हिंसा के लिए बदनाम हुए बहराइच का गौरवशाली रहा है अतीत! राजा सुहेलदेव ने तुर्क सेना को चटाई थी धूल
भारतीय सेना में सैनिकों की तादात तुर्कों के मुकाबले कहीं ज्यादा थी. अनुभवी तुर्क सेनापतियों और जासूसों ने बैठक कर अनुमान लगाया था कि भारतीय सैनिकों की तादात लगभग 70 हजार होगी, इसका मतलब था कि उनकी संख्या तुर्कों के मुकाबले करीब 10 हजार ज्यादा थी. सालार मक़सूद भारतीय सेना के बारे में अंदरूनी जानकारी रखता था. वो हफ़्तों तक गायब हो जाता था और भेष बदलकर घूमा करता था.;
पिछले कुछ दिनों से मूर्ति विसर्जन को लेकर हुए हिंसा की वजह से उत्तर प्रदेश का बहराइच जिला का नाम काफी बदनाम हुआ है. इस दंगे में लोगों के घरों को जला दिया गया. साथ ही सामाजिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया. इस वजह से बहराइच का नाम काफी चर्चा में रहा. लेकिन बहराइच का इतिहास काफी पुराना है. यहीं पर राजा सुहेलदेव ने महमूद गजनवी के भांजे सैयद सालार मसूद गाजी को युद्ध में हराया था.
बहराइच की लड़ाई में सुहेलदेव ने 21 राजाओं का गठबंधन बनाकर सैयद सालार मसूद गाजी को युद्ध में हराया था. युद्ध में बहराइच, श्रावस्ती के साथ लखीमपुर, सीतापुर, बाराबंकी और लखनऊ के राजा भी शामिल हुए थे. इस युद्ध में घायल मसूद गंभीर घायल ही गया और बाद में उसकी मौत हो गई. उसके साथियों ने बहराइच में मसूद की बताई जगह पर ही दफना दिया था। बाद में वहां मजार बनी जो सैय्यद सालार मसूद गाजी की दरगाह के नाम से मशहूर है. आइये जानते हैं कि आखिर राजा सुहेलदेव का बहराइच से क्या कनेक्शन है?
कौन थे राजा सुहेलदेव?
महाराजा सुहेलदेव 11वीं सदी में श्रावस्ती के राजा हुए, बहराइच से लेकर श्रावस्ती जिले तक उनका राज्य फैला हुआ था. मुगल राजा जहांगीर के दौर में अब्दुर रहमान चिश्ती की लिखी किताब मिरात-इ-मसूदी के अनुसार, श्रावस्ती के राजा मोरध्वज के बड़े बेटे सुहेलदेव थे. वहीं, अवध गजेटियर के अनुसार, माघ माह की बसंत पंचमी के दिन 990 ईस्वी को बहराइच के महाराजा प्रसेनजित के घर सुहेलदेव का जन्म हुआ था. उनका शासन काल 1027 ईस्वी से से लेकर 1077 ईस्वी तक रहा था. अपने शासन काल में उन्होंने पूर्व में गोरखपुर और पश्चिम में सीतापुर तक साम्राज्य का विस्तार किया था.
जाति पर छिड़ा बवाल
राजभर और पासी जाति के लोग सुहेलदेव को अपना वंशज मानते हैं। कई लेखकों ने अपनी किताब में सुहेलदेव को भर, राजभर, बैस राजपूत, भारशिव या फिर नागवंशी क्षत्रिय तक बताया है. इसके कारण क्षत्रिय समाज इस बात पर आपत्ति जताते आ रहा है. 1950 में गुरु सहाय दीक्षित द्विदीन ने अपनी कविता में सुहेलदेव को जैन राजा बताया था. जाति को लेकर ये विवाद सालों से चलता आ रहा है. राज्य में लगभग 18 प्रतिशत राजभर हैं, ओमप्रकाश राजभर ने इसी आधार पर अपनी पार्टी का नाम सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी रखा है.
अमिश ने अपनी किताब में क्या लिखा?
भारत का रक्षक महाराजा सुहेलदेव नामक किताब में लेखक अमीश लिखते हैं कि महमूद गजनी और उसकी तुर्क सेना ने देश पर आक्रमण कर सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया था. हालांकि उसे राजा सुहेलदेव से कड़ी टक्कर मिली थी। उन्होंने बहराइच के युद्ध का वर्णन करते हुए लिखा कि राजा सुहेलदेव ने तुर्क सेना के दांत खट्टे कर दिए थे.
भारतीय सेना में सैनिकों की तादात तुर्कों के मुकाबले कहीं ज्यादा थी. अनुभवी तुर्क सेनापतियों और जासूसों ने बैठक कर अनुमान लगाया था कि भारतीय सैनिकों की तादात लगभग 70 हजार होगी, इसका मतलब था कि उनकी संख्या तुर्कों के मुकाबले करीब 10 हजार ज्यादा थी. सालार मक़सूद भारतीय सेना के बारे में अंदरूनी जानकारी रखता था. वो हफ़्तों तक गायब हो जाता था और भेष बदलकर घूमा करता था. आख़िरकार उसकी कोई भी रणनीति काम नहीं आई और उसे मुंह की खानी पड़ी.
ब्रह्माच है पुराना नाम
बहराइच जिले की सरकारी वेबसाइट पर इस जिले के पौराणिक महत्व के बारे में बताया गया है. एक पौराणिक तथ्य यह है कि बहराइच का असली नाम ब्रह्माच है. बताया जाता है कि ब्रह्मा जी ने इस क्षेत्र को ऋषियों और साधुओं की पूजा के स्थान के लिए विकसित किया था, इसलिए इस स्थान को 'ब्रह्माच' के रूप में जाना जाता था.