 1974 बैच के यूपी कैडर के पूर्व आईपीएस और उत्तर प्रदेश के रिटार्ड पुलिस महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह (Ex IPS DG UP Vikram Singh) ने कहा, “आशीष गुप्ता ने वीआरएस खुद लिया है. तो उन्होंने अपने भविष्य के हित में ही लिया होगा. ऐच्छिक सेवा-निवृत्ति किसी को जबरिया नहीं दिलवाई जाती है. जहां तक बात आशीष गुप्ता की काबिलियत की है तो उस पर मुझे तो कतई संदेह नहीं है. आशीष गुप्ता के पुलिस-सेवा के प्रति कर्तव्यनिष्ठता के चर्चे पूरे देश की पुलिस में मशहूर हैं. उन्होंने अपनी सेवाएं पुलिस अकादमी हैदराबाद में भी दी हैं. अनुशासन-ईमानदारी की वे मिसाल रहे हैं. अपने काम से काम रखते हैं. निदेशक प्रधानमंत्री कार्यालय के तौर पर भी उन्होंने सेवाएं दी हैं, जहां हर आईपीएस यूं ही टहलते हुए नहीं पहुंच जाता है. उन्हें डीजीपी नहीं बनाया जा सका?

मीडिया में मुद्दा ज्यादा उछल रहा है बस

“तो आशीष गुप्ता अकेले ही तो अपने बैच के ऐसे आईपीएस नहीं हैं न, जो यूपी के डीजीपी बनने से वंचित रह गए हों. उनके बैच में और भी कई आईपीएस होंगे जिन्हें पछाड़ कर राजीव कृष्ण डीजी बना दिए गये. हुकूमत को जो बेहतर कंडीडेट लगा प्रैक्टिकल पुलिसिंग के हिसाब से उसे डीजीपी बना दिया. इसे लेकर पुलिस महकमे में और आईपीएस लॉबी में शायद उतनी चर्चा न हो रही हो जितना की मीडिया और मौजूद योगी सरकार के विरोधी राजनीतिक खेमों में, यह मुद्दा चर्चा का विषय बनकर उछल-कूद मचा रहा है.” अपनी बात पूरी करते हुए यूपी के पूर्व पुलिस महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह बोले.

अंधा बांटै रेबड़ी बार-बार अपने को दो....!

यूपी की हुकूमत पूर्व आईपीएस मुकुल गोयल के बाद से राजीव कृष्ण तक सूबे को वरिष्ठता क्रम के हिसाब से अब तक नियमित आईपीएस डीजीपी क्यों नहीं दे सकी है? पूछे जाने पर किसी जमाने में यूपी कैडर के ही आईपीएस रह चुके और बाद में उत्तराखंड राज्य के पुलिस महानिदेशक पद से रिटायर पूर्व आईपीएस बोले, “अंधा बांटै रेबड़ी-बार बार अपने को दे. अब यूपी राज्य पुलिस महानिदेशक बनाने में यही कहावत पक्की होती जा रही है. डीजीपी बनाने का नियम तो यह है कि राज्य सरकार संघ लोक सेवा आयोग में तीन वरिष्ठतम आईपीएस अफसरों के नाम प्रस्तावित करके भेजे. उन्हीं तीन नामों में से किसी एक पर यूपीएससी अपनी मुहर लगाकर सूबे की सरकार से कह देता है कि वो (राज्य सरकार) इनमें से किसी एक को अपना डीजीपी बना ले.

चूंकि नियमित और यूपीएससी से सलेक्ट करके भेजा गया डीजीपी राज्य पुलिस की हर ऊंची-नीची बात नहीं मानता है. इसलिए वह हमेशा सूबे की सरकार की आंख की किरकिरी बना रहता है. ऐसे में किसी वरिष्ठता क्रम वाले आईपीएस को डीजी बनाकर क्यों राज्य सरकार झेलेगी? इसलिए सूबे की सरकार ने अपनी मर्जी से अपनी पसंद के आईपीएस को डीजी बनाकर अपना काम निकालने दूसरे रास्ते खोज लिए हैं.”

 

हुकूमतें ‘DGP’ को अपने हिसाब से ‘हांकती’ हैं

यूपी में डीजीपी की नियुक्ति को लेकर मची ‘मनमर्जी-भेड़चाल’ को लेकर स्टेट मिरर हिंदी ने बात की उत्तर प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता- सचिव और, प्रियंका गांधी व राहुल गांधी के राइट-हैंड माने जाने वाले शैलेंद्र तिवारी से. शैलेंद्र तिवारी बोले, “देखिए सरकार चाहे समाजवादी पार्टी की हो कांग्रेस की या फिर बीजेपी की. हर हुकूमत अपनी पसंद का पुलिस चीफ लगाने का हक रखती है. ऐसा नहीं है कि मै योगी (बीजेपी) या अखिलेश यादव (सपा) की ही बात कर रहा हूं. अपने हिसाब से पुलिस को चलवाने का चलन यूपी में कांग्रेस के शासन काल में भी रहा है.

