Bihar Election 2025: दलित और मुस्लिम वोटर बनेगे किंगमेकर, दूसरे चरण में 100 सीटों पर किसके पक्ष में जाएगी हवा?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण में मतदान से पहले सियासत गरमा गई है. इस बार निर्णायक भूमिका दलित और मुस्लिम मतदाताओं की होगी, जो 100 से अधिक सीटों का रुख बदल सकते हैं. वीआईपी के महागठबंधन में जाने और चिराग पासवान की स्वतंत्र रणनीति से समीकरण उलझे हुए हैं. सीमांचल में एआईएमआईएम और जनसुराज पार्टी के उभार ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है. जानिए कैसे दलित-मुस्लिम गठजोड़ बिहार की सत्ता की दिशा तय करेगा.;
बिहार विधानसभा चुनाव का दूसरा चरण अब तय करेगा कि पटना की कुर्सी किसके हिस्से आएगी. 11 नवंबर को होने वाले मतदान से पहले सियासी तापमान चरम पर है. इस बार मुकाबला सिर्फ एनडीए और महागठबंधन के बीच नहीं, बल्कि छोटे दलों के दम पर बदलते समीकरणों का भी है.
सबसे दिलचस्प मोड़ यह है कि इस बार चुनाव की ‘चाबी’ दो समुदायों दलित और मुस्लिम मतदाताओं के हाथों में है. करीब 18% दलित वोटर और सीमांचल की लगभग तीन दर्जन सीटों पर निर्णायक मुस्लिम मतदाता अब यह तय करेंगे कि बिहार की राजनीति की दिशा कौन तय करेगा.
दूसरे चरण में 100 सीटों पर दलितों का असर
दूसरे चरण में वोटिंग के लिए 94 सीटों पर मतदाता अपने प्रतिनिधि चुनेंगे, जिनमें से लगभग सौ सीटों पर दलित मतदाता निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं. बिहार में दलित आबादी लगभग 18% है, जिसमें 13% महादलित और करीब 5% पासवान (दुसाध) समुदाय के लोग शामिल हैं. इनकी संख्या कई विधानसभा क्षेत्रों में 30 से 40 हजार के बीच है, जो किसी भी उम्मीदवार की जीत-हार तय करने के लिए काफी है.
पिछले चुनाव से बदली राजनीतिक तस्वीर
2020 के चुनाव की तुलना में इस बार समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं. उस वक्त एनडीए को महागठबंधन से सिर्फ 1.6% अधिक वोट मिले थे, जिससे उसे 66 सीटों की जीत मिली थी. इस बार वीआईपी पार्टी महागठबंधन में शामिल हो चुकी है, जबकि चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) एनडीए से अलग होकर मैदान में है. इन बदलावों ने बिहार की सियासत को नया मोड़ दिया है.
चिराग और मांझी का समीकरण बदल सकता है पासा
भाजपा को उम्मीद है कि चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के साथ आने से पासवान और मुसहर बिरादरी के वोट एक बार फिर एनडीए के पक्ष में गोलबंद होंगे. पार्टी का अनुमान है कि इससे करीब 7.5% वोटों का सीधा फायदा मिलेगा. वहीं, पिछली बार चिराग के अकेले चुनाव लड़ने के कारण जेडीयू को करीब 22 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा था. इस बार एनडीए इस गलती को सुधारने में जुटा है.
सीमांचल में मुस्लिम वोट की अहम भूमिका
बिहार का सीमांचल इलाका हमेशा से मुस्लिम राजनीति का केंद्र रहा है. इस बार करीब 35 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता 30% से अधिक हैं. इन सीटों पर एआईएमआईएम और जनसुराज पार्टी ने अपने-अपने उम्मीदवार उतारकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है. यहां की मुस्लिम आबादी अब नए नेतृत्व की तलाश में है, जो उन्हें सत्ता में सीधा प्रतिनिधित्व दे सके.
AIMIM vs महागठबंधन की नई जंग
पिछले चुनाव में एआईएमआईएम ने सीमांचल की पांच सीटों पर जीत हासिल कर यह साबित किया था कि मुस्लिम मत अब पूरी तरह किसी एक पार्टी के कब्जे में नहीं हैं. इस बार ओवैसी ने महागठबंधन पर मुस्लिम समुदाय की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कहा है कि डिप्टी सीएम पद के लिए किसी मुस्लिम चेहरे को मौका न देना इस समुदाय का “राजनीतिक अपमान” है. यही कारण है कि एआईएमआईएम ने मुस्लिम बहुल सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं.
जनसुराज पार्टी का बढ़ता प्रभाव
प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी इस चुनाव में नई ऊर्जा के साथ उतर चुकी है. उन्होंने मुस्लिम और पिछड़े समुदायों पर खास ध्यान देते हुए कई मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं. जनसुराज का लक्ष्य है कि वह खुद को एक ‘इश्यू बेस्ड पार्टी’ के रूप में पेश करे, जो केवल जातीय समीकरण पर नहीं, विकास और युवाओं की भागीदारी पर राजनीति करे.
महागठबंधन की रणनीति और चुनौती
महागठबंधन इस बार दलित-मुस्लिम गठजोड़ को और मजबूत करने की कोशिश कर रहा है. तेजस्वी यादव का फोकस युवा, बेरोजगारी और सामाजिक न्याय पर है. वहीं कांग्रेस सीमांचल में अपनी पुरानी पकड़ वापस पाने की कोशिश कर रही है. पर एआईएमआईएम और जनसुराज के उभार से मुस्लिम वोटों का बिखराव महागठबंधन के लिए चिंता का विषय है.
NDA की उम्मीदें और दलित समीकरण
एनडीए इस बार दलित कार्ड पर बड़ा दांव लगा रहा है. भाजपा का प्रयास है कि वह पासवान, मुसहर और दुसाध समुदाय को फिर से अपने पाले में लाए. इसके लिए पीएम मोदी और नीतीश कुमार ने संयुक्त रैलियों में “सबका साथ, सबका विकास” का नारा दोहराया. एनडीए को विश्वास है कि अगर दलित वोटरों का 60% हिस्सा उनके पक्ष में गया, तो सत्ता की राह आसान हो जाएगी.