सकल बन... बसंत पंचमी पर पीले फूल से क्यों सजाई जाती है हजरत निजामुद्दीन की दरगाह?
दरअसल हिंदू कैलेंडर के अनुसार, बसंत पंचमी माघ महीने के पांचवें दिन यानी पंचमी को मनाई जाती है. यह इस्लामिक कैलेंडर के पांचवें महीने का तीसरा दिन है, जिसे सूफी बसंत के रूप में भी मनाया जाता है. इसकी शुरुआत सूफ़ी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के समय में हुई थी.;
Basant Panchmi 2025 : 2 फरवरी को देश भर में धूमधाम से बसंत पंचमी मनाई जा रही है. बसंत पंचमी वह त्योहार है जो सर्दी से वसंत में बदलाव का प्रतीक है. हिंदू इस त्योहार को ज्ञान, विद्या और कला की देवी देवी सरस्वती के सम्मान में मनाते हैं. वहीं, हिंदू त्योहार को मां सरस्वती के साथ साथ सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया से भी जोड़ा जाता है. इस दौरान उनकी दरगाह पीले फूलों सज जाती है. इस खास मौके पर लोग उनकी दरगाह पर पीले वस्त्रों में उन्हें पीली चादर और फूल चढ़ाते हैं.
अब सब के मन में यह ख्याल जरूर आ रहा है होगा कि बसंत पंचमी से भला सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया का क्या रिश्ता है? दरअसल हिंदू कैलेंडर के अनुसार, बसंत पंचमी माघ महीने के पांचवें दिन यानी पंचमी को मनाई जाती है. यह इस्लामिक कैलेंडर के पांचवें महीने का तीसरा दिन है, जिसे सूफी बसंत के रूप में भी मनाया जाता है. इसकी शुरुआत सूफ़ी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के समय में हुई थी. इस वजह से उनकी दरगाह पर बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है. इस खास दिन पर कव्वाली का भी आयोजन होता है.
क्या है इतिहास?
एक बार सूफ़ी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया अपने भतीजे के मौत के गम में थे. उनके शिष्य अमीर खुसरो को जब ये बात पता चली तो वह उनसे मिलने चल दिए. रास्ते में उन्होंने देखा कि बहुत सारे लोग हाथों में पीले फूल लेकर और शरीर पर पीले वस्त्र धारण कर मंदिर जा रहे थे. तभी अमीर खुसरो ने जाने वालों में से एक को रोककर पीले फूलों और पीले कपड़े का कारण पूछा. उस शख्स ने अमीर खुसरो को बताया कि वह इस दिन अपने देवता को खुश करने के लिए उनके चरणों में पीले सरसों के फूल चढ़ाते हैं. फिर क्या था अमीर खुसरो भी अपने गुरु निज़ामुद्दीन औलिया को खुश करने के लिए हाथों में पीले सरसों के फूल लेकर नाचते-गाते पहुंचे. उन्हें लगा कि शायद वह इस तरह से ही अपने भतीजे के गम से बाहर आ सकते है. खुसरो जब अपने गुरु के पास पहुंचे तो निज़ामुद्दीन औलिया ने इस भाव भंगिमा का कारण पूछा, तो उन्होंने कहा कि यहां बसंत पंचमी के दिन लोग अपने खुदा को यह पीले सरसों के फूल चढ़ाते हैं इसलिए मैं अपने खुदा को खुश करने के लिए यह फूल लाया हूं. ये सुनकर निजामुद्दीन औलिया खुश हो गए और मुस्कुराने लगे. इसी वजह से आज भी बसंत पंचमी के दिन हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर पीले फूल और पीली चादरें चढ़ाई जाती हैं.
इन गानों से जुड़ी कहानी
साल 2023 में आई संजय लीला भंसाली की ओटीटी डेब्यू वेब सीरीज 'हीरामंडी : द डायमंड बाजार' में सकल बन सॉन्ग सबको पसंद आ आया था. जिस पर अगर गौर किया गया हो उस गाने में सभी मस्टर्ड येलो कलर के ऑउटफिट में नजर आ रहे थे. यहां तक साइड डांसर भी. लेकिन बता दें कि इस गाने में मस्टर्ड येलो कलर को टच देने का एक कारण था क्योंकि यह गाना 700 साल पुराने इतिहास से रूबरू कराता है जो सूफ़ी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया से ही जुड़ा है. जिसे उनके शिष्य अमीर खुसरो ने लिखा था. सकल बन... इस गाने का मतलब है पीली सरसों लहरा रही है, कोयल डाली पर चहचहा रही है और लड़कियां और महिलाएं अपने महबूब के लिए श्रृंगार कर रही हैं. जिसने उनसे वादा किया था कि वह बसंत में उनसे मिलने निज़ामुद्दीन औलिया के दरगाह पर आएगा लेकिन सालों बीत जाने के बाद भी वह नहीं आया. बता दें कि खुसरो ने सकल बन के अलावा 'दमा-दम मस्त कलंदर' और 'छाप तिलक सब छीनी' जैसे गाने भी अमीर खुसरो ने ही लिखे हैं.