डाकू बने किसान! हथियार छोड़ उठाया हल, जानें राजस्थान की महिलाओं ने कैसे किया ये कारनामा

आज भी राजस्थान में सूखा और बंजर जमीन एक बड़ा मुद्दा है. इसके कारण अक्सर मरने जैसे हालात बन जाते हैं. सोचिए क्या हो जब डाकू किसान बन जाए? ऐसा ही कुछ राजस्थान के करौली गांव की महिलाओं ने कर दिखाया है. महिलाओं ने अपने पतियों को किसानी कर खेत-खलिहानों को हरा-भरा कर दिया है.;

( Image Source:  Freepik )
Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 25 May 2025 5:34 PM IST

करीब पंद्रह साल पहले राजस्थान के करौली जिले में महिलाएं एक अजीब और डरावने डर में जी रही थीं. वो दुआ करती थीं कि उनके पति घर वापस न लौटें क्योंकि लौटते तो वे अक्सर हथियारों के साथ आते. यहां के पुरुषों ने बंजर ज़मीन, सूखे कुएं और असहाय जीवन के चलते डाकू बनने का फैसला लिया.

सम्पत्ति देवी ऐसी ही एक महिला थीं, जिनकी ज़िंदगी हर रोज डर और असहायता में कटती थी. करौली की बंजर ज़मीन, सूखे कुएं, सूखते खेत और खत्म होता पशुधन इन सभी चीजों ने गांवों की अर्थव्यवस्था को खोखला कर दिया था.

जब बंजर ज़मीन ने छीन लिया था सम्मान

करौली में जलवायु परिवर्तन ने वह कर दिखाया था जो शायद किसी युद्ध ने नहीं किया होगा. बारिश भी बेरुखी दिखा रही थी.  सरकारी आंकड़ों के मुताबिक औसत वार्षिक वर्षा 722.1 मिमी से घटकर 563.94 मिमी रह गई थी. जब पेट पालने का कोई रास्ता नहीं बचा, तो कई पुरुष डकैत बन गए, जंगलों में छिपने लगे और अपनी जान जोखिम में डालने लगे.

महिलाओं ने दिखाया दमखम

2010 के दशक की शुरुआत में जब डर और निराशा ने हद पार कर ली, तब इन गांवों की महिलाओं ने कुछ असंभव-सा ठान लिया. सम्पत्ति देवी और उनकी जैसी कई महिलाओं ने अपने पतियों को समझाया. हथियार छोड़ने को कहा और जंगलों से लौट आने की गुज़ारिश की. कई पुरुषों जो कभी अपराध की राह पर थे. अब खेत की मिट्टी थामने को तैयार हो गए.

ऐसे लड़ी गई पानी के लिए जंग

इन बहादुर महिलाओं ने सबसे पहले पानी को वापस लाने का बीड़ा उठाया. उन्होंने पुराने, सूखे तालाबों को फिर से जीवित करना शुरू किया और तरुण भारत संघ जैसे जल-संरक्षण संगठनों की मदद ली. सम्पत्ति देवी के पति जगदीश बताते हैं कि अगर मेरी पत्नी मुझे वापस नहीं बुलाती, तो मैं अब तक मर चुका होता. उसने मुझे दोबारा खेती के लिए राजी किया. 2015-16 में उन्होंने दूध बेच-बेचकर बचाए गए पैसों से अपने गांव आलमपुर के पास एक पहाड़ी के नीचे पोखर बनवाया. पहली बारिश में ही पोखर भर गया  और सालों बाद उनके घर में पानी की खुशबू लौटी.

अब उगती है सरसों, गेहूं और उम्मीद 

अब ये लोग सरसों, गेहूं, बाजरा और सब्ज़ियां उगाते हैं. पोखर को सिंघाड़े की खेती के लिए किराए पर देते हैं और हर सीजन में 1 लाख तक की कमाई करते हैं. आसपास के गांवों में ऐसे 16 और पोखर बनाए गए हैं. बरसात का पानी अब पहाड़ियों से बहकर इन जलस्रोतों में इकट्ठा होता है और फिर डीजल पंपों से खेतों तक पहुंचता है.

जहां हथियार गिरे, वहां हल उठे

लज्जा राम डकैत रह चुके हैं और वह 40 आपराधिक मामलों में शामिल थे. अब चना, सरसों और बाजरा उगाते हैं. उनकी बहन ने उन्हें आत्मसमर्पण करने और जल संरक्षण से जुड़ने के लिए प्रेरित किया. अरोड़ा गांव के 70 साल के लोक गायक सियाराम आज भी वो कठिन दिन नहीं भूल पाए हैं. जब आसमान ने बरसना बंद कर दिया था. खेत सूख गए थे और बच्चे भूख से बिलखते थे. उनकी 30 बीघा ज़मीन बंजर हो गई थी और मजबूरी में उनके बेटे रोज़गार की तलाश में शहर चले गए थे. उस मुश्किल वक्त में उनकी पत्नी प्रेम देवी जो अब इस दुनिया में नहीं रहीं. उन्हें समझाया और जल संरक्षण के काम से जुड़ने के लिए प्रेरित किया.

करौली की खुशियां 

मई की तपती दोपहर में करौली के पोखर अब पानी से लबालब हैं. बच्चे नदी में कूदते हैं. मवेशी चैन से चरते हैं और महिलाएं सुकून से सांस लेती हैं. रणवीर सिंह मुस्कुराते हुए कहते हैं कि 'एक दशक पहले किसी ने यह सपना नहीं देखा था. हमारी महिलाओं ने इसे हकीकत बना दिया.'

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