चुनावी सुधार या भरोसे पर वार! SIR पर NDA के सहयोगी ही उठाने लगे सवाल, जानें TDP की क्या है मांग?
बिहार में चुनाव आयोग के गहन पुनरीक्षण अभियान (एसआईआर) के दौरान तेजी से किए जा रहे वोटर लिस्ट सुधार पर पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर कई सवाल उठ खड़े हुए हैं. दस्तावेजों की असंगत मांग, नामों की अचानक कटौती, राजनीतिक दलों में मतभेद, और मतदाताओं के बीच भय-भ्रम ने प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह पैदा कर दिए हैं.;
बिहार में चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान को तेजी से अंजाम दिया है, जिसमें अब तक 88% काम पूरा हो चुका है. हालांकि, इस तेज़ी ने प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं. दस दिन का समय अभी शेष है, लेकिन मतदाता फॉर्म भरने में दिखाई गई जल्दबाज़ी ने प्रक्रिया की निष्पक्षता पर संदेह पैदा कर दिया है.
एसआईआर अभियान में एकरूपता का अभाव नजर आया. कहीं आधार नंबर लिया गया, तो कहीं नहीं. कहीं जन्म प्रमाण पत्र मांगा गया, तो कहीं बीएलओ ने बिना दस्तावेजों के ही संस्तुति दे दी. कुछ बूथों पर सैकड़ों नाम पहले से ही कटे पाए गए. ऐसी गड़बड़ियों ने इस प्रक्रिया को राजनीतिक संदेह के घेरे में ला खड़ा किया है.
टीडीपी ने भी उठाए सवाल
चंद्रबाबू नायडू की तेलुगुदेशम पार्टी (टीडीपी), जो केंद्र में एनडीए की अहम साझेदार है, ने भी एसआईआर पर सवाल उठाए हैं. पार्टी ने कहा है कि चुनाव के इतने करीब इस तरह की प्रक्रिया न की जाए और पहले से वैध वोटरों से दोबारा दस्तावेज मांगना अनुचित है. इसका सीधा अर्थ है कि एसआईआर पर सहमति केवल विपक्ष तक सीमित नहीं, बल्कि सहयोगी दलों में भी असंतोष है.
जेडीयू की दोहरी स्थिति और गड़बड़ी पर चुप्पी
जेडीयू जहां इसे सामान्य प्रक्रिया बताता है, वहीं दस्तावेजों की अनिवार्यता पर वह खुद भ्रम में दिखता है. जेडीयू नेता राजीव रंजन ने पारदर्शिता की मांग तो की, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया कि पार्टी एसआईआर के व्यवहारिक दोषों को लेकर क्या कदम उठाएगी. बीएलओ की अनियंत्रित कार्यशैली को लेकर पार्टी का रवैया अब भी बचाव वाला ही है.
विपक्ष का आरोप: डराने की रणनीति है
भाकपा-माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने इसे पूरी तरह से भय का वातावरण बनाने वाला कदम बताया. उनके अनुसार, दस्तावेज मांगने की प्रक्रिया अचानक शुरू हुई, जिसमें माता-पिता की पहचान तक पूछी जा रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में यह अभियान भय और भ्रम का कारण बन रहा है, जिससे बड़ी संख्या में लोग परेशान हैं.
एनडीए में बढ़ती जा रही दरार
बीजेपी इस पूरी प्रक्रिया पर चुप्पी साधे हुए है, लेकिन उसके सहयोगी दल टीडीपी का विरोध इस बात का संकेत है कि एसआईआर ने एनडीए के भीतर भी मतभेद पैदा कर दिए हैं. कांग्रेस, वाम दल, आरजेडी, टीएमसी और अन्य विपक्षी दल पहले ही अपनी आपत्तियां दर्ज करा चुके हैं, और अब सत्ता गठबंधन से भी आवाजें उठने लगी हैं.
आयोग ने क्या दी सफाई?
चुनाव आयोग ने दावा किया है कि यह एक नियमित प्रक्रिया है और दस्तावेज देना अनिवार्य नहीं है. लेकिन जब ज़मीनी स्तर पर बीएलओ दस्तावेज मांग रहे हैं, तो लोगों को भ्रम और भय होना स्वाभाविक है. आयोग की जिम्मेदारी बनती है कि वह न केवल स्पष्ट निर्देश जारी करे, बल्कि बीएलओ की कार्यशैली पर निगरानी भी सुनिश्चित करे.
भरोसा लौटाने की चुनौती
एसआईआर प्रक्रिया का उद्देश्य वोटर लिस्ट को शुद्ध करना है, लेकिन जिस तरह से यह अभियान चलाया गया, उसने वोटर भरोसे को चोट पहुंचाई है. अब आयोग के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह इस प्रक्रिया को पारदर्शी, एकरूप और बिना भय के पूर्ण करे, ताकि लोकतंत्र का सबसे पहला आधार, मतदाता की पहचान संदेह से बाहर रहे.