अनपढ़ों के साथ पढ़े-लिखे भी...हाईवे को स्टंट का मंच बनाने वाले बिगड़ैल रील क्रिएटर्स पर सख्त हुई छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभू दत्ता गुरु की खंडपीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि अब ये घटनाएं केवल अशिक्षित या अनजान लोगों तक सीमित नहीं रही. पढ़े-लिखे, संपन्न और तथाकथित सभ्य वर्ग के लोग भी सड़कों को स्टंट और दिखावे की जगह बना रहे हैं.;
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक बेहद गंभीर सामाजिक और विधिक समस्या पर सख्त टिप्पणी करते हुए प्रदेश में बढ़ती 'बिगड़ैल रईसी' की प्रवृत्ति पर करारा प्रहार किया है. ये टिप्पणी उस जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान आई, जिसे न्यायालय ने गंभीरता से लेते हुए स्वीकार किया था. मामला उन युवाओं से जुड़ा है जो सोशल मीडिया की चमक-दमक में इस कदर खो चुके हैं कि सड़क जैसे सार्वजनिक स्थल को भी अपने 'स्टेज' में बदल डालते हैं.
यह पूरी घटना तब सुर्खियों में आई जब एक हिंदी समाचार पत्र में प्रकाशित रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि कुछ आर्थिक रूप से संपन्न यंगर्स नेशनल हाईवे खासतौर पर रतनपुर हाईवे के बीचोंबीच अपनी महंगी SUVs खड़ी कर रील्स और स्टंट शूट करने में व्यस्त रहते हैं. इतना ही नहीं, वे बाकायदा वीडियोग्राफी, लाइट्स व्यवस्था और हाईवे पर पूरी टीम के साथ फ़िल्मी माहौल बना लेते हैं. इससे यातायात बाधित होता है, आम जनता को घंटों परेशानी उठानी पड़ती है, और कई बार दुर्घटनाओं का जोखिम भी उत्पन्न होता है.
अदालत की फटकार
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभू दत्ता गुरु की खंडपीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि अब ये घटनाएं केवल अशिक्षित या अनजान लोगों तक सीमित नहीं रही. पढ़े-लिखे, संपन्न और तथाकथित सभ्य वर्ग के लोग भी सड़कों को स्टंट और दिखावे की जगह बना रहे हैं. इससे न केवल उनकी जान, बल्कि राह चलते निर्दोष लोगों की जान भी खतरे में पड़ती है. अदालत ने विशेष रूप से पुलिस की निष्क्रियता और शिथिल कार्रवाई पर नाराज़गी जताई. उन्होंने कहा कि जब एक युवक ने अपनी रील इंस्टाग्राम पर शेयर की, तभी जाकर पुलिस हरकत में आई. लेकिन कार्रवाई क्या हुई? केवल 2000 का जुर्माना लगाकर छोड़ दिया गया मानो कोई औपचारिकता निभाई गई हो.
कोर्ट ने उठा DSP की पत्नी का भी मामला
कोर्ट ने एक और चौंकाने वाला मामला उठाया एक पुलिस डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट की पत्नी पर भी इसी तरह का स्टंट करने का आरोप है, जिसकी जानकारी पहले राज्य के मुख्य सचिव को दी जा चुकी थी. जब कानून के रक्षक ही नियमों को तोड़ने वालों को पनाह दें, तब समाज में अनुशासन की उम्मीद कैसे की जा सकती है?.'
कोर्ट ने कहा- सिस्टम फेल हो चुका है
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि पुलिस अधिकारियों की यह उदासीनता और लापरवाही राज्य में कानून व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा है. जब ऐसे बिगड़ैल लोग खुलेआम क़ानून तोड़ते हैं और पुलिस उन्हें बस चाय-पानी पिलाकर छोड़ देती है, तो आम जनता में न्याय और सुरक्षा की भावना खत्म होने लगती है. ये एक सामाजिक अराजकता का बीज बोने जैसा है.'
कोर्ट ने दिए कड़े निर्देश
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि अब केवल बयानबाज़ी से काम नहीं चलेगा. इस मामले की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्य सचिव को स्वयं व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया है, ताकि यह पता चले कि सरकार इस प्रवृत्ति से निपटने के लिए क्या ठोस कदम उठा रही है. यह मामला अब आगामी 7 अगस्त 2025 को दोबारा सूचीबद्ध किया गया है. तब तक, अदालत ने पुलिस और प्रशासन को इस मामले से जुड़े सभी तथ्यों और कानूनी कार्यवाहियों की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं.