पत्नी को 'परजीवी' कहना पड़ेगा भारी , दिल्ली हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी, इससे पूरे नारी समाज का अपमान
दिल्ली हाईकोर्ट के जज सुब्रमण्यम प्रसाद ने निचली कोर्ट के पत्नी को भरण-पोषण देने के निर्देश के खिलाफ पति की याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने कहा कि पत्नी को परजीवी (Parasite) कहना पूरे नारी समाज का अपमान करना है. अदालत ने कहा, अगर पत्नी पैसे कमा रही है तो इसका मतलब ये नहीं है कि पति उसके खर्चे उठाना और भरण-पोषण करने से मुक्त हो जाए.;
Delhi High Court: हमारे देश में अक्सर ऐसे मामले देखने को मिलते हैं, जब शादी के बाद पति अपनी पत्नी को मजाक में कुछ भी बोल जाते हैं. पति कई बार आपत्तिजनक और आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाले शब्द का उपयोग अपनी पत्नी के लिए करते हैं. दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले में महिलाओं को लेकर अहम टिप्पणी की है.
कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि पत्नी को परजीवी (Parasite) कहना पूरे नारी समाज का अपमान करना है. अदालत ने कहा, अगर पत्नी पैसे कमा रही है तो इसका मतलब ये नहीं है कि पति उसके खर्चे उठाना और भरण-पोषण करने से मुक्त हो जाए.
भरण-पोषण देने का आदेश
दिल्ली हाईकोर्ट के जज सुब्रमण्यम प्रसाद ने निचली कोर्ट के पत्नी को भरण-पोषण देने के निर्देश के खिलाफ पति की याचिका पर सुनवाई की. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि भारतीय महिलाएं परिवार की देखभाल करने, अपने बच्चों की जरूरतों को पूरा करने और अपने पति तथा उसके माता-पिता देखरेख के लिए नौकरी तर छोड़ देती हैं. याचिका में कहा गया था कि उसने अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ दिया है और वह किसी दूसरी महिला के साथ रह रहा है, को निचली अदालत ने आदेश दिया था कि वह अपनी पत्नी को 30,000 रुपये प्रति माह भरण-पोषण दे, साथ ही उसे मानसिक यातना, अवसाद और भावनात्मक संकट सहित उसे हुई "चोटों" के लिए 5 लाख रुपये भी दे.
घरेलू हिंसा की शिकार थी पत्नी
अदालत ने आदेश में यह भी कहा कि पत्नी घरेलू हिंसा की शिकार थी. 'घरेलू हिंसा' शब्द में शारीरिक दुर्व्यवहार, यौन दुर्व्यवहार, मौखिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार और आर्थिक दुर्व्यवहार तथा अन्य सभी प्रकार के दुर्व्यवहार शामिल हैं, जो किसी महिला पर किए जा सकते हैं. पत्नी ने घर इसलिए छोड़ा क्योंकि उसका पति किसी और महिला के साथ रह रहा है और कोई भी स्त्री बर्दाश्त नहीं कर सकती. कोर्ट ने कहा चूंकि पत्नी अपने दो बच्चों की देखभाल करने की स्थिति में नहीं थी, इसलिए उसके पास उन्हें याचिकाकर्ता (पति) के माता-पिता के पास छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था."
जिम्मेदारी से भागना मुश्किल-HC
कोर्ट ने इसमें कि धारा 125 के अनुसार यदि पति के पास पर्याप्त साधन हैं, तो वह अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है, तथा उसे अपनी नैतिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों से विमुख नहीं होना चाहिए. अदालत ने कहा कि पति अपनी पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के दायित्व से तब तक नहीं बच सकता जब तक कि कानून में इसके लिए कोई कानूनी आधार न हो.