क्या था अजमेर का पुराना नाम और दरगाह को क्यों बताया गया शिव मंदिर? इस किताब में छिपा है बड़ा राज

Ajmer Sharif Dargah Controversy: अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर विवाद पैदा हो गया है. एक याचिका कोर्ट में दायर की गई है, जिसमें दरगाह के मंदिर होने का दावा किया गया है. एक किताब में तो ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को लेकर बड़ा दावा किया गया है.;

( Image Source:  ANI )

Ajmer Sharif Dargah History: राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह इस समय सुर्खियों में छाया हुआ है. दरगाह को मंदिर बताते हुए एक याचिका सिविल कोर्ट में दायर की गई है, जिसमें दावा किया गया है कि यहां पहले शिव मंदिर था, जिसे तोड़कर दरगाह बना दिया गया है. कोर्ट ने भी इस याचिका को स्वीकार कर लिया है. ऐसे में लोग अजमेर शरीफ दरगाह के बारे में जानना चाहते हैं. 

अजमेर शरीफ दरगाह को शिव मंदिर बताने वाली याचिका में एक किताब Ajmer : Historical and Descriptive का जिक्र किया गया है, जिसे 1911 में अजमेर की रहने वाले हर बिलास सारदा ने लिखी थी. इस किताब में कई दावे किए गए हैं. 

अजमेर का पुराना नाम क्या था?

हर बिलास सारदा की किताब में कहा गया है कि अजमेर का पुराना नाम अजयमेरु था. यह पहले चौहान राजपूतों की राजधानी हुआ करता था. ऐसा कहा जाता है कि चौहान वंश का शासन राजस्थान से लेकर हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों तक था. हाल ही में राजस्थान की भजनलाल सरकार ने अजमेर के प्रसिद्ध खादिम होटल का नाम बदलकर अजयमेरु कर दिया है.

मोहम्मद गोरी ने अजमेर को किया तबाह

किताब में बताया गया है कि अफगान शासक मोहम्मद गोरी ने 1192 में तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया था. इसके बाद उसकी सेना ने अजयमेरु को जमकर लूटा. उसने यहां पर कई लोगों को लूटा और मंदिरों को नष्ट कर दिया. अजयमेरु 400 साल तक ऐसा ही रहा. बाद में, मुगल बादशाह अकबर ने इस शहर को फिर से बसाया. कहा जाता है कि जहां आज ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है, वहां पर 15वीं सदी के मध्य तक बाघ घूमते थे.

इतिहासकार रॉबर्ट हैमिल्टन इरविन ने किया बड़ा दावा

इतिहासकार रॉबर्ट हैमिल्टन इरविन ने अपनी किताब Some Account of the General and Medical Topography of Ajmeer में एक रोचक किस्से का जिक्र किया है, जिसे उन्होंने अजमेर के सबसे विद्वान खादिम यानी दरगाह के सेवक से सुनी थी इस कहानी में बताया गया है कि अजमेर में एक जगह प्राचीन शिव मंदिर था. मंदिर का शिवलिंग कूड़ों और पत्तों से ढका हुआ था. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती यहां ध्यान लगाने के 40 दिन तक रुके थे.

इरविन ने लिखा है कि हर दिन चिश्ती पेड़ की शाखा पर पानी की छोटी मशक लटकाते थे, जो शिवलिंग के ऊपर थी. इससे पानी शिवलिंग पर गिरता रहता था. एक दिन शिवलिंग से एक आवाज आई, जिसमें चिश्ती की तारीफ की गई थी. इस कहानी की वजह से हिंदू भी दरगाह पर चादर चढ़ाने आते हैं.

14 साल की उम्र में अनाथ हुए चिश्ती

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती 14 साल की उम्र में अनाथ हो गए थे. वे 1192 ईस्वी के आसपास फारस से अजमेर आए थे. यह मुहम्मद गोरी की सेना के द्वारा मचाई गई लूटपाट को देखकर वे यहीं अपनी पत्नी बीबी उम्मतुल्लाह के साथ रुक गए. यहीं पर 1236 में चिश्ती की मृत्यु हो गई. जिस कमरे में उनकी मृत्यु हुई, उनके शव को वहीं पर दफना दिया गया. बाद में दरगाह के गुंबद का निर्माण हुमायूं के शासनकाल के दौरान 1532 में हुआ. यह बात उत्तरी दीवार पर लगे शिलालेख में भी लिखी गई है. हालांकि, यहां का वास्तविक विकास अकबर के शासनकाल के दौरान हुआ. एक अन्य इतिहासकार कैथरीन बी. अशर ने 1992 में लिखी अपनी किताब 'आर्चिटेक्चर ऑफ मुगल इंडिया' में बताया कि अकबर 1578 तक 14 बार अजमेर शरीफ की दरगाह पर आया था.

कौन थे रॉबर्ट हैमिल्टर इरविन?

रॉबर्ट हैमिल्टन इरविन 19वीं सदी के एक चिकित्सा पेशेवर और लेखक थे. उन्हें उनके किताब 'सम अकाउंट ऑफ द जनरल एंड मेडिकल टोपोग्राफी ऑफ अजमेर' के लिए जाना जाता है, जिसमें उन्होंने भारत के अजमेर की भौगोलिक और चिकित्सा स्थितियों की जांच की थी. 

Similar News