झारखंड में हेमंत के आगे हिमंता की एक नहीं चली, वो पांच कारण जिसने INDIA को दिलाई जीत

झारखंड में हुए विधानसभा चुनाव ने एनडीए का पासा पलट दिया है. अब झारखंड में 24 साल का राजनीतिक इतिहास बदलता दिख रहा है. राज्य में पहली बार कोई गठबंधन मजबूती से सत्ता में वापसी करता नजर आ रहा है. अब तक के रुझानों में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलता दिखाई दे रहा है.;

By :  नवनीत कुमार
Updated On : 23 Nov 2024 2:14 PM IST

झारखंड में हुए विधानसभा चुनाव ने एनडीए का पासा पलट दिया है. अब झारखंड में 24 साल का राजनीतिक इतिहास बदलता दिख रहा है. राज्य में पहली बार कोई गठबंधन मजबूती से सत्ता में वापसी करता नजर आ रहा है. अब तक के रुझानों में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलता दिखाई दे रहा है.

गठबंधन ने 81 विधानसभा सीटों में से करीब 50 पर बढ़त बनाई हुई है. इनमें से 10 सीटों पर बढ़त का अंतर 10,000 से अधिक वोटों का है. बीजेपी ने राज्य में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश की, लेकिन स्थानीय मुद्दों और जनसमर्थन की कमी के कारण पार्टी को मात खानी पड़ी. आइये जानते हैं कि कौन से वो कारण रहे जिसके कारण एनडीए को हार का सामना करना पड़ा.

महिला वोट बैंक पर पकड़

जुलाई 2024 में सीएम बनने के बाद हेमंत सोरेन ने महिलाओं को अपने पक्ष में करने के लिए मैया सम्मान योजना शुरू की, जिसके तहत महिलाओं के बैंक खातों में हर महीने ₹1000 जमा किए गए. इसके अलावा, हेमंत ने अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को चुनाव प्रचार में उतारा. कल्पना ने करीब 100 रैलियां कीं, जिनमें महिलाओं की भारी भागीदारी दिखी. महिलाओं का मतदान प्रतिशत इस बार 4% अधिक रहा, जिससे हेमंत को सीधा फायदा हुआ. बीजेपी इसका कोई तोड़ नहीं निकाल सकी.

घरवाला और बाहरी का मुद्दा

हेमंत सोरेन ने बीजेपी को बाहरी और शहरी केंद्रित पार्टी के रूप में पेश किया, जबकि उन्होंने खुद को झारखंड के मूल निवासी और जनता से जुड़े नेता के रूप में स्थापित किया. यह स्थानीय स्तर पर काफी प्रभावी साबित हुआ.

काम कर गया आदिवासी अस्‍म‍िता का मुद्दा

झारखंड में आदिवासी, पिछड़ा और मुस्लिम वोटर महत्वपूर्ण हैं. हेमंत सोरेन इन वर्गों को अपनी तरफ खींचने में सफल रहे. उन्होंने आदिवासी अधिकारों की रक्षा करने का वादा किया जो भाजपा के लिए चैलेंजिंग था, क्योंकि पार्टी आदिवासी और पिछड़े वर्गों के मुद्दों पर ज्यादा भरोसा नहीं जीत पाई थी. इसके अलावा कुर्मी समुदाय जो झारखंड में निर्णायक वोट बैंक है, इस बार बीजेपी से दूर हो गया. पारंपरिक रूप से कुर्मी वोटर्स आजसू के साथ रहते थे, लेकिन जयराम महतो के मैदान में उतरने से यह वोटबैंक बंट गया था. इससे बीजेपी को नुकसान और हेमंत सोरेन के कोर वोट बैंक को मजबूती मिली.

बीजेपी का सीएम फेस घोषित नहीं करना

बीजेपी के पास सीएम पद के लिए बाबूलाल मरांडी और चंपई सोरेन जैसे कद्दावर नेता थे. इसमें चंपई सोरेन दलबदलू थे. वह चुनाव से ठीक पहले ही बीजेपी में शामिल हुए थे. इसका भी खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा. एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल के अनुसार, झारखंड में हेमंत सोरेन की लोकप्रियता इन दोनों से कहीं ज्यादा थी. हेमंत को 41% लोगों ने मुख्यमंत्री के रूप में पसंद किया, जबकि चंपई को केवल 7% और बाबूलाल मरांडी को 13% समर्थन मिला था.

लोकल मुद्दा का मिला फायदा

बीजेपी के खिलाफ लोकल मुद्दे जैसे गरीबी, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार के आरोप जनता में असंतोष पैदा कर रहे थे. इसके अलावा, केंद्र सरकार की नीतियों को लेकर आम जनता में एक आक्रोश था जिसे हेमंत सोरेन ने अपनी चुनावी रणनीति में भुनाया. हेमंत सोरेन ने आदिवासी अस्मिता, खतियानी और आरक्षण जैसे मुद्दों को केंद्र में रखा. हेमंत की पार्टी का आरोप था कि पूर्ण बहुमत होने के बावजूद उन्हें पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं करने दिया गया. इसका भी फायदा जेएमएम को मिला.

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