कौन है बुधन राम जो 79 बार लड़ चुके हैं चुनाव? राजीव गांधी के खिलाफ भी किया था नामांकन

बुधन राम एक ऐसा नाम हैं, जिनकी चर्चा हर चुनावी माहौल में होती है. उनकी मेहनत और लगन के बावजूद, उन्हें कभी किसी चुनाव में जीत हासिल नहीं हुई. लोगों को उनकी इस जिद पर हैरानी होती थी, लेकिन बुधन राम इसे अपना हक और जुनून मानते थे.;

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धनबाद के झरिया लोदना क्षेत्र के निवासी और बीसीसीएल कर्मी बुधन राम एक ऐसा नाम हैं, जिनकी चर्चा हर चुनावी माहौल में होती है. उनकी पहचान एक ऐसे इंसान के रूप में बनी, जो 1984 से लेकर 2009 तक हर संभव चुनाव में नामांकन दाखिल करते थे. चाहे लोकसभा हो, विधानसभा, सरपंच या मुखिया का चुनाव—बुधन राम ने हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. खास बात यह रही कि उन्होंने हमेशा निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा.

हालांकि, उनकी मेहनत और लगन के बावजूद, उन्हें कभी किसी चुनाव में जीत हासिल नहीं हुई. लोगों को उनकी इस जिद पर हैरानी होती थी, लेकिन बुधन राम इसे अपना हक और जुनून मानते थे.

अमेठी में राजीव गांधी के खिलाफ नामांकन

बुधन राम तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने अमेठी से राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए नामांकन किया. उनके इस कदम ने प्रशासन को हैरान कर दिया, और उन्हें सुरक्षा मुहैया कराई गई. यह घटना न केवल उनके साहस का प्रतीक बनी, बल्कि लोगों के लिए एक चर्चा का विषय भी. हालांकि, यह कहना भी गलत नहीं होगा कि बुधन राम अपने सुरक्षा इंतजामों से परेशान हो गए थे, और सुरक्षाकर्मी उनकी जीवनशैली से.

79 बार नामांकन और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज

बुधन राम ने अपने जीवनकाल में कुल 79 बार विभिन्न चुनावों के लिए नामांकन किया. उनकी यह उपलब्धि उन्हें लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में स्थान दिलाने में कामयाब रही. उन्होंने 1984 में अपने चुनावी सफर की शुरुआत की और आखिरी बार 2009 के पहले तक नामांकन किया.

उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी नामांकन की कोशिश की, लेकिन औपचारिकताएं पूरी न कर पाने के वजह से अयोग्य घोषित कर दिए गए. इसके बावजूद, उनका चुनाव लड़ने का जुनून कभी कम नहीं हुआ.

चुनाव आयोग के पूर्व प्रमुख टीएन शेषन ने जब नामांकन शुल्क में वृद्धि की, तो बुधन राम काफी मायूस हो गए. यह खर्च उनके लिए वहन करना मुश्किल हो गया, और इससे उनके चुनाव लड़ने के सिलसिले पर ब्रेक लग गया.

बुधन राम का साधारण जीवन

बुधन राम की सादगी और संघर्ष भरी जिंदगी किसी प्रेरणा से कम नहीं थी. वह पैदल चलकर चुनाव प्रचार करते थे. कभी-कभी ठेले वाले उन्हें बैठा लेते थे, और वह खड़े होकर ठेले पर ही अपना प्रचार शुरू कर देते थे.

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