NEET एग्जाम में करोड़ों का ठगी रैकेट, डॉ. रंजीत और रामबाबू का गठजोड़ ऐसे देता था सिस्टम को चकमा
NEET एग्जाम घोटाले के गैंग का पर्दाफाश हो चुका है. यह गिरोह 4 लाख रूपये में स्कॉलर तैयार करता था. टेलीग्राम पर NEET पेपर लीक नाम से ग्रुप बनाकर फर्जीवाड़े का जाल चलाया जा रहा था. अब इस गैंग के तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है.;
बिहार में NEET परीक्षा को लेकर एक चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई है, जिसने पूरे राज्य में सनसनी फैला दी. कहानी शुरू होती है दो शातिर दिमागों से. डॉ. रंजीत कुमार जो इस वक्त बेगूसराय जेल में बतौर सरकारी डॉक्टर तैनात हैं और रामबाबू मल्लिक, जो दरभंगा के रहने वाले हैं.
इन दोनों की गिरफ्तारी समस्तीपुर और अररिया पुलिस की संयुक्त कार्रवाई में हुई. लेकिन यह सिर्फ दो लोगों की बात नहीं थी. पर्दे के पीछे एक संगठित गिरोह काम कर रहा था. इस गोरखधंधे का तीसरा खिलाड़ी था फैज नाम का एक पैथोलॉजिस्ट, जो टेलीग्राम पर ‘NEET पेपर लीक’ नाम से ग्रुप बनाकर फर्जीवाड़े का जाल फैला रहा था. पुलिस ने उसे भी धर दबोचा.
4 लाख स्कॉलर की कीमत
गिरोह का तरीका बेहद योजनाबद्ध था. हर कैंडिडेट से 10-10 लाख रुपये की डील होती थी. शुरुआत में 1 से 1.5 लाख रुपये एडवांस के तौर पर लिए जाते और बाकी पैसा रिजल्ट आने के बाद वसूला जाता. स्कॉलर यानी असली परीक्षा देने वाला फर्जी छात्र को 4 लाख रुपये में तैयार किया जाता था.
दोनों ठगों ने बांटे थे काम
इस रैकेट में डॉ. रंजीत की भूमिका थी उम्मीदवारों को जुटाने की. उसके पास मेडिकल छात्रों का अच्छा-खासा नेटवर्क था .दूसरी तरफ रामबाबू का काम था स्कॉलर का इंतजाम करना. वह ऐसे मेडिकल छात्रों को पैसे का लालच देकर परीक्षा में दूसरों की जगह बैठने के लिए मना लेता. पिछले पांच सालों से रंजीत और राम बाबू का गिरोह बिहार ही नहीं, बल्कि देश के अन्य हिस्सों के मेडिकल कॉलेजों तक फैला हुआ था. यह गिरोह मेडिकल छात्रों को मोटी रकम का लालच देता है.
करोड़ों का मालिक है डॉक्टर रंजीत
समस्तीपुर जिले के एक छोटे से गांव बेलसंडी तारा में रहने वाले डॉक्टर रंजीत कुमार करोड़ों का मालिक है. उसके पास वारिसनगर के चारो गांवों में भी 15 से 20 बीघा महंगी जमीन है, जिनकी कीमत दिन-ब-दिन बढ़ रही है. दलसिंहसराय में भी रंजीत कुमार ने कई संपत्तियां खरीद रखी हैं, जो इस बात का सबूत हैं कि उनकी सम्पत्ति की दायरा कितनी दूर तक फैला हुआ है.
रामबाबू को 15 साल पहले मिली थी नौकरी
दूसरी ओर, रामबाबू मल्लिक का नाम भी इस पूरे सॉल्वर रैकेट में सामने आया. वह दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में एक डेली वर्कर के तौर पर काम करता था. 15 साल पहले उसे इस कॉलेज में नौकरी मिली थी और उसकी तैनाती परीक्षा विभाग में की गई थी. परीक्षा विभाग में रहते हुए रामबाबू ने एक नई राह पकड़ी. मेडिकल और एमबीबीएस के छात्रों से काउंसलिंग के दौरान मोटी रकम लेकर उन्हें एडमिशन दिलवाना. यह उसका तरीका था पैसे कमाने का.