बिहार में वोटर लिस्ट से नाम कटवाने की होड़! उठे सियासी सवाल, क्या है झोल?
बिहार की मतदाता सूची में नाम जोड़ने से ज्यादा नाम हटाने के आवेदन आने से सियासी हलचल तेज हो गई है. लोग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि SIR विवाद के बीच उठ नाम काटने के पीछे क्या है असली खेल? दूसरी तरफ चुनाव आयोग का कहना है कि नाम कटवाने या जोड़ने का मुद्दा तकनीकी है, न कि सियासी.;
बिहार की राजनीति इन दिनों मतदाता सूची (Voter List) को लेकर चरम पर है. वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने से ज्यादा नाम कटवाने के लिए आवेदन आए हैं. चुनावी साल में यह ट्रेंड सियासी हलकों में सवाल खड़ा कर रहा है कि आखिर मतदाता सूची से इतनी बड़ी संख्या में नाम हटाने की कोशिश क्यों हो रही है? विपक्ष इसे सत्ता पक्ष की 'रणनीति' बता रहा है तो चुनाव आयोग का दावा है कि यह सिर्फ तकनीकी सुधार का माला है.
नाम कटवाने को लेकर चौंकाने वाले आंकड़े
बिहार चुनाव आयोग कार्यालय के मुताबिक हाल ही में मतदाता सूची पुनरीक्षण के दौरान नाम काटने के लिए आए आवेदन, नाम जोड़ने से कहीं ज्यादा रहे. यह सामान्य स्थिति से बिल्कुल उलट है.अकेले पटना जिले में करीब 1.35 लाख आवेदन नाम काटने के लिए आए. जबकि नए नाम जोड़ने के लिए 85 हजार आवेदन आयोग को मिले हैं. दरभंगा से 80 हजार से ज्यादा नाम हटाने का प्रस्ताव मिला है. जबकि सिर्फ 40 हजार नए जोड़ने की मांग लोगों ने की है. कई जिलों में नाम हटाने और जोड़ने का अनुपात 60:40 से भी ज्यादा है.
नए मतदाताओं के 13.3 लाख आवेदन मिले
चुनाव आयोग की ओर से जारी विवादास्पद मतदाता सूची पुनरीक्षण रिपोर्ट में बताया गया है कि 1 अगस्त से अब तक 13.3 लाख नए मतदाताओं ने पंजीकरण के लिए आवेदन किया है, जिससे अंतिम मतदाता सूची में पहले जारी किए गए मसौदे में शामिल लोगों की संख्या 7.24 करोड़ से काफी ज्यादा हो सकती है. दावों और आपत्तियों के लिए 1 सितंबर की समय सीमा से केवल दो दिन पहले, आयोग ने खुलासा किया कि 1 अगस्त को मसौदा सूची प्रकाशित होने के बाद से 29,872 नाम जोड़ने के आवेदनों के विरुद्ध 1,97,000 नाम हटाने के अनुरोध प्रस्तुत किए गए हैं. नए मतदाताओं के 61 हजार आवेदनों का निपटारा हो चुका है.
आयोग ने लगभग 3,00,000 मतदाताओं को संदिग्ध घोषित किया है. यह पहले हटाए गए 65 लाख नामों के अतिरिक्त है. इन सभी जिलों खासकर किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और सुपौल में मुस्लिम आबादी का एक बड़ा हिस्सा भी है.
इस मुद्दे पर सियासी बहस क्यों?
बिहार में एसआईआर (SIR) को लेकर विपक्ष पहले से सड़क पर है. नया डाटा सामने आने के बाद विपक्ष का आरोप है कि यह 'चुनिंदा वोटरों' को हटाने का खेल है. ताकि सत्ता पक्ष को चुनावी फायदा हो सके. आरजेडी और कांग्रेस ने चुनाव आयोग से शिकायत की कि मुस्लिम और दलित बहुल इलाकों में नाम काटने की दर ज्यादा है. सत्ता पक्ष (एनडीए) का कहना है कि 'डुप्लीकेट और मृतक' वोटरों की सफाई की जा रही है, इसमें कोई राजनीति नहीं है.
जमीनी हकीकत - फर्जी या तकनीकी दिक्कत?
बिहार के शहरों और ग्रामीण इलाकों के लोगों ने चुनाव आयोग से शिकायत की है कि उनका नाम बिना जानकारी के वोटर लिस्ट से हटा दिया गया. इस मामले में प्रवासी मजदूर और छात्र सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. क्योंकि वे अक्सर लंबे समय तक घर से बाहर रहते हैं. ग्रामीण इलाकों में अभी भी कई परिवारों को वोटर आईडी या एपिक कार्ड नहीं मिला, जिससे नाम हटाए जाने का खतरा और बढ़ गया है.
आम लोगों की चिंता क्या है?
बिहार के आम मतदाताओं को डर है कि कहीं उनका नाम भी गलती से न काट दिया जाए. इसलिए, अब लोग अपने वोटर लिस्ट की स्थिति जानने लगे हैं. बता दें कि हाल ही में सामने आए SIR (Suspected Illegal Voters Report) विवाद ने इस पूरे मामले को और संवेदनशील बना दिया है. विपक्ष का आरोप है कि सत्ता पक्ष अपने राजनीतिक फायदे के लिए नाम काटने का खेल खेल रहा है.