झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन, सीएम हेमंत सोरेन बोले- 'आज मैं शून्य हो गया हूं'
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड आंदोलन के पुरोधा शिबू सोरेन का निधन हो गया है. यह दुखद समाचार मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद सोशल मीडिया पर साझा किया.उन्होंने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, "आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं...";
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड आंदोलन के प्रखर नेता शिबू सोरेन का आज दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया. वे 80 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे. झारखंड की राजनीति में उन्हें 'गुरुजी' के नाम से जाना जाता था. झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक नेता के रूप में उन्होंने तीन बार मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली और केंद्र सरकार में कोयला मंत्री भी रहे.
यह दुखद समाचार मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद सोशल मीडिया पर साझा किया.उन्होंने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, "आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं. आज मैं शून्य हो गया हूं..."
शिबू सोरेन का जीवन संघर्ष और आंदोलन से भरा रहा. उन्होंने आदिवासियों के अधिकार, जल-जंगल-जमीन की रक्षा और सामाजिक न्याय के लिए आजीवन संघर्ष किया. उनकी राजनीतिक यात्रा झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने की मांग से शुरू हुई और उन्होंने इस आंदोलन को एक नई दिशा दी. उनके निधन से झारखंड की राजनीति और देश की सामाजिक चेतना को गहरी क्षति पहुंची है. उनके निधन से पूरे राज्य और देश की राजनीति में शोक की लहर है.
साहूकारों और दलालों के खिलाफ किया था आंदोलन
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड (तत्कालीन बिहार) के दुमका जिले के मासानजोर गांव में हुआ था. वे एक गरीब आदिवासी परिवार से थे और बचपन से ही उन्होंने आदिवासियों की समस्याएं और शोषण को करीब से देखा. वर्ष 1960 के दशक में उन्होंने ‘संथाल परगना’ क्षेत्र में भूमि हथियाने वाले साहूकारों और दलालों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया. इसी दौर में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाना और आदिवासियों के हक के लिए लड़ना. शिबू सोरेन ने जल, जंगल और जमीन की लड़ाई को जन-आंदोलन का रूप दिया और हजारों युवाओं को इससे जोड़ा.
तीन बार झारखंड के सीएम रहे
1990 के दशक तक शिबू सोरेन झारखंड के सबसे बड़े जननायक बन चुके थे. साल 2000 में झारखंड को बिहार से अलग राज्य का दर्जा मिलने के बाद शिबू सोरेन की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो गई. वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने (2005, 2008, और 2009 में)। इसके अलावा, वे केंद्र सरकार में कोयला मंत्री भी रहे. हालांकि उनके राजनीतिक जीवन में चुनौतियां और विवाद भी कम नहीं रहे. 1994 में एक पुराने हत्या मामले में उन्हें दोषी ठहराया गया था, लेकिन बाद में वह बरी हो गए.
वंचित वर्गों की बने आवाज
शिबू सोरेन को 'गुरुजी' के नाम से जाना जाता था और वे न केवल झारखंड बल्कि पूरे देश में आदिवासी राजनीति के प्रतीक बन गए थे. उनका जीवन त्याग, संघर्ष और समाज के वंचित वर्गों की आवाज बनने की मिसाल है. उन्होंने झारखंड के हजारों लोगों को राजनीतिक चेतना दी और एक लंबी सामाजिक-राजनीतिक विरासत छोड़ी. उनके बेटे हेमंत सोरेन ने भी उनके पदचिह्नों पर चलते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री का पद संभाला.