Inside Story: राकेश अस्थाना द्वारा ‘ट्रैफिक पुलिस’ की राह में फेंका ‘रोड़ा’ संजय अरोड़ा ने हटाया, सतीश गोलचा ने यह काम कर डाला!
दिल्ली पुलिस में पांच साल पुरानी प्रशासनिक खींचतान का अंत हो गया है. विवादित पूर्व पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना द्वारा बनाए गए ट्रैफिक पुलिस के दो जोन सिस्टम को मौजूदा आयुक्त सतीश गोलचा ने खत्म कर दिया है. अस्थाना के फैसलों को जनविरोधी बताते हुए गोलचा ने ट्रैफिक पुलिस को एकीकृत कर दिया और जिम्मेदारी आईपीएस नीरज ठाकुर को सौंप दी. इससे पहले संजय अरोरा ने भी अस्थाना के कई आदेश पलटे थे. अब दिल्ली ट्रैफिक पुलिस में स्थिरता और पारदर्शिता की उम्मीद बढ़ी है.;
गुजरात कैडर के विवादित आईपीएस और सीबीआई के बदनाम स्पेशल डायरेक्टर और बेकाबू दिल्ली पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना द्वारा पांच साल पहले, दिल्ली ट्रैफिक पुलिस की राह में डाला गया ‘रार का रोड़ा’, हाल ही में नियुक्त नियमति मौजूदा पुलिस आयुक्त आईपीएस सतीश गोलचा ने हटा दिया है. राकेश अस्थाना और उनके बाद सतीश गोलचा के बीच के कार्यकाल में, तमिलनाडु से सीधे पुलिस कमिश्नर बनाकर दिल्ली लैंड करवाए गए फुलफ्लैश कमिश्नर संजय अरोड़ा और 21 दिन के लिए दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनाए गए आईपीएस एस बी के सिंह (शशि भूषण कुमार सिंह) आये भी. संजय अरोड़ा ने मगर राकेश अस्थाना की सुलगाई आग में बे-वजह अपने हाथ जलाने की जुर्रत ही नहीं की. जबकि बिचारे 21 दिन के पुलिस कमिश्नर रहे एस बी के सिंह कमिश्नर की कुर्सी पर बैठकर कुछ समझ पाते उससे पहले ही, उन्हें हटाकर सतीश गोलचा को नियमित पुलिस कमिश्नर बना दिया गया.
तत्कालीन सीबीआई निदेशक 1979 बैच के बदनाम-विवादित आईपीएस और दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर आलोक वर्मा से आमने-सामने की जग-हंसाई वाली बे-सिर-पैर की सिर-फुटव्वल करके, हंसी का पात्र बनने वाले 1984 बैच गुजरात कैडर के आईपीएस राकेश अस्थाना दिल्ली पुलिस कमिश्नर तो आसमान से सीधे उतार कर बना दिये गए. उन्होंने अपने कार्यकाल में मगर जो ताबड़तोड़ कई ऊट-पटांग फैसले अंजाम दिए उनके चलते वे मौजूदा केंद्रीय हुकूमत के रहम-ओ-करम पर जिस दिल्ली पुलिस महकमे के मुखिया बनाए गए थे, उसी दिल्ली पुलिस के हवलदार-सिपाही-थानेदार उनके ऊपर सड़क चलते हंसने लगे थे.
पुलिस कमिश्नर पर हंसते हवलदार-सिपाही
हालांकि, यह बात राकेश अस्थाना तक पहुंची या नहीं कि उनके लिए गए तमाम बेतुके फैसलों पर उनके अपने ही मातहत हंसी-ठिठोली कर रहे हैं. इसकी तो कभी पुष्टि नहीं हुई मगर जिस तीव्र गति से राकेश अस्थाना रातों-रात दिल्ली के पुलिस कमिश्नर बने उससे भी ज्यादा तीव्र गति से दिल्ली पुलिस से संदिग्ध खामोशी के संग उनकी ‘विदाई’ भी कानाफूसी में रही. पूरी आईपीएस की नौकरी में दिल्ली पुलिस के किसी थाने-चौकी के भी जीवन मे कभी दर्शन (दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनने से पहले तक) न कर सकने वाले, दिल्ली के पहले मनमौजी पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने यूं तो कई ऊट-पटांग फैसले लेकर, दबी जुबान ही सही मगर अपनी खूब थू-थू दिल्ली पुलिस में कराई. चूंकि मातहतों द्वारा उनकी उड़ाई जा रही खिल्ली की बातें उन तक पहुंचाकर कोई स्पेशल पुलिस कमिश्नर या ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर अपने गले में घंटी बांधने को राजी नहीं था. तो इससे राकेश अस्थाना को दिल्ली पुलिस में खुद के द्वारा लिया जा रहा हर फैसला “हुक्म-ए-बजीर” सा ही दिखाई पड़ रहा था.
