INSIDER: कानून का छात्र PhD स्कॉलर बाहुबली सुनील पाण्डेय दोस्त का कत्ल करते ही कैसे बिहार की ‘सनसनी’ बन गया, पढ़ें पूरी ‘क्राइम कुंडली’
बिहार के बाहुबली पूर्व विधायक सुनील पाण्डेय की कहानी अपराध, राजनीति और ताकत के खतरनाक संगम की मिसाल है. कानून के छात्र और पीएचडी स्कॉलर रहे सुनील का सफर दोस्त की हत्या से शुरू होकर विधानसभा तक पहुंचा. उन पर अपहरण, लूट, हत्या की साजिश जैसे 23 केस दर्ज हैं. उम्रकैद की सजा भी मिली, मगर हाईकोर्ट ने राहत दी. रणवीर सेना, ब्रह्मेश्वर मुखिया, सिल्लू और बिहार की आपराधिक राजनीति – सबमें सुनील पाण्डेय का नाम गूंजता रहा.;
इन दिनों बिहार राज्य में विधानसभा चुनाव 2025 का उत्सव मनाया जा रहा है. बड़े-बड़े नेता जहां अपनी इज्जत बचाने की जंग से जूझ रहे हैं. वहीं छुटभैय्या, आपराधिक प्रवृत्ति के तमाम अनाप-शनाप और बदनाम शख्सियतें विधानसभा में ‘माननीय’ बनकर बैठने का ख्वाब संजो रही हैं. इसमें हैरत की क्या बात है? अपराध और बदनामी के कॉकटेल से तो बिहार में अब क्या, बीते कई दशक से ‘नेता-मंत्री’ बनते रहे हैं. लिहाजा जिस सूबे में हाईकोर्ट ही ‘जंगलराज’ होने की दुहाई दे डाले. तब फिर वहां कैसी शराफत और किसकी शराफत.
ऐसे गजब के सफेदपोश बाहुबली की स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन ने जब ‘क्राइम कुंडली’ तलाशी-पढ़ी तो गजब की तमाम हैरतअंगेज कहानियां उसमें रोती-चीखती दिखाई पड़ीं.
जब-जब बिहार और वहां की राजनीति का जिक्र होता है, तब-तब कई उन बदनाम बाहुबलियों का नाम और चेहरा खुद-ब-खुद ही जेहन में आ जाता है, जो बदमाशी के बलबूते ही माननीय सफेदपोश नेता-विधायक-सांसद और मंत्री तक बने. इसी जमात में एक नाम शामिल है सुनील पाण्डेय उर्फ नरेंद्र पाण्डेय का. सोचिए कभी आपने ऐसा देखा है कि इंसान एक और नाम दो-दो. चौंकिए मत बिहार की राजनीति में सब चलता है. और इसी टाइप के दो-दो नाम वाले बिहार की राजनीति के क्षितिज को कालांतर में भी छूते रहे हैं और आइंदा भी छूते रहेंगे.
NIA के छापे भी जिसका कुछ न बिगाड़ सके
यह 5 जून 1966 को जन्मे उन्हीं सुनील पाण्डेय की करतूतों की क्राइम कुंडली है, साल 1998 में जिनकी निशानदेशी पर मुंगेर के मिर्जापुर गांव में मौजूद खेतों-कुंओं से बरामद हुई थीं 20 एके-47 राइफलें. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वे राइफलें जबलपुर ऑर्डिनेंस डिपो की बताई गईं थीं. साल 2019 में इन्हीं बिहार के बदनाम बाहुबली और इनके चाहने वालों की नजर में ‘माननीय नेता जी विधायक जी’ के अड्डों पर जब NIA जैसी देश की बड़ी जांच एजेंसी ने ताबड़तोड़ छापे मारे. तब भी इनका बिगड़ा कुछ नहीं.
सजा हुई थी उम्रकैद की मगर हाईकोर्ट ने कर दिया माफ
ऐसे खूंखार नाम जनप्रतिनिधि सुनील पाण्डेय के बारे में आपको कुछ छानने खंगालने की जरूरत नहीं है. अपने दस्तावेजों में अपनी क्राइम कुंडली अपने हाथों से यह खुद ही लिखा करते हैं. साल 2010 के चुनाव में दिए गए हलफनामें में सुनील पाण्डेय ने खुद लिख कर बताया था कि उनके खिलाफ 23 आपराधिक मामले दर्ज है. जिनमें अपहरण, लूट, हत्या की साजिश, रंगदारी जैसे संगीन अपराध भी तैर रहे थे. साल 2003 में जब बिहार के मशहूर सर्जन रमेश चंद्र का 50 लाख की फिरौती के लिए अपहरण हुआ, तब भी अपने मतदाताओं के लाडले मगर कानून की नजर में बदनाम बाहुबली इन्हीं सुनील पाण्डेय का नाम खूब उछला था. उसमें मुकदमा चला जिसमें सुनील पाण्डेय का भी नाम शामिल था. सजा हुई थी उम्रकैद की. मगर हाईकोर्ट ने अपहरण के आरोपी और निचली अदालत द्वारा उम्रकैद के सजायाफ्ता नेताजी को कानूनी फाइलों में मौजूद कमजोरियां ताड़कर माफ कर दिया.
