मौसी मां के घर से विदा होंगे भगवान जगन्नाथ, शुरू हुई बाहुड़ा यात्रा, जानें क्या है ये परंपरा
जगन्नाथ रथ यात्रा वह पर्व है जब भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहन के साथ पुरी के श्रीमंदिर से बाहर निकलते हैं और गुंडिचा मंदिर तक विशाल रथों पर यात्रा करते हैं. इस यात्रा को देखने और रथ खींचने के लिए दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु पुरी आते हैं.;
भगवान जगन्नाथ विष्णु जी का ही रूप हैं. हर साल भारत के ओडिशा राज्य के पुरी शहर में जगन्नाथ रथ यात्रा होती है, जो एक विश्वप्रसिद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक त्यौहार है. यह उत्सव भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र की गुंडिचा मंदिर तक यात्रा और फिर वापसी (बाहुड़ा) का प्रतीक है.
बाहुड़ा यात्रा जगन्नाथ रथ यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. नौ दिन तक विश्राम करने के बाद भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को रथों में सवार कर श्रीमंदिर से बाहर गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है. इस वापसी को बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है.
बाहुड़ा यात्रा क्या है?
ओडिशा में बाहुड़ा का अर्थ वापसी होता है. यह यात्रा रथ यात्रा के नौवें दिन होती है, जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी अपने-अपने रथों में बैठकर गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर (मुख्य मंदिर) वापस लौटते हैं.
यात्रा का मार्ग
भगवान जगन्नाथ का रथ (नन्दीघोष), बलभद्र का (तालध्वज) और सुभद्रा का रथ (दर्पदलन) उसी रास्ते से लौटते हैं, जिससे वे आए थे. रास्ते में कई विशेष पड़ाव होते हैं. मौसी मां मंदिर यानी अर्धासनी देवी का मंदिर जहां भगवान जगन्नाथ थोड़ी देर के लिए रुकते हैं और मां को पोड़ा पिठा (एक पारंपरिक ओड़िया मिठाई) चढ़ाई जाती है.
कब भगवानों को रथ तक लाया जाएगा?
दोपहर करीब 12 बजे से 'पहंडी' अनुष्ठान की शुरुआत होगी, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा को भव्य विधि-विधान से मंदिर से बाहर लाकर रथों तक ले जाया जाएगा. यह रस्म लगभग 2:30 बजे तक पूरी होने की संभावना है.
सोने की झाड़ू से होती है सफाई
पुरी के राजा गजपति महाराज दिव्यसिंह देव, रथों की सफाई के पवित्र अनुष्ठान 'छेरा पहंरा' को निभाएंगे. वे सोने की झाड़ू से रथों को साफ करते हैं, जो भगवानों के प्रति समर्पण, सेवा और सामाजिक समानता का प्रतीक है.
कब खींचे जाएंगे रथ?
जब तीनों रथों में लकड़ी के प्रतीकात्मक घोड़े जोड़ दिए जाएंगे, तो शाम 4:00 बजे से श्रद्धालु रथ खींचना शुरू करेंगे. रथ यात्रा की शुरुआत भगवान बलभद्र के तालध्वज रथ से होगी, इसके बाद देवी सुभद्रा का दर्पदलन और अंत में भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ आगे बढ़ेगा.
रथयात्रा से जुड़ी मान्यताएं
यह यात्रा दर्शाती है कि भगवान अपने भक्तों को दर्शन देने स्वयं बाहर आते हैं. रथ खींचना बेहद पुण्यदायी माना जाता है. इसमें राजा और सामान्य जन सभी भाग लेते हैं. यह पर्व समरसता, भक्ति और सेवा का प्रतीक है.