पितृपक्ष: ब्रह्मकुंड में पिंडदान के बाद प्रेतशिला पर सत्तू उड़ाने का रिवाज, जानें क्या है रहस्य

पितृतीर्थ गया में नीचे ब्रह्मकुंड में पिंडदान और ऊपर पहाड़ी पर स्थित प्रेतशिला पर सत्तू उड़ाने का विधान है. गया में अपने पुरखों का पिंडदान करने वाला हरेक व्यक्ति ऐसा करता है, लेकिन इसका रहस्य बहुत कम लोगों को मालूम है.;

पितरों की तृप्ति और उनके मोक्ष के लिए लोग पितृपक्ष में खूब उपाय कर रहे हैं. बिहार के गया में तो इस समय मेला लगा है और यहां रोजाना 40 से 50 हजार लोग आकर अपने पितरों का तर्पण भी कर रहे हैं. इस दौरान लोग नीचे ब्रह्मकुंड में पिंडदान के बाद ऊपर आकर प्रेतशिला पर खूब सत्तू उड़ा रहे हैं. माना जाता है कि यह बहुत ही चमत्कारिक और रहस्यमयी कर्म है. दावा किया जाता है कि इतना करने से मृतात्मा को ना केवल प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है, बल्कि वह तत्काल ब्रह्मलोक को प्रस्थान कर जाता है. आइए, आज इसी रहस्य को समझने की कोशिश करते हैं.

इस रहस्य के बारे में किसी पौराणिक ग्रंथ में कोई वर्णन नहीं है. यह परंपरा कब से चल रही है और पहली बार किसने किया, यह भी किसी को पता नहीं. खुद गया के तीर्थ पुरोहितों को भी नहीं पता कि पहली बार प्रेतशिला पर किसने सत्तू उड़ाया था. लेकिन उनका मानना है कि प्रेत शिला पर सत्तू उड़ाने के चमत्कारिक लाभ देखे गए हैं. इस लिए अब तो इसके लिए पूरी व्यवस्था की गई है. बल्कि 676 सीढ़ियों के ऊपर बने मचान पर बैठे एक तीर्थ पुरोहित माइक पर लगातार अपील करते रहते हैं कि कोई रूके नहीं और प्रेत शिला चट्टान पर पिंडदानी सत्तू उड़ाते रहें.

लोक व्यवहार की है परंपरा

तीर्थ पुरोहितों के मुताबिक भले ही पौराणिक ग्रंथों में इसका कोई वर्णन नहीं है, लेकिन यह लोक व्यवहार की परंपरा है. इस परंपरा के मुताबिक प्रेतयोनि से मुक्ति के लिए प्रेतशिला पर सत्तू उड़ाना बहुत जरूरी है. इससे पहले ब्रह्मचरण पर पिंड दान किया जाता है. फिर प्रेत शिला का तीन बार परिक्रमा करते हुए सत्तू उड़ाया जाता है. तीर्थ पुरोहित भोला पांडेय कहते हैं कि ब्रह्मकुंड में पिंडदान के बाद ऊपर पहाड़ी पर स्थित प्रेतशिला पर आना होता है. यहां सत्तू उड़ाया जाता है. माना जाता है कि ऐसा करने से सूक्ष्म शरीर से हवा में विचरण कर रहे मृतात्मा को यह सत्तू प्राप्त होता है और वह तृप्त होकर परमधाम को चला जाता है.

माइक से पंडा करते हैं अपील

इस प्रकार उसे मृत्युलोक और प्रेतयोनि से मुक्ति मिल जाती है. तीर्थ पुरोहित शिवा पंडित के मुताबिक यही वजह है कि मचान पर बैठे पंडा लोगों से अपील करते हैं कि प्रेतशिला की परिक्रमा करते हुए सत्तू उड़ाते रहे और आखिर में जाकर काली माता के दर्शन करें. इससे पिंडदान करने वाले व्यक्ति और उसके परिवार पर प्रेतबाधा की समस्या हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जाती है. इससे मानव का कल्याण होता है.

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