पिता का शव दफनाने के लिए 12 दिन से कानूनी लड़ाई लड़ रहा बेटा, फिर SC ने सुनाया ये फैसला
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में ईसाई व्यक्ति के शव को दफनाने को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. मृतक के बेटे रमेश बघेल, जो अनुसूचित जाति समुदाय से आता है, पिछले 12 दिनों से अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए लड़ाई लड़ रहा है.;
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के एक गांव से चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां एक ईसाई व्यक्ति के शव को दफनाने को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. मृतक के बेटे रमेश बघेल, जो अनुसूचित जाति समुदाय से आता है, पिछले 12 दिनों से अपने पिता के दफनाने के लिए कानून लड़ाई लड़ रहा है. गांव के कुछ लोगों द्वारा शव को उनके पारिवारिक कब्रिस्तान में दफनाने का विरोध किए जाने के बाद, रमेश के पिता का शव अब तक मोर्चरी में रखा गया.
इंडियन एक्सप्रेस में छवि रिपोर्ट के मुताबिक, रमेश बघेल ने पहले छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन 9 जनवरी को हाईकोर्ट का फैसला उनके पक्ष में नहीं आया. इसके बाद रमेश ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले में छत्तीसगढ़ सरकार से जवाब मांगा है. रमेश को मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील डिग्री प्रसाद चौहान कानूनी मदद प्रदान कर रहे हैं. यह मामला धार्मिक भेदभाव का प्रतीक बन गया है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि छत्तीसगढ़ पंचायत प्रावधान (अनुसूचित का विस्तार) नियम, 2021 लागू होने के बाद बस्तर क्षेत्र में ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं.
तीस साल पहले बदला था
रमेश बघेल के पिता सुभाष, जो एक पादरी थे, का निधन 7 जनवरी को बीमारी के कारण हुआ. रमेश के दादा ने तीन दशक पहले ईसाई धर्म अपना लिया था और उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों के साथ छिंदवाड़ा गांव के कब्रिस्तान में दफनाया गया था. रमेश चाहते हैं कि उनके पिता की अंतिम इच्छा पूरी हो और उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों के पास ही दफनाया जाए.
गांव वालों ने क्यों किया सामाजिक बहिष्कार?
दो साल पहले तक स्थिति सामान्य थी, लेकिन इसके बाद कुछ राजनीतिक दलों के लोगों ने ईसाई समुदाय का सामाजिक बहिष्कार करने के लिए गांव के लोगों को भड़काना शुरू कर दिया. उन्होंने धर्म परिवर्तन का हवाला देते हुए ईसाइयों को गांव के कब्रिस्तान में शव दफनाने से रोकने की अपील की. इस दौरान एक और ईसाई परिवार को भी कब्रिस्तान में शव दफनाने से रोका गया.
सामाजिक बहिष्कार का प्रभाव रमेश बघेल और उनके परिवार पर गंभीर रूप से पड़ा. बहिष्कार के बाद मजदूरों ने रमेश के खेतों में काम करना बंद कर दिया. इसके साथ ही, रमेश को अपनी वर्षों पुरानी किराने की दुकान भी बंद करनी पड़ी क्योंकि ग्रामीणों ने उनसे सामान खरीदना बंद कर दिया. रमेश, जिन्होंने अपने परिवार का समर्थन करने के लिए स्कूल छोड़ दिया था, अब आय के दोनों प्रमुख स्रोतों से वंचित हो गए हैं.
पुलिस के बाद HC ने भी गामीणों का लिया था पक्ष
पहले जब रमेश ने पुलिस के इस बात की जानकारी दी तो पुलिस ने भी इस मामले में ग्रामीणों का पक्ष लिया. इसके बाद हाईकोर्ट ने कहा कि, यह माना जाता है कि छिंदवाड़ा गांव में ईसाई समुदाय के लोगों के लिए कोई अलग कब्रिस्तान उपलब्ध नहीं हैं लेकिन सरकारी वकील और हस्तक्षेपकर्ता के वकील के मुताबिक, ईसाई धर्म के अनुयायियों के लिए अलग कब्रिस्तान कर्कपाल गांव में उपलब्ध है, जो छिंदवाड़ा से 20-25 किलोमीटर दूर है. याचिकाकर्ता का कहना है कि वह अपने पिता का अंतिम संस्कार ईसाई धर्म के अनुसार करना चाहता है. इसलिए, यह देखते हुए कि ईसाई समुदाय का कब्रिस्तान पास के इलाके में उपलब्ध है, याचिकाकर्ता को राहत देना उचित नहीं होगा. इससे लोगों में अशांति और वैमनस्य फैल सकता है.