लालू के 'तबेले' से निकलता था रोज़ 200 लीटर दूध! वे डायलॉग जो आज भी इंटरनेट पर लगाते हैं आग

मुख्यमंत्री बनने से पहले लालू प्रसाद यादव की जिंदगी बेहद साधारण थी, लेकिन संघर्षों से भरी. पढ़ाई के दौरान पटना में रहने के लिए उन्होंने गांव से गाय मंगाई और एक छोटा सा तबेला (डेयरी) शुरू किया. इसी तबेले से वे हर दिन करीब 200 लीटर दूध बेचते थे, जिससे उनका खर्च चलता था. यही संघर्ष आगे चलकर उन्हें बिहार की राजनीति का सबसे बड़ा नाम बना गया.;

By :  सागर द्विवेदी
Updated On : 11 Jun 2025 6:10 AM IST

Happy Birthday Lalu Yadav: आज 11 जून को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और देश की राजनीति के सबसे चर्चित चेहरों में से एक लालू प्रसाद यादव का 78वां जन्मदिन है. लालू यादव सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि एक चलता-फिरता किस्सों का खजाना हैं. कभी अपने बयानों से हंसा देते हैं, तो कभी अपने पुराने दिनों के किस्सों से चौंका देते हैं.

इन दिनों वे अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को लेकर भी सुर्खियों में हैं, कहते हैं, बेटे ने मोहब्बत क्या कर ली, पिता ने सजा दे दी! लेकिन आज तेज प्रताप नहीं, बात करेंगे लालू यादव की उस कहानी की जो बहुत कम लोग जानते हैं. जी हां, 'बुड़वक', 'नहीं मांगा तो नहीं मिलेगा पागली' जैसे मशहूर जुमलों से आगे चलकर आज हम जानेंगे लालू यादव का दूध बेचने वाला किस्सा. वो दौर जब वे नेता नहीं, दूधवाले लालू थे.

लालू यादव और दूध की बाल्टी वाली कहानी

एक बार की बात है, जब लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने ही थे. तभी किसी पत्रकार ने उनसे पूछा, 'आप राजनीति में कैसे आए? इतनी ऊँचाई कैसे पाई?' लालू मुस्कुराए और बोले 'हम तो गाय-बकरी चराने वाले आदमी हैं. एक टाइम था जब हम दूध लेकर पटना में बेचा करते थे.'

उन्होंने बताया कि वे बचपन में गांव से पटना पढ़ाई करने आए थे. रहने और खाने के लिए पैसे नहीं थे. तो उन्होंने अपने गांव से एक गाय मंगवा ली और रोज़ सुबह खुद दूध दुहकर, सिर पर बाल्टी रखकर बेचने निकल पड़ते. पटना यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में रहकर वे पढ़ते भी थे और वही दूध बेचकर अपनी जरूरतें भी पूरी करते. क्लास में पहले दूध पहुंचाते, फिर खुद पढ़ते और वहीं से उनके संघर्ष की शुरुआत हुई, छात्र राजनीति, यूनियन का चुनाव, और फिर पूरा बिहार उन्हें पहचानने लगा.

'नहीं मांगा तो नहीं मिलेगा पागली'- ममता बनर्जी को क्यों कहा?

किस्सा साल 2012 का जब ममता बनर्जी रेल मंत्री थीं और लालू यादव संसद में उनसे कुछ रेल सुविधाओं को लेकर सवाल कर रहे थे. ममता चुप रहीं, तो लालू ने मज़ाकिया लहजे में कहा 'नहीं मांगा तो नहीं मिलेगा पागली! पूरा संसद ठहाकों से गूंज गया.

बुड़वक मत बनाओ हमको!

यह जुमला कई बार उन्होंने विरोधियों, पत्रकारों और अफसरों को कहा है, "बुड़वक" यानी मूर्ख, बेवकूफ — यह शब्द अब बिहार की राजनीतिक जुबान बन चुका है.

क्या लालू यादव गवार?

लालू यादव का भाषण न क्लासिकल हिंदी में होता है, न उर्दू या अंग्रेज़ी में. बल्कि, वो बोलते हैं 'मिथिलांचली, भोजपुरिया और मगही मिक्स लालू हिंदी', जो बिहार के गांव-गांव तक समझी जाती है. “भाषा वो होनी चाहिए जो जनता के दिल में उतर जाए, न कि डिक्शनरी में अटक जाए, इसलिए आज भी लालू यादव के जुमले सोशल मीडिया पर वायरल होते हैं.

बिहार की राजनीति में लालू यादव का योगदान

1990 में बने बिहार के मुख्यमंत्री, और 1997 तक रहे. गरीब-पिछड़ों-दलितों की राजनीतिक आवाज़ को बुलंद किया. मंडल कमीशन लागू कराने के पक्षधर और सबसे मुखर नेता थे. रेल मंत्री (2004-2009) रहते हुए भारतीय रेल को मुनाफे में ला दिया. ये खुद IIM और हावर्ड केस स्टडी बन गया.

कितनी बार जेल गए लालू यादव?

चारा घोटाला (Fodder Scam) यह घोटाला 1990 के दशक में सामने आया, जिसमें सरकारी खजाने से पशुओं के चारे के नाम पर 950 करोड़ से ज्यादा की हेराफेरी हुई. लालू यादव मुख्य अभियुक्त थे. 1997 में पहली बार जेल गए, 2000 के दशक में कुछ अंतराल पर बेल और गिरफ्तारी, 2013 – दोष सिद्ध, जेल. 2017 – दोबारा जेल, 2018–21: कई बार रांची की बिरसा मुंडा जेल और अस्पताल में रहे. 2021 में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली.

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