साल 2000 में रोहतास से पहली बार बने विधायक
पूर्वांचल के बाहुबली बदनाम नाम मुख्तार अंसारी को मारने के लिए तो उस षडयंत्र में सुनील पाण्डेय का नाम आने से तो मानो पीएचडी होल्डर नेता जी की क्राइम की दुनिया में किस्मत ही खुल गई. जब टॉप के बदनाम बाहुबली बने तो कानून के फंदे से अपनी गर्दन बचाने की चिंता सताने लगी. लिहाजा सुनील पाण्डेय साल 2000 में बिहार विधानसभा पहुंच गए समता पार्टी के माननीय विधायक जी बनकर...सीट थी रोहतास की पीरो विधानसभा.
कानून की भी है डिग्री
अब खबरें आ रही हैं कि ऐसे सुनील पाण्डेय जब क्राइम और पॉलिटिक्स का कॉकटेल हजम करने में माहिर हो गए..तब वे अपने बेटे को भी बाहुबली पुत्र के रूप में अपनी ही तरह माननीय नेता बनाकर विधानसभा में बैठाने का सपना संजो रहे हैं. ऐसा नहीं है कि सुनील पाण्डेय का नाम बिहार में सिर्फ बदमाशी के लिए ही बदनाम रहा हो. यह शायद बिहार के ऐसे इकलौते नेता जी भी हैं जो न केवल एमए और भगवान महावीर पर पीएचडी हैं, अपितु इन्होंने कानून की पढ़ाई भी की है. शायद इसलिए ताकि अपराध जगत में उतरने पर इन्हें थाने चौकी की पुलिस या कोई और वकालत न पढ़ा सके.
तीन बार रह चुके हैं विधायक
सुनने में आ रहा है कि अब ऐसे सुनील पाण्डेय ने राजनीति से अपने कदम पीछे खींचकर बेटे विशाल प्रशांत को इस बार के विधानसभा चुनाव के मैदान में उतार उन्हें नेता बनाने की चाहत पाल ली है. सुनील पाण्डेय का जन्म रोहतास जिले में जब हुआ तो उनका नाम नरेंद्र पाण्डे था. पिता कामेश्वर पाण्डेय ठेकेदारी करते थे. नरेंद्र पाण्डेय उर्फ सुनील पाण्डेय अपने सुधरे हुए दिनों में ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने बेंगलुरू भी चले गए. मगर बात नहीं बनी और बीच में ही वापिस लौट आए. उसके बाद ही उन्होंने आरा की स्थानीय यूनिवर्सिटी से एमए और फिर पीएचडी की उपाधि ली और फिर कानून की पढाई भी कर डाली. ऐसे सुनील पाण्डेय तीन बार बिहार विधानसभा के विधायक बन चुके हैं. एक बार समता पार्टी से और दो बार राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी से.
चाकूबाजी ने बदल दी सुनील पाण्डेय के जीवन की दिशा
यहां जिक्र कर रहा हूं बिहार के उन्हीं माननीय पूर्व विधायक सुनील पाण्डेय का जो अपनी आधी जिंदगी जेल में और बाकी बची जिंदगी खुद को खाकी और कानून से बचाने की जद्दोजहद में बिताए बैठे हैं. जहां तक सवाल एक ठेकेदार के होनहार पुत्र की सोहबत बिगड़ने का है तो इसके पीछे सुनील पाण्डेय की किशोरावस्था में एक युवक से हुआ झगड़ा प्रमुख वजह है. जिसमे तब के नरेंद्र पाण्डेय और आज के सुनील पाण्डेय ने चाकू मार दिया. चाकूबाजी की उस एक घटना ने सुनील पाण्डेय के जीवन की दशा और दिशा ही मोड़ दी. यह तब की बातें है जब रोहतास और उसके आसपास के इलाकों में मोहम्मद शहाबुद्दीन के करीबी मुंहलगे सिल्लू का सिक्का चला करता था. धीरे-धीरे सुनील और सिल्लू की दोस्ती हुई तो एक करेला था ही दूसरा नीम चढ़ गया.
जिनसे की दोस्ती, उनको ही बना लिया दुश्मन
बाद में सिल्लू और सुनील पाण्डेय में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हुई तो एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए. एक दिन सिल्लू का मर्डर हुआ तो उसमें इन्हीं सुनील पाण्डेय का नाम आया. 90 के दशक में जब रणवीर सेना और उसके संस्थापक ब्रह्मेश्वर मुखिया का सिक्का चला करता था. तभी सुनील पाण्डेय उनके करीब पहुंचकर रणवीर सेना का कमांडर बन बैठा. साल 1993 में एक भट्ठा मालिक के हुए कत्ल को लेकर सुनील पाण्डेय की ब्रह्मेश्वर मुखिया से भी खूनी जंग शुरू हो गई. जनवरी 1997 में जब बोजपुर के तरारी प्रखंड के बागर गांव में 3 भूमिहार कत्ल कर डाले गए, तो उस तिहरे हत्याकांड ने सुनील पाण्डेय और ब्रह्मेश्वर मुखिया के बीच अदावत की खाई और ज्यादा गहरी कर डाली. क्योंकि उस तिहरे हत्याकांड में कत्ल होने वाली महिला सुनील पाण्डेय की करीबी रिश्तेदार थी.
नतीजा यह रहा कि 1 जून 2012 को बह्रेश्वर मुखिया का भी कत्ल हो गया. जिसमें सुनील पाण्डेय और उसके छोटे भाई हुलास पाण्डेय का नाम आया. हालांकि ब्रह्रेश्वर मुखिया हत्याकांड में भी दोनो भाईयों को बाल-बाकां नहीं हुआ.कैदी लंबू शर्मा और अखिलेश उपाध्याय की फरारी में भी सुनील पाण्डेय का नाम खूब उछला था. जिसमें सुनील पाण्डेय को गिरफ्तार भी किया गया था.