असम के गोलपाड़ा में पुलिस फायरिंग: 1 की मौत, कई पुलिसकर्मी घायल, अवैध कब्जा करने वालों से हुई थी झड़प

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने पहले ही साफ कहा था कि सरकार वन भूमि की रक्षा के अपने संकल्प से पीछे नहीं हटेगी और कोई भी व्यक्ति अगर इस प्रयास में बाधा बनेगा, तो सख्त कार्रवाई की जाएगी.;

Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 17 July 2025 1:19 PM IST

असम के ग्वालपाड़ा ज़िले के शांत पैकन फॉरेस्ट रिजर्व में उस सुबह सब कुछ सामान्य नहीं था. जैसे ही पुलिस और प्रशासन की टीम बेदखली अभियान के तहत जंगल के किनारे बसे अवैध ढांचों को हटाने पहुंची.

इस जमीन पर सालों से बसे कुछ परिवारों को यह विश्वास नहीं था कि आज उनका सब कुछ उजड़ जाएगा. वे खुद को बचाने और अपनी ज़मीन को न खोने की आखिरी कोशिश कर रहे थे. जहां भीड़ ने इसका विरोध किया और फिर हालात ऐसे बने की एक शख्स की मौत हो गई. 

एक मौत और कई ज़ख्म

जैसे ही बुलडोज़र ज़मीन पर चला, लोगों का सब्र टूट गया. स्थानीय लोग  हाथों में लाठियां, बांस लिए पुलिस पर हमला करने लगे. इतना ही नहीं, देखते ही देखते, भीड़ ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया. कुछ लोग पुलिस की मशीनों के सामने आ गए. हालात पर काबू पाने के लिए पुलिस ने गोली चलाई, जिसके कारण सकवार हुसैन की मौत हो गई. सकवार के परिवार ने बताया कि वह इस प्रदर्शन में नहीं था. वह तो बस सरकार से मुआवज़े की मांग कर रहा था. इतना ही नहीं, गुस्से से बौखलाई भीड़ ने एक स्थानीय स्कूल को भी आग के हवाले कर दिया.

2,700 ढांचों पर चलेगा बुलडोज़र

असम सरकार द्वारा चलाया गया यह अभियान कोई छोटा कदम नहीं था. लगभग 140 हेक्टेयर अतिक्रमित वन भूमि को खाली कराना और 2,700 अवैध ढांचों को हटाना, यह सब इस मिशन का हिस्सा था. इनमें से 1,000 से अधिक ढांचों में परिवार सालों से रह रहे थे. सरकार का तर्क था कि ये अतिक्रमण न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि जंगल में रहने वाले हाथियों और इंसानों के बीच संघर्ष को भी बढ़ा रहे हैं.

सरकार की चेतावनी

इससे पहले भी ऐसे टकराव हो चुके हैं. धुबरी ज़िले के बिलासीपाड़ा में जब बेदखली अभियान चलाया गया था, तब भी पुलिस को जनता के गुस्से का सामना करना पड़ा था. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने पहले ही साफ कहा था कि सरकार वन भूमि की रक्षा के अपने संकल्प से पीछे नहीं हटेगी और कोई भी व्यक्ति अगर इस प्रयास में बाधा बनेगा, तो सख्त कार्रवाई की जाएगी.

विकास बनाम विस्थापन

इस घटना ने एक बार फिर उस सवाल को सामने ला दिया है, जो अक्सर इन अभियानों में उठता है: क्या बेदखली सिर्फ कानून का पालन है, या इसके पीछे मानवीय पहलुओं की अनदेखी भी होती है? वन भूमि की रक्षा ज़रूरी है, लेकिन क्या सालों से बसे लोगों के लिए कोई स्थायी समाधान या पुनर्वास योजना तैयार की गई थी? 

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