अफगानिस्तान की ‘रूह' हजरत अली की मजार भूकंप से हुई क्षतिग्रस्त, जानें क्यों खास है मजारे शरीफ की दरगाह

अफगानिस्तान के मजारे शरीफ में स्थित हजरत अली की मजार को भूकंप से नुकसान पहुंचा है. इस पवित्र दरगाह को इस्लाम की सबसे अहम धार्मिक धरोहरों में गिना जाता है. माना जाता है कि यहां पैगंबर मोहम्मद के दामाद और इस्लाम के चौथे खलीफा हजरत अली की कब्र है. मजार की नीली टाइलें और फारसी शैली की वास्तुकला इसे अफगानिस्तान की ‘रूह’ बनाती हैं.;

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By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 3 Nov 2025 6:09 PM IST

अफगानिस्तान में आए भूकंप ने देश की सबसे पवित्र जगहों में शुमार मजारे शरीफ स्थित हजरत अली की मजार को भारी नुकसान पहुंचा है. रौजा-ए-शरीफ या ब्लू मॉस्क के नाम से मशहूर यह दरगाह न सिर्फ अफगानिस्तान की पहचान है बल्कि पूरे इस्लामी जगत में इसकी गहरी आस्था जुड़ी हुई है. भूकंप में इसके कुछ हिस्से क्षतिग्रस्त हुए हैं, लेकिन लोगों की श्रद्धा अब भी अडिग है. आखिर क्यों कहा जाता है इस दरगाह को अफगानिस्तान की ‘रूह’? आइए जानते हैं इसका इतिहास और धार्मिक महत्व.

हजारे शरीफ और हजरत अली की मजार का इतिहास

अफगानिस्तान के उत्तरी प्रांत बल्ख की राजधानी मजारे शरीफ इस्लामी इतिहास में एक बेहद पवित्र और ऐतिहासिक स्थल माना जाता है. यहां स्थित 'रौजा-ए-शरीफ' या हजरत अली की मजार को इस्लाम की सबसे अहम दरगाहों में गिना जाता है. माना जाता है कि यह वही स्थान है, जहां इमाम अली इब्न अबी तालिब (हजरत अली) की कब्र मौजूद है, जो पैगंबर मोहम्मद के चचेरे भाई और दामाद थे.

मजार की अहमियत

  • यह मजार अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि पूरे मध्य एशिया के मुस्लिमों के लिए तीर्थस्थल मानी जाती है.
  • हर साल यहां 'नौरोज' (फारसी नववर्ष) पर लाखों श्रद्धालु इकट्ठा होकर समारोह मनाते हैं.
  • स्थानीय मान्यता है कि जब हजरत अली की मजार का स्थान सीरिया के बजाय अफगानिस्तान में खोजा गया, तब इस जगह का नाम पड़ा - 'मजारे शरीफ', यानी 'पवित्र समाधि.'
  • मजार का निर्माण 12वीं शताब्दी में सुल्तान अली मिर्जा हुसैन बायकरा ने करवाया था. इसकी नीली टाइलों और फारसी वास्तुकला के कारण इसे 'ब्लू मॉस्क' के नाम से भी जाना जाता है.

भूकंप में हुआ नुकसान

दरअसल, अफगानिस्तान में बीती रात आए 6.4 तीव्रता के भूकंप ने कई इलाकों में भारी तबाही मचाई है. भूकंप का केंद्र समनगान प्रांत में मजार-ए-शरीफ शहर से 51 किलोमीटर और खुल्म शहर से 23 किलोमीटर दूर पर था. अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के मुताबिक यह झटका जमीन से करीब 28 किलोमीटर की गहराई में दर्ज किया गया.

अफगानिस्तान में आए इस भूकंप से ऐतिहासिक दरगाह को आंशिक नुकसान हुआ है. स्थानीय प्रशासन के अनुसार मजार की बाहरी दीवारों में दरारें आई हैं. कुछ हिस्सों की टाइलें टूट गईं हैं. हालांकि, दरगाह का केंद्रीय गुंबद और मुख्य प्रवेश द्वार सुरक्षित हैं. फिलहाल, संरक्षण कार्य जारी है.

सांप्रदायिक एकता का प्रतीक

हजरत अली की मजार सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि अफगानिस्तान में सांप्रदायिक एकता और इस्लामी इतिहास की धरोहर मानी जाती है. यहां शिया और सुन्नी दोनों समुदाय श्रद्धा से आते हैं.

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