बैलगाड़ी बनी एंबुलेंस! प्रसव पीड़ा से कराहती बहू को ससुर ने 3 KM का दलदल पार कर पहुंचाया अस्पताल | Video

उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले से विकास के दावों को झुठलाती दर्दनाक तस्वीर सामने आई है. गऊघाट छानी ग्राम पंचायत के परसदवा डेरा में एंबुलेंस न पहुंचने पर ससुर ने प्रसव पीड़ा से तड़पती बहू को बैलगाड़ी में बैठाकर कीचड़ और दलदल से तीन किलोमीटर सफर तय कर अस्पताल पहुंचाया. यह घटना सरकारी सिस्टम और सड़क विहीन ग्रामीण भारत की हकीकत को उजागर करती है.;

( Image Source:  X/SachinGuptaUP )
Edited By :  नवनीत कुमार
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उत्तर प्रदेश के हमीरपुर का एक ऐसा वीडियो आया है जिसने विकास की तस्वीर को खोखला साबित कर दिया है. आज़ादी के 78 साल बाद भी विकास की तस्वीरें झूठी पड़ती दिख रही हैं. सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में दिखाया गया कि सरकारी योजनाएं कागज़ों से बाहर नहीं निकलीं. जब प्रसव पीड़ा से तड़पती रेशमा को अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं पहुंच सकी, तो उसके ससुर को मजबूरी में बैलगाड़ी ही सहारा बनानी पड़ी. यह दृश्य गांव की दशा और प्रशासनिक सुस्ती की जीती-जागती मिसाल बन गया.

दूसरी ओर, यह घटना सिर्फ एक महिला की नहीं, बल्कि उस पूरे ग्रामीण भारत की कहानी है, जो अब भी सड़क, स्वास्थ्य और सुविधा जैसी बुनियादी जरूरतों से वंचित है.

दलदल में दर्द की यात्रा

गऊघाट छानी ग्राम पंचायत के परसदवा डेरा की रहने वाली रेशमा (23) रविवार सुबह प्रसव पीड़ा से कराह रही थी. एंबुलेंस ने खराब रास्ता बताकर आने से मना कर दिया, तो उसके वृद्ध ससुर कृष्ण कुमार ने बैलगाड़ी निकाली. तीन किलोमीटर दलदल और कंटीले रास्तों को पार करने के बाद वे भटुरी पहुंचे, जहां से एंबुलेंस ने रेशमा को अस्पताल पहुंचाया.

75 साल से पक्की सड़क का इंतजार

गांव के लोग बताते हैं कि आजादी के बाद से अब तक यहां पक्की सड़क नहीं बनी. करीब चार किलोमीटर का रास्ता कीचड़ और झाड़ियों से भरा रहता है, जिससे गांव के लोग बरसात में लगभग कट जाते हैं. सड़क न होने की वजह से न सिर्फ बीमारों को दिक्कत होती है, बल्कि बच्चों की पढ़ाई और रोजमर्रा की ज़िंदगी भी प्रभावित होती है.

धरना और आश्वासन, लेकिन सड़क नहीं

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, गांव के समाजसेवी अरुण निषाद ने मार्च 2024 में छह दिन का धरना दिया था और तब अधिकारियों ने चुनाव के बाद सड़क निर्माण का वादा किया था. लेकिन एक साल बीतने के बाद भी सिर्फ आश्वासन ही हाथ आया. ग्रामीणों का कहना है कि नेता हर चुनाव में वादे करते हैं, लेकिन विकास केवल भाषणों तक सीमित है.

क्या बोला प्रशासन?

मौदहा के बीडीओ राघवेंद्र सिंह ने बताया कि मनरेगा योजना के तहत सीसी रोड का काम शुरू हुआ था, लेकिन बजट खत्म होने के कारण अधूरा रह गया. अब प्रस्ताव शासन को भेजा गया है. हालांकि ग्रामीण सवाल उठाते हैं कि जब किसी वीआईपी का दौरा होता है, तब बजट की कमी क्यों नहीं होती. तहसीलदार मौदहा शेखर मिश्रा के मुताबिक, यह सड़क ग्राम पंचायत या जिला पंचायत दोनों स्तरों से बन सकती थी, लेकिन स्थानीय प्रशासन की लापरवाही ने इसे अधूरा छोड़ दिया. शासन को अब रिपोर्ट भेजकर निर्माण की सिफारिश की जाएगी.

विकास की पोल खोलता वीडियो

सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो बताता है कि ग्रामीण इलाकों में विकास सिर्फ कागजों तक सीमित है. प्रसव पीड़ा से जूझती बहू को बैलगाड़ी में ले जाते ससुर की तस्वीर अब लोगों के दिलों में सवाल छोड़ गई है. क्या ये वही भारत है जो “विकसित राष्ट्र” बनने की राह पर है? रेशमा अब ठीक है, लेकिन गांव के लोगों का दर्द अभी बाकी है. उन्हें उम्मीद है कि यह वीडियो प्रशासन को जगाने का काम करेगा और जल्द ही सड़क का निर्माण होगा, ताकि किसी और को इस तरह की मजबूरी का सामना न करना पड़े.

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