क्या है 'ऑनलाइन पिंडदान' योजना? पितृपक्ष से पहले बड़ा बवाल, पंडा समाज ने सरकार से योजना वापस लेने की रखी मांग

बिहार पर्यटन विभाग की नई ‘ऑनलाइन पिंडदान योजना’ ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। इस योजना के तहत श्रद्धालु ₹23,000 देकर पिंडदान ऑनलाइन बुक कर सकते हैं और उसकी रिकॉर्डिंग पेन ड्राइव में पा सकते हैं. लेकिन गया के परंपरागत गायवाल पंडों और VHP ने इसे सनातन धर्म के विरुद्ध बताते हुए कड़ा विरोध दर्ज कराया है. धार्मिक नेताओं का कहना है कि पिंडदान पुत्र को ही स्वयं करना चाहिए, इसे प्रॉक्सी या ऑनलाइन कराना शास्त्र सम्मत नहीं.;

बिहार पर्यटन विभाग की हालिया पहल 'ऑनलाइन पिंडदान सेवा' को लेकर विवाद गहराता जा रहा है. इस योजना के तहत वे लोग जो गया आकर पितृपक्ष के पिंडदान संस्कार में शामिल नहीं हो सकते, वे ऑनलाइन बुकिंग के माध्यम से इस अनुष्ठान को संपन्न करा सकते हैं. इसके लिए ₹23,000 की एकमुश्त फीस तय की गई है, जिसके बदले स्थानीय पुरोहित अनुष्ठान करेंगे और उसकी रिकॉर्डिंग पेन ड्राइव में उपलब्ध कराई जाएगी.

हालांकि, इस योजना ने गया के परंपरागत गायवाल पंडा समाज और विश्व हिंदू परिषद (VHP) सहित कई धार्मिक संगठनों का तीखा विरोध झेला है. उनका कहना है कि यह धार्मिक परंपराओं और शास्त्रों के मूल भाव के साथ खिलवाड़ है और सनातन संस्कृति को आघात पहुंचाने वाला कदम है.

क्या है ‘ऑनलाइन पिंडदान’ योजना?

इस योजना के तहत श्रद्धालु पर्यटन विभाग के पोर्टल पर जाकर पितृपक्ष (6 सितंबर से शुरू) के लिए पिंडदान बुक कर सकते हैं. इसमें स्थानीय पुजारी उनकी ओर से अनुष्ठान करेंगे और वीडियो रिकॉर्डिंग भेजी जाएगी. विभाग का दावा है कि यह सेवा उन लोगों के लिए है, जो किसी कारणवश व्यक्तिगत रूप से गया नहीं आ सकते.

परंपरागत पंडों और VHP का विरोध

गया टाउन के विधायक और सहकारिता मंत्री प्रेम कुमार ने पंडा समाज की आपत्तियों को स्वीकारते हुए कहा, “पंडों की भावनाओं का सम्मान किया जाएगा. इस मुद्दे की समीक्षा उचित स्तर पर की जाएगी.” वहीं, VHP जिला अध्यक्ष मणि लाल बारिक ने गरुड़ पुराण का हवाला देते हुए कहा कि पिंडदान केवल पुत्र या पुरुष वंशज द्वारा ही स्वयं किया जा सकता है. “विष्णुपद, फल्गु और अक्षयवट जैसे पवित्र स्थलों पर ही ये संस्कार संभव हैं. प्रॉक्सी या ऑनलाइन अनुष्ठान शास्त्र सम्मत नहीं है,” उन्होंने कहा.

पंडा समाज का सवाल- क्या ‘अस्मत पितः’ कोई और कह सकता है?

राजस्थान, गुजरात और नेपाल से जुड़े ग्राहकों वाले वरिष्ठ पंडा महेश लाल गुप्त ने इस योजना को धार्मिक आस्था पर कुठाराघात बताया. उन्होंने सवाल उठाया, “पिंडदान में पुत्र ‘अस्मत पितः’ (मेरे पिता) का उच्चारण करता है. क्या कोई और ऐसा कर सकता है?” गुप्त ने राज्य सरकार से इस योजना को तुरंत वापस लेने की मांग की.

‘धर्म का व्यावसायीकरण कर रहा विभाग’

विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के अध्यक्ष शंभू लाल बिठल ने पर्यटन विभाग पर धर्म को मुनाफे का साधन बनाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, “सरकार कहती है उसे व्यवसाय से कोई लेना-देना नहीं है, फिर धार्मिक अनुष्ठानों को पैसे से क्यों जोड़ा जा रहा है?” उन्होंने यह भी कहा कि केवल गायवाल पंडा ही पिंडदान करने के लिए अधिकृत हैं, जबकि योजना में अस्पष्ट रूप से ‘पुरोहितों’ का जिक्र किया गया है, जिसमें गैर-पंडा ब्राह्मण भी शामिल हो सकते हैं.

विवाद गहराया, योजना पर संशय

पंडा समाज, VHP और धार्मिक संगठनों के तीखे विरोध के बाद इस ऑनलाइन पिंडदान योजना का भविष्य अधर में लटका हुआ है. पारंपरिक धर्माचार्य इसे सनातन परंपराओं के खिलाफ बताते हुए इसे रद्द करने की मांग कर रहे हैं. अब देखना होगा कि बिहार सरकार इस विवादास्पद योजना पर क्या रुख अपनाती है.

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