संजय झा, उनकी दो बेटियां और सरकारी वकील की नौकरी! Social में हल्ला- क्या जैसी Setting वैसी होती है Getting?
बिहार चुनाव से पहले जेडीयू नेता संजय झा की दोनों बेटियों की सुप्रीम कोर्ट में वकील नियुक्ति पर बवाल मच गया है. सोशल मीडिया पर काफी बहस छिड़ी है. तेजस्वी यादव ने इसे परिवारवाद और सामाजिक न्याय के खिलाफ बताया. आरजेडी का आरोप है कि बिना अनुभव के यह नियुक्ति दलितों और पिछड़ों के हक को छीनती है. सरकार की चुप्पी पर भी विपक्ष ने सवाल उठाए हैं.;
बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक बयानबाज़ी तेज हो गई है. विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद संजय झा पर तीखा हमला बोला है. तेजस्वी ने आरोप लगाया है कि संजय झा ने अपनी दोनों बेटियों को सुप्रीम कोर्ट के ग्रुप-ए पैनल काउंसल में बिना अनुभव के नियुक्त करवा दिया है. उन्होंने इसे ‘परिवारवाद का क्लासिकल उदाहरण’ बताया है.
RJD ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर दस्तावेज शेयर करते हुए दावा किया कि संजय झा की बेटियों अद्या झा और सत्या झा को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में वकील नियुक्त किया है. यह नियुक्ति तीन साल की अवधि के लिए है और इसके तहत वे केंद्र सरकार की ओर से केस लड़ेंगी. आरजेडी का आरोप है कि यह नियुक्ति बिना अनुभव के और सत्ता के विशेषाधिकार के बल पर की गई.
क्या वंचित वर्गों का हक मारा गया?
तेजस्वी यादव ने सवाल उठाया कि जेडीयू के कितने दलित, पिछड़े और अति-पिछड़े नेताओं के बेटे-बेटियों को यह विशेषाधिकार मिला है? उन्होंने दावा किया कि इस प्रकार की नियुक्तियों से सामाजिक न्याय की अवधारणा को ठेस पहुंचती है और वंचित तबकों का हक छीना जाता है. तेजस्वी ने संजय झा से सीधा सवाल पूछा, “आपकी बेटियों को एक ही दिन में ग्रुप-ए पैनल में कैसे जगह मिली? कौन सी डीलिंग हुई?” उन्होंने कहा कि यह नियुक्ति न सिर्फ पारदर्शिता के खिलाफ है, बल्कि यह बिहार के मिथिला क्षेत्र के भविष्य के साथ अन्याय भी है.
‘बेटी-दामाद मॉडल’ बनाम सामाजिक समावेश
राजद ने सीधे शब्दों में कहा कि यह मामला ‘बेटी-दामाद मॉडल’ का प्रतीक है, जिसमें सत्ता के करीबी परिवारों को प्रमुख पदों पर बैठाया जा रहा है. ट्वीट में कहा गया, “वंचितों की मेरिट और अधिकार कैसे छीनकर कुछ लोग खुद को जन्मजात श्रेष्ठ साबित करते हैं, यह उसका क्लासिक उदाहरण है.”
क्या बोले सोशल मीडिया यूजर्स?
अब इसे लेकर सोशल मीडिया पर भी काफी बवाल मचा है. द सोशल साइंटिस्ट नामक यूजर ने लिखा, सरकार में भाई-भतीजावाद का स्तर देखिए, जदयू प्रेसिडेंट संजय झा की दोनों बेटियों को सेंट्रल गवर्नमेंट में एक साथ ग्रुप-A का पैनल एडवोकेट बना दिया गया है. दोनों अच्छी-पढ़ी लिखी हैं पर क्या अन्य नहीं हैं और डिग्री लेने के बाद इतनी जल्दी कैसे? और एक साथ दोनों का होना? वहीं, प्रभात सिंह नामक यूजर ने लिखा, "सारी सुविधाएं तो इन्ही लोगों के परिवारों के लिए है बाकि जनता तो सिर्फ चुनाव में वोट देने और जिल्लत भरी जिंदगी जीने के लिए ही है."
कांग्रेस नेता ने क्या कहा?
कांग्रेस नेता उदय भानु ने संजय झा की बेटियों के साथ पीएम मोदी की तस्वीर शेयर करते हुए लिखा, सुप्रीम कोर्ट तक में अब भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार? JDU सांसद संजय झा की बेटियों को, जो 2023 और 2024 में ग्रेजुएट हुई हैं, सीधे राष्ट्रपति के आदेश से सरकारी वकील बना दिया गया! मेहनती वकीलों की क़तार तोड़कर ये 'खास' बेटियां आगे निकल गईं. क्या बिहार के हित बेच दिए गए?
नीतीश सरकार की चुप्पी पर विपक्ष का हमला
नीतीश कुमार की सरकार ने अब तक इस पूरे विवाद पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है. लेकिन विपक्ष लगातार दबाव बना रहा है कि इस नियुक्ति में पारदर्शिता नहीं थी. तेजस्वी ने कहा कि सत्ता का इस्तेमाल निजी हितों के लिए किया जा रहा है, जबकि आम जनता को गुमराह किया जा रहा है. आरजेडी नेताओं का मानना है कि सत्ता के केंद्र में बैठे कुछ परिवार जातीय संतुलन को दरकिनार कर निजी लाभ की राजनीति कर रहे हैं. उनका कहना है कि ऐसी नियुक्तियां सामाजिक न्याय के विपरीत हैं और यह दर्शाती हैं कि कैसे वंचित तबकों को पीछे रखा जा रहा है.
सियासत में बढ़ता परिवारवाद
बिहार की राजनीति में परिवारवाद कोई नया मुद्दा नहीं है, लेकिन अब जब बेटियों की नियुक्ति जैसी घटनाएं सामने आ रही हैं, तो यह बहस एक नई दिशा में बढ़ रही है. आगामी विधानसभा चुनावों में यह मुद्दा विपक्ष के लिए एक बड़ा हथियार बन सकता है, जिससे एनडीए को बैकफुट पर लाया जा सकता है.