43 साल में इतना बुरा किसी ने नहीं किया
जबकि दिल्ली पुलिस फोर्स में चर्चाओं का बाजार उनके रहते रहते यही गर्म रहा कि, “अपने ऊल-जुलूल फैसलों से जितना भट्ठा दिल्ली पुलिस का राकेश अस्थाना ने बैठाया उतना बुरा हाल दिल्ली पुलिस में 1 जुलाई 1978 को लागू हुई कमिश्नर प्रणाली के 43 साल (साल 2021-2022 तक) किसी पहले के पूर्व पुलिस कमिश्नर ने नहीं बैठाया.” राकेश अस्थाना के जिन दो तीन वाहियात के फैसलों का मखौल उड़ा वे थे, दिल्ली में सिविल पुलिस के जिलों की ही तरह हर जिले में एक डीसीपी ट्रैफिक जिला बनाना. दूसरा, दिल्ली पुलिस कंट्रोल रुम की सैकड़ों-हजारों जिप्सियों को सीधे थानों से अटैच करवा डालना, तीसरा व अंतिम बेतुका फैसला कहिए या फिर दिल्ली पुलिस के ट्रैफिक-विंग या जोन को दो हिस्सों में काट-बांट डालना. जोकि दिल्ली की यातायात व्यवस्था के ताबूत में अंतिम कील साबित हुआ.
हंगामेदार पुलिस कमिश्नर खामोशी संग विदा
दिल्ली और दिल्ली पुलिस को बिना जाने-पहचाने एक के बाद एक अड़ियल-बेतुके फैसले लेने वाले राकेश अस्थाना जैसे ही दिल्ली पुलिस से रातों-रात विदा करके घर भेजे गए. उनकी जगह तमिलनाडु कैडर के आईपीएस बेहद ‘खामोश-मिजाज’ मगर दिल्ली और दिल्ली पुलिस से पूरी तरह राकेश अस्थाना की ही तरह ‘अनजान’ संजय अरोरा आसमान से डायरेक्ट जमीन पर उतार कर दिल्ली पुलिस आयुक्त बनाए गए. तो उन्होंने भी अपने पूर्ववर्ती आईपीएस राकेश अस्थाना के उस फैसले को देखकर सिर धुन लिया जिसमें राकेश अस्थाना, दिल्ली पुलिस के सभी पुलिस नियंत्रण कक्षों की जिप्सियों और उन पर तैनात स्टाफ को थाने के हवाले कर गए थे.
कमिश्नर का आदेश कमिश्नर के गले नहीं उतरा
संजय अरोरा ने सबसे पहले राकेश अस्थाना के उसी आदेश को पलटते हुए उस पर मिट्टी डालकर साबित कर दिया कि पूर्व पुलिस आयुक्त (राकेश अस्थाना) का, दिल्ली पुलिस कंट्रोल रुम की जिप्सियों और उन पर तैनात पुलिस स्टाफ की रिपोर्टिंग थानों से अटैच कर दिया जाना कतई प्रायोगिक और जनहित में नहीं है. राकेश अस्थाना द्वारा दिल्ली ट्रैफिक पुलिस को दो जोन में बांटकर उनकी रखवाली की जिम्मेदारी दो अलग अलग विशेष पुलिस आयुक्तों के हवाले की गई. वैस ही वहां रार शुरू हो गई.
ट्रैफिक पुलिस पर इसलिए ‘गिद्ध नजर’
यह बात जैसे ही तत्कालीन पुलिस आयुक्त संजय अरोरा के कानों तक पहुंची तो अप्रैल-मई 2025 में उन्होंने ट्रैफिक विंग के दोनो जोन को एक में ही मर्ज कर दिया. ताकि न रहेंगे ट्रैफिक के दो-दो जोन न होंगे दो अलग अलग ट्रैफिक पुलिस स्पेशल कमिश्नर. साथ ही चूंकि ट्रैफिक पुलिस को मलाईदार पोस्टिंग माना जाता है. जिसकी पोस्टिंग पाने के लिए अधिकांश सिपाही, हवलदार, दारोगा लार टपकाते रहते हैं. इसलिए भी इस महकमे पर पुलिस विभाग की हमेशा ‘गिद्ध नजरें’ लगी रहती हैं. यह सब सच्चाई पता चलते ही संजय अरोरा ने राकेश अस्थाना के आदेश को पलटते हुए न केवल दोनो ट्रैफिक को एक में समाहित किया. अपितु यातायात पुलिस में सिपाही हवलदार दारोगा की तैनाती का काम सीधे सीधे पुलिस मुख्यालय से संबद्ध कर दिया.
नाक की लड़ाई में हवलदार-सिपाहियों का मरण
मतलब दिल्ली के ट्रैफिक मैनेजमेंट को बेहतर करने के नाम पर जो कुछ ऊट-पटांग पूर्व पुलिस आयुक्त ने किया था, बाद में जनहित में संजय अरोरा उसे बदल कर चले गए. राकेश अस्थाना यह कर गए थे कि दिल्ली ट्रैफिक पुलिस मैनेजमेंट को दो हिस्सों में बांट गए. ट्रैफिक जोन-1 और जोन-2. हर जोन का एक अलग स्पेशल पुलिस कमिश्नर बना डाला था. ट्रैफिक जोन-2 पर अब तक स्पेशल सीपी अजय चौधरी और जोन-1 के प्रभारी के रूप में स्पेशल सीपी के जगदीशन तैनात थे. एक ही ट्रैफिक पुलिस के दो दो हिस्सा-बांट के फेर में अगर कोई सबसे ज्यादा पिस रहा था तो वह था, सिपाही, हवलदार, दारोगा. वजह थी दो-दो जोन के बीच अपने-अपने अधिकार और पावर के इस्तेमाल की बेजा खींचतान.
‘रार’ की असल जड़ या वजह यहां थी.
दिल्ली पुलिस मुख्यालय के उच्च-पदस्थ सूत्रों और मीडिया में मौजूद खबरों की मानें तो बीते 15 अप्रैल को एक ट्रैफिक जोन (पूर्व पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना कालीन तितर-बितर ट्रैफिक पुलिस व्यवस्था में) के विशेष पुलिस आयुक्त ने, तत्कालीन पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा की स्वीकृति के आधार पर ट्रैफिक में तैनात कुछ स्टाफ के ट्रांसफर की संस्तुति संबंधी सूचना दिल्ली पुलिस स्थापना बोर्ड को भेजी थी. इसी बीच दिल्ली पुलिस ट्रैफिक विभाग में अंदरूनी धींगामुश्ती शुरु हो गई. ट्रैफिक पुलिस विंग में धींगामुश्ती की बात उड़ते-उड़ते पूर्व पुलिस कमिश्नर के कानों तक भी पहुंची. उन्हें लगा कि एक ही महकमे की ट्रैफिक पुलिस को दो-दो विंग-जोन में बांटा जाना ही इसमें रार की असल जड़ है. ट्रैफिक विंग के इस अंदरूनी बवाल की जड़ में ट्रांसफर पोस्टिंग भी प्रमुख वजह थी.
सौ सुनार की एक लुहार की- मतलब सतीश गोलचा
पूर्व के कुछ महीनों में दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के भीतर मची उथल-पुथल से मौजूदा पुलिस आयुक्त सतीश गोलचा बेहतरी से वाकिफ थे. लिहाजा उन्होंने हाल में इधर उधर किए गए कई आईपीएस (विशेष पुलिस आयुक्त) की अदला-बदली अब दिल्ली ट्रैफिक पुलिस में एक ही स्पेशल सीपी का पद होने की स्वीकृति यह जिम्मेदारी आईपीएस नीरज ठाकुर को सौंप दी है.