सवाल यह महत्वपूर्ण नहीं है कि सूबे की सरकार अपनी पसंद के आईपीएस को डीजीपी क्यों बनाती है? सवाल यह है जरूरी और बड़ा है कि पुलिस महकमे का कौन बॉस हुकूमत के इशारे पर पूरा नाचता है, कौन आधा नाचता है और कौन कतई नहीं नाचता है. जो डीजीपी पूरी तरह से सत्ता के इशारों पर नाचता है उसे बुलडोजर डीजीपी कहा जाता है. जैसा कि अब मौजूदा वक्त में यूपी में हो रहा है.

IPS नवनीत सिकेरा-शलभ माथुर जैसों में खोट?

बात अगर वरिष्ठता और काबिलियत के आधार पर यूपी में पुलिस महानिदेशक नियुक्त किए जाने की करूं, तो फिर मुझे कोई यह बताए कि नवनीत सिकेरा या शलभ माथुर जैसे वरिष्ठ दबंग अफसरों के भीतर कौन सा खोट और क्यों नजर आता है सूबे में मौजूद योगी की भोगी हुकूमत को? ऐसा नहीं है नवनीत सिकेरा या फिर शलभ माथुर मेरे रिश्तेदार हैं. इनकी दबंग-बेखौफ पुलिसिया-कार्यशैली की कायल राज्य की जनता भी है. इन दोनो ही अफसरों का अपराधियों में खौफ है. इन जैसों को सरकार कभी डीजीपी बनाने की नहीं सोचेगी.

इशारों पर नाचने वाला IPS चाहिए...!

क्योंकि इनका ऐब यह है कि दोनो ही आईपीएस या इनके जैसे सख्ततरीन पुलिस अफसर सूबे की सरकार के इशारों पर नाचना गवारा नहीं करेंगे या नहीं करते हैं. इसलिए इन जैसे अड़ियल आईपीएस को भला पुलिस महकमे की बागडोर राज्य की योगी हुकूमत क्यों सौंपेगी? हां, इतना जरूर है कि यूपी में बीते कुछ साल में (बीजेपी शासनकाल में) जिस तरह के काम-चलाऊ कहिए या फिर जुगाड़ू पुलिस महानिदेशक कानून-पुलिस के कंधों पर जबरदस्ती लादे जा रहे हैं, वे बुलडोजर-डीजीपी भले बन गए हों, मगर जनता के बीच एक कामयाब और अपराधियों के लिए खौफ का पहला नाम तो कतई नहीं बन सके हैं. मैं कोई नई बात नहीं बता रहा हूं. न किसी पर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति जबरदस्ती भांज रहा हूं. हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फारसी क्या? सबकुछ जमाने और यूपी की जनता के सामने हैं.” स्टेट मिरर हिंदी से खास बातचीत करते हुए बेबाकी से दो टूक बयान करते हैं, उत्तर प्रदेश राज्य कांग्रेस में अपना अच्छा-खासा रुतबा-रसूख रखने वाले शैलेंद्र तिवारी.

 

कौन IPS बुलडोचर मैन है?

समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता आईपी सिंह कहते हैं, “मैं मानता हूं कि राज्य की सरकार को अपने हिसाब से डीजीपी लगाने का हक है. मगर इस हकदारी का नाजायज फायदा उठाकर सिर्फ बुलडोजपर डीजीपी ही लगाया जाना सरासर सूबे की जनता के ऊपर अत्याचार है. जहां तक बीजेपी यानी योगी के राजकाज में पुलिस महानिदेशक लगाने की बात है तो, उसे लगाने के वक्त सिर्फ काबिलियत के रूप में यह देखा जा रहा है कि कौन आईपीएस हुकूमत के एक इशारे पर जनता की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने का माद्दा रखता है? जो आईपीएस कहीं भी बुलडोजर चलाने का दमखम रखता होगा, वही यूपी की मौजूदा सरकार के लिए काबिल और माफिक आईपीएस डीजीपी है.”

बदले की भावना से पुलिस हांकी जा रही है

समाजवादी पार्टी नेता और सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बेहद विश्वासपात्र आईपी सिंह कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि समाजवादी पार्टी या कांग्रेस की सरकारों ने अपनी पसंद के डीजीपी नहीं लगाए थे. मगर तब आईपीएस के वरिष्ठता क्रम और उसकी प्रैक्टिकल पुलिस-कानून की नॉलिज को भी उसकी काबिलियत के ब्रैकेट में लिया जाता था. ऐसा नहीं था कि पुलिस का डीजीपी हुकूमत के इशारे पर अपने ही पूर्व जबरिया रिटायर आईपीएस अमिताभ ठाकुर जैसे इंसान को कंधों पर लदवाकर, सड़क पर घसिटवा कर, पुलिस वैन में भरकर जेल में ठुकवा दे. यह कहां की पुलिसिंग और कैसी पुलिस व्यवस्था है? जिस सूबे की पुलिस अपने ही किसी पूर्व आईपीएस को रंजिशन बेइज्जत करते हुए उसे गिरफ्तार करके जेल में ठुकवाती हो, समझ लीजिए कि उस सूबे की जनता पर पुलिस किस कदर टूट कर अत्याचार कर रही होगी.”

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