‘मखाना वाला’ बना ग्लोबल ब्रांड! अमेजन से अमेरिका तक पहुंचा मिथिला का स्वाद, 100 से अधिक परिवारों को मिला रोजगार

दरभंगा के श्रवण कुमार रॉय ने सिर्फ ₹15,000 से 'एमबीए मखानावाला' ब्रांड की शुरुआत कर मखाना को वैश्विक मंच तक पहुंचाया. उन्होंने कॉरपोरेट नौकरी छोड़कर मखाने को हेल्दी स्नैक के रूप में प्रस्तुत किया, जिसे G-20 सम्मेलन तक पहचान मिली. IIT में असफलता को प्रेरणा बनाकर स्टार्टअप की राह चुनी और 100 से अधिक परिवारों को रोजगार दिया. संघर्षों के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और GI टैग सहित कई सम्मान हासिल किए.;

By :  अच्‍युत कुमार द्विवेदी
Updated On : 27 Jun 2025 8:56 PM IST

Shravan Kumar Roy, Darbhanga Makhana Brand: दरभंगा के श्रवण कुमार रॉय ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि अगर सोच नई हो और इरादे मजबूत हों तो किसी भी देसी उत्पाद को वैश्विक मंच तक पहुंचाया जा सकता है. उन्होंने महज ₹15,000 से 'एमबीए मखानावाला' ब्रांड की शुरुआत की, जो अब न केवल भारत के हर कोने में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है, बल्कि अमेरिका तक अपनी पहचान बना चुका है. उन्होंने कॉरपोरेट करियर में ₹8 लाख सालाना पैकेज छोड़कर मखाना को हेल्दी स्नैक ब्रांड में तब्दील कर दिया.

G-20 सम्मेलन तक पहुंचा मखाना

मिथिला क्षेत्र के दरभंगा, मधुबनी और सहरसा से निकलने वाला मखाना अब पारंपरिक व्यंजन नहीं रहा. श्रवण ने इसे नए फ्लेवर में ढालते हुए मखाना डोसा, मखाना कुकीज़, मखाना खीर जैसी वैरायटी बाजार में उतारी. G-20 जैसे मंच पर भी इनके मखाने से बने व्यंजन पेश किए गए. दरभंगा एयरपोर्ट पर भी मखाना सेंटर खोला गया है.

आईआईटी में असफलता बनी प्रेरणा

तीन बार आईआईटी में असफल होने के बाद श्रवण ने हिम्मत नहीं हारी और मखाना स्टार्टअप की राह पकड़ी. पैकेजिंग और इनोवेटिव आइडिया के सहारे उन्होंने मखाना को ग्लोबल ब्रांड में बदल दिया और 100 से अधिक परिवारों को रोजगार दिया.

संघर्षों से भरी रही राह

नौकरी छोड़ने, पारिवारिक विरोध, बैंक लोन में अड़चन और कोविड जैसी चुनौतियों के बावजूद श्रवण ने हार नहीं मानी. उन्हें MSME ऑनर अवार्ड 2021 और जिला उद्यमिता पुरस्कार 2022 मिला है. वे भारत सरकार से GI टैग प्राप्त मखाना के पहले आधिकारिक उपयोगकर्ता हैं.

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