खत्म हो गया डर का दौर! बिहार में अपहरण केस में 94.4% की आई गिरावट, नीतीश मॉडल ने किया कमाल
कभी अपहरण उद्योग के नाम से बदनाम रहा बिहार अब कानून-व्यवस्था की मिसाल बन गया है. 2004 में जहां फिरौती के लिए 411 अपहरण हुए थे, वहीं 2025 में अब तक केवल 23 केस दर्ज हुए हैं. यानी 94.4% की गिरावट. नीतीश सरकार की सख्त नीति, आधुनिक पुलिसिंग और जवाबदेही ने बिहार को अपराध से आज़ादी दिलाई है.;
कभी बिहार को 'अपराध की राजधानी' कहा जाता था. 90 के दशक और 2000 के शुरुआती वर्षों में राज्य की पहचान बंदूक, फिरौती और राजनीतिक अपराध से जुड़ी हुई थी. खासतौर पर अपहरण, जो अपराध नहीं बल्कि एक संगठित 'उद्योग' के रूप में फल-फूल रहा था. उस दौर में अपराधियों की पकड़ इतनी मज़बूत थी कि सरकारी तंत्र भी उनके आगे बेबस नजर आता था. मगर जैसे ही 2005 में नीतीश कुमार सत्ता में आए, एक नई दिशा की शुरुआत हुई. उनकी सरकार ने 'कानून का राज' को प्राथमिकता दी और अपराधियों के खिलाफ सख्त रुख अपनाया.
सरकार से मिली जानकारी के मुताबिक, 2004 में बिहार में फिरौती के लिए 411 अपहरण के मामले दर्ज हुए थे. ये आंकड़ा खुद इस बात की पुष्टि करता है कि तब अपहरण बिहार में एक स्थापित 'उद्योग' बन चुका था. लेकिन 2025 में अब तक केवल 23 मामले सामने आए हैं. यह आंकड़ा 94.4% की गिरावट दर्शाता है, जो एक अभूतपूर्व परिवर्तन है. वर्ष 2009 में यह आंकड़ा गिरकर 80 रह गया था और तब से हर वर्ष इसमें सतत गिरावट दर्ज की गई. यह नतीजा है कठोर कानूनों, समय पर कार्रवाई, और पुलिस की सक्रियता का, जिसने अपराधियों की नकेल कस दी.
अपराधियों में बढ़ा डर
सिर्फ अपहरण ही नहीं, बल्कि हत्या जैसे जघन्य अपराधों में भी गिरावट देखी गई है. साल 2020 में जहां 3,149 हत्या के केस दर्ज हुए थे, वहीं 2024 में यह घटकर 2,786 रह गए. यानी लगभग 11.5% की गिरावट. यह आंकड़ा दिखाता है कि अपराध पर नियंत्रण का प्रभाव कितना व्यापक है. जनता में सुरक्षा की भावना मजबूत हुई है और अपराधियों में कानून का भय उत्पन्न हुआ है, जो पहले नदारद था. यह गिरावट किसी एक वर्ष की नहीं, बल्कि दशक भर की ठोस और निरंतर कार्यवाही का परिणाम है.
'अपहरण उद्योग' की कब्रगाह बना नया बिहार
बिहार की सबसे बड़ी बदनामी, 'अपहरण उद्योग', अब इतिहास बनने की ओर है. पहले बच्चे हों या कारोबारी, किसी का भी सुरक्षित रह पाना कठिन था. मगर अब हालात पूरी तरह पलट चुके हैं. संगठित अपराध के गिरोह या तो खत्म हो चुके हैं या जेलों में बंद हैं. इसका श्रेय आधुनिक पुलिसिंग, डिजिटल निगरानी, तेज रेस्पॉन्स सिस्टम और जवाबदेह प्रशासनिक कार्यशैली को जाता है. नीतीश सरकार की 'सुनवाई से पहले कार्रवाई' वाली नीति ने बिहार को अपराधमुक्त बनाने की दिशा में निर्णायक भूमिका निभाई है.
जहां डर था, वहां अब उम्मीद और विकास है
बिहार की छवि अब केवल अपराध या पलायन की नहीं, बल्कि सामाजिक सुधार, बुनियादी ढांचे और महिला सशक्तिकरण की बन रही है. हर घर नल का जल योजना, 'जीविका' जैसी महिला सशक्तिकरण योजनाएं, बिहार पुलिस में महिलाओं की रिकॉर्ड भागीदारी और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार, ये सब संकेत हैं कि बिहार अब भय की जगह उम्मीद का प्रतीक बन चुका है. मखाना को जीआई टैग मिलने से लेकर बोधगया की अंतरराष्ट्रीय पहचान तक, राज्य का चेहरा बदल रहा है.
अपराध पर लगाम, विकास की रफ्तार
सुधार केवल पुलिसिंग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राज्य के समग्र विकास से जुड़ा है. कानून व्यवस्था में सुधार से निवेश बढ़ा है, और इससे रोजगार के अवसर भी पैदा हुए हैं. पर्यटन, कृषि, शिक्षा और स्टार्टअप जैसे क्षेत्रों में बिहार ने नई उड़ान भरी है. जो राज्य कभी नेताओं के अपहरण और फिरौती के किस्सों से खबरों में रहता था, आज उसी राज्य की पहचान तकनीकी सुधार, सामाजिक भागीदारी और प्रशासनिक पारदर्शिता से हो रही है. यह बदलाव दर्शाता है कि अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक प्रतिबद्धता हो, तो सबसे कठिन छवि भी बदली जा सकती है.