न प्यार गुनाह, न हर रिश्ता जुर्म! एक्सट्रा मैरिटल अफेयर को हर बार क्रूरता नहीं माना जा सकता, दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी में कहा है कि अगर किसी व्यक्ति का विवाह के बाहर कोई संबंध है, तो उसे तब तक क्रूर व्यवहार या आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी नहीं माना जा सकता जब तक यह साबित न हो जाए कि उसकी पत्नी को इससे गहरा मानसिक आघात या पीड़ा पहुँची हो.;
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई एक्सट्रा मैरिटल अफेयर में है, तो मात्र इस आधार पर उसे क्रूरता या आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता. यह तभी संभव होगा जब ये साबित किया जाए कि उस व्यक्ति को किस हद तक पत्नी को मानसिक, भावनात्मक या सामाजिक रूप से गंभीर पीड़ा या परेशानी हुई थी.
यह टिप्पणी हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति संजीव नरूला की एकल बेंच ने उस समय की जब उन्होंने दहेज हत्या के एक मामले में आरोपी पति को जमानत दी. कोर्ट ने यह भी कहा कि एक्सट्रा मैरिटल को दहेज हत्या के आरोप का आधार नहीं माना जा सकता. अगर पत्नी की मृत्यु के पीछे एक्सट्रा मैरिटल की भूमिका है, तो ऐसे में दहेज की मांग की बात का औचित्य संदिग्ध हो जाता है.
क्या है मामला
यह मामला एक दंपती से जुड़ा है जिनकी शादी को लगभग पांच साल हो चुके थे. 18 मार्च 2024 को पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी. इसके बाद पति को गिरफ्तार कर लिया गया. उस पर आत्महत्या के लिए उकसाने, दहेज हत्या और दहेज उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोप लगाए गए. अभियोजन पक्ष की ओर से मृतका के परिवार ने यह दावा किया कि आरोपी पति का किसी अन्य महिला के साथ एक्सट्रा मैरिटल था. इस आरोप के समर्थन में उन्होंने कुछ वीडियो क्लिपिंग और चैट रिकॉर्ड पेश किए.
हाईकोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने आरोपों को ध्यान से परखा और कहा कि सिर्फ यह साबित हो जाना कि पति का किसी और महिला से रिश्ता था (एक्सट्रा मैरिटल अफेयर), यह नहीं दिखाता कि उसने पत्नी को आत्महत्या के लिए मजबूर किया. इसके लिए साफ सबूत होना ज़रूरी है कि पत्नी को इन रिश्तों की वजह से मानसिक तकलीफ या बहुत ज़्यादा दुख पहुंचा था. अदालत ने यह भी कहा कि जो आरोप लगाए गए हैं, उनमें सही क्रम और आपसी मेल (consistency) की कमी है. अगर पत्नी की मौत का कारण पति का अफेयर था, तो फिर दहेज की मांग का इससे क्या संबंध है, यह साफ नहीं हो पा रहा है. कोर्ट ने साफ कहा कि किसी व्यक्ति पर एक साथ कई गंभीर आरोप लगाना तब तक सही नहीं है, जब तक यह साबित न हो जाए कि इन सब आरोपों के बीच कोई ठोस और साक्ष्य आधारित (सबूतों पर टिका हुआ) रिश्ता है.
जमानत देने का आधार
कोर्ट ने यह भी ध्यान में रखा कि मामले में आरोपपत्र पहले ही दाखिल किया जा चुका है और जांच पूरी हो चुकी है. ऐसे में आरोपी को निरंतर जेल में रखना उचित नहीं है, खासकर तब जब आरोपों की पुष्टि के लिए आवश्यक साक्ष्य मजबूत नहीं हैं. हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक महिला जीवित थी, तब तक उसके या उसके मायके वालों की ओर से कभी भी दहेज उत्पीड़न की कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई थी. इस कारण अदालत ने इन आरोपों पर संदेह व्यक्त किया और कहा कि इनकी सच्चाई पर पूरी सुनवाई के बाद ही अंतिम निष्कर्ष निकाला जा सकता है.