क्यों फुलेरा दूज पर खेली जाती है फूलों की होली, जानें क्या है इसका श्रीकृष्ण से संबंध?
फुलेरा दूज को फूलों की होली भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन लोग एक-दूसरे पर फूलों की बौछार करते हैं. यह दिन खुशियों से भरा होता है. यह त्योहार विशेष रूप से मथुरा, वृंदावन, और अन्य कृष्ण भक्ति स्थलों पर बड़े धूमधाम से मनाया जाता है.;
फुलेरा दूज का त्योहार फाल्गुन के महीने में मनाया जाता है. कल यानी 1 मार्च को फुलेरा दूज है. इस दिन फूलों से होली खेलने का रिवाज है. यह दिन खासतौर पर भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा हुआ है. यह त्योहार कृष्ण के प्रेम और आनंद का प्रतीक है. इस दिन फूलों का महत्व अधिक होता है.
लोग एक-दूसरे पर फूलों की बारिश करते हैं और इस दिन को खुशी और आनंद के साथ मनाते हैं. फूलों के उपयोग को इस दिन शुद्धता और सौम्यता के तौर पर भी देखा जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं आखिर इस दिन रंगों के बजाय फूलों से होली क्यों खेली जाती है.
फुलेरा दूज का शुभ मुहूर्त
फुलेरा दूज का शुभ मुहूर्त 1 मार्च की आधी रात 3:16 से शुरू होकर अगले दिन 2 फरवरी को रात 12:09 पर समाप्त होगा.
क्या है कहानी?
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार श्रीकृष्ण कई दिनों तक राधा जी से मिल नहीं पाए थे. इस बात को लेकर राधा रानी दुखी और परेशान होने लगी. राधा की इस नाराजगी के कारण मथुरा के वन सूखने शुरू हो गए. साथ ही, फूल भी मुरझाने लगे. जब इस बात की खबर श्रीकृष्ण को मिली, तो वह तुरंत राधा से मिलने वृंदावन गए. कान्हा के पहुंचने से राधा जी खुश हुई और फिर मथुरा में चारों ओर हरियाली आ गई. इसके बाद कृष्ण ने फूल तोड़े और राधा को छेड़ने के लिए उन पर फेंकने लगे. बस इसके बाद सभी ने एक-दूसरे पर फूल बरसाने शुरू कर दी और यहीं से फूलों से होली खेलने का त्योहार शुरू हो गया.
फुलेरा दूज पर रिवाज
इस दिन लोग एक-दूसरे को फूलों से ताज पहनाते हैं. फूलों की बौछार करते हैं और इस दिन को उल्लास और खुशी के साथ मनाते हैं. लोग एक साथ इकट्ठा होते हैं, गीत गाते हैं, और खुशी का माहौल बनाते हैं. इस दिन विशेष रूप से मिठाईयां और पकवान बांटे जाते हैं.