'स्वर्ण मंदिर की छत पर एयर डिफेंस गन थी' आर्मी अफसर के इस दावे को खारिज करने वाले कौन हैं ज्ञानी रघबीर सिंह

भारत-पाक तनाव के बीच लेफ्टिनेंट जनरल सुमेर ने कहा था कि पाकिस्तान ने स्वर्ण मंदिर पर अटैक की तैयारी की थी. ऐसे में मुख्य ग्रंथी और मंदिर प्रशासन से छत के ऊपर डिफेंस गन तैनात करने की परमिशन ली थी, जिसके चलते पाकिस्तान की इस नापाक हरकत को रोक दिया गया. इस दावे को ग्रंथी रघबीर सिंह ने खारिज कर दिया है.;

Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 20 May 2025 4:52 PM IST

स्वर्ण मंदिर (श्री हरिमंदर साहिब) के मुख्य ग्रंथी ज्ञानी रघबीर सिंह ने लेफ्टिनेंट जनरल सुमेर इवान डी कुन्हा के हालिया बयान को सिरे से खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि पवित्र स्थल की सुरक्षा के लिए मंदिर की छत पर एयर डिफेंस गनें तैनात की गई थीं. लेफ्टिनेंट जनरल कुन्हा का कहना था कि पाकिस्तान से संभावित खतरे, जैसे ड्रोन और मिसाइल हमलों को देखते हुए, स्वर्ण मंदिर को सुरक्षित करने के लिए यह कदम उठाया गया था.

उन्होंने यह भी कहा था कि इस सैन्य तैनाती के लिए मुख्य ग्रंथी और मंदिर प्रशासन से बाकायदा अनुमति ली गई थी और हमलों को आकाश में ही विफल कर दिया गया. रघबीर सिंह ने कहा कि वह इस दौरान देश में नहीं थे, तो भला उसने कैसे परमिशन ली जा सकती है. ऐसे में चलिए जानते हैं कौन हैं ग्रंथी ज्ञानी रघबीर सिंह.

कौन हैं ज्ञानी रघबीर सिंह?

श्री अमृतसर साहिब के पास स्थित एक छोटे से गांव सुल्तानविंड में 29 मार्च, 1970 को  ज्ञानी रघबीर सिंह का जन्म हुआ था. रघबीर सिंह की परवरिश सिख मर्यादा और गुरबाणी की खुशबू में हुई. यह वही बच्चा है, जिसने आगे चलकर सिखों की सर्वोच्च संस्था, श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार पद तक का सफर तय किया.

एक अखंड पाठी से पंच प्यारे तक

1989 में रघबीर सिंह अपनी धार्मिक सेवा की शुरुआत अखंड पाठी के रूप में की. यह सिर्फ एक भूमिका नहीं थी, बल्कि गुरु घर की सेवा में पहला कदम था. इसके बाद 1982 में वे ग्रंथी सिंह बने और 1992 से 1995 के बीच विभिन्न गुरुद्वारों में सेवा करते रहे. हर सेवा, हर पाठ, हर अरदास के साथ उनका समर्पण और अनुभव गहराता गया. 1995 में उन्होंने पंच प्यारे की भूमिका निभानी शुरू की और पूरे 19 वर्षों तक इस पवित्र जिम्मेदारी को निभाया. यह वही समय था जब उनका नाम सिख संगत के बीच श्रद्धा और आस्था से जुड़ने लगा.

हरिमंदर साहिब में सेवा और एक नई जिम्मेदारी

21 अप्रैल 2014 यह दिन उनके जीवन में एक और बड़ा मोड़ लेकर आया. उन्होंने सचखंड श्री हरिमंदर साहिब में ग्रंथी सिंह के रूप में सेवा संभाली. सोने की छतरी के नीचे अमृतसर की पावन सरोवर के मध्य उनकी गुरबाणी की आवाज़ हज़ारों श्रद्धालुओं तक पहुंचने लगी. इसी दौरान, जब तख्त श्री केशगढ़ साहिब के जत्थेदार ज्ञानी मल्ल सिंह का निधन हुआ, तो ज्ञानी रघबीर सिंह को कार्यवाहक जत्थेदार की जिम्मेदारी दी गई. वे इस दोहरी भूमिका में पूरी निष्ठा और मर्यादा से सेवा करते रहे. एक ओर हरमिंदर साहिब में ग्रंथी सिंह के रूप में और दूसरी ओर केशगढ़ साहिब के जत्थेदार के रूप में.

श्री अकाल तख्त साहिब का जत्थेदार बनना

2025 की शुरुआत में सिख समुदाय के लिए यह बड़ा निर्णय लिया गया कि श्री अकाल तख्त साहिब को नया जत्थेदार मिले. इस चयन प्रक्रिया में कई नामों पर चर्चा हुई. इनमें ज्ञानी मलकीत सिंह, बाबा टेक सिंह मस्तुआना साहिब और अन्य वरिष्ठ सेवाधारी शामिल थे, लेकिन आखिर उनकी सालों की सेवा और सादगी और संतुलित नेतृत्व को ध्यान में रखते हुए ज्ञानी रघबीर सिंह को श्री अकाल तख्त साहिब का जत्थेदार नियुक्त किया गया. यह केवल एक पद नहीं है. यह सिख कौम की सर्वोच्च अस्थायी सत्ता का प्रतिनिधित्व होता है, जहां से गुरु की मर्यादा और सिख सिद्धांतों की रक्षा होती है.


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