जन्मकुंडली में सूर्य के कमजोर होने पर व्यक्ति को होते हैं ये 3 गंभीर रोग, जानें ये खास बातें

सूर्य को ऊर्जा का सबसे बड़ा कारक माना गया है. वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य का संबंध नेत्र से होता है. ऐसे में अगर जन्म कुंडली में सूर्य नकारात्मक या अशुभ भाव में बैठे हों तो व्यक्ति को आंखों से संबंधित बीमारियों का सामना करना पड़ता है.;

By :  State Mirror Astro
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वैदिक ज्योतिष शास्त्र में सभी 9 ग्रहों का विशेष महत्व होता है. सभी ग्रहों के अपने-अपने कारकत्व होते है, जो उसी के आधार पर जातकों के भाग्य का फैसला होता है. इसके अलावा वैदिक ज्योतिष शास्त्र में सभी 9 ग्रहों का संबंध रोगों से भी होता है. अलग-अलग ग्रह का संबंध कई प्रकार के रोगों से भी होता है. आज हम आपको यह बताने जा रहे हैं कि सूर्य का संबंध शरीर के किस अंगों और उससे संबंधित होने वाली बीमारियों से होता है. वैदिक ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को राजा का दर्जा प्राप्त है और यह आत्मा के कारक ग्रह हैं. सूर्य कुंडली में पिता का प्रतिनिधित्व करते हैं. यानी अगर किसी पुरुष की कुंडली है तो उसमें सूर्य पिता जबकि महिला की कुंडली में सूर्य पति के लिए शुभ-अशुभ फल प्रदान करते हैं.

कुंडली में सूर्य की स्थिति से सरकारी नौकरी, उच्च पद, प्रशासनिक पद, मान-सम्मान और नेतृत्व करने की क्षमता के बारे में विचार किया जाता है. अगर किसी जातक की जन्मकुंडली में सूर्य की महादशा चल रही हो और कुंडली में सूर्य अच्छे भाव में हो तो ऐसे समय में जातक को उच्च पदों की प्राप्ति होती है. सूर्य को सिंह राशि का स्वामी माना जाता है. ये मेष राशि में उच्च के जबकि तुला राशि में नीच के होते हैं. आइए जानते हैं अगर जन्म कुंडली में सूर्य अशुभ स्थिति में या कमजोर हैं तो व्यक्ति को कौन-कौन से रोग हो सकते हैं.

कुंडली में सूर्य के कमजोर होने पर रोग

1- नेत्र रोग

सूर्य को ऊर्जा का सबसे बड़ा कारक माना गया है. वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य का संबंध नेत्र से होता है. ऐसे में अगर जन्म कुंडली में सूर्य नकारात्मक या अशुभ भाव में बैठे हों तो व्यक्ति को आंखों से संबंधित बीमारियों का सामना करना पड़ता है. कुंडली के दूसरे भाव में अगर सूर्य नीच के होकर और अशुभ स्थिति में होकर विराजमान हैं तो आंखों से संबंधित परेशानियां हो सकती है. वहीं कुंडली के छठे भाव से रोग का विचार किया जाता है और सूर्य इस भाव में आकर शुत्र ग्रहों से संबंध बना ले तो व्यक्ति को आंखों से संबंधित बीमारियों का सामना करना पड़ता है.

2- ह्रदय रोग

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार व्यक्ति के ह्रदय का संबंध सूर्य देव से होता है. अगर कोई जातक ह्रदय रोग से पीड़ित है तो उसकी कुंडली में सूर्य शुभ नहीं होते है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर किसी जातक की कुंडली में सूर्य कमजोर और पीडित हो फिर इसका संबंध कुंडली के चौथे भाव से बनता हो तो व्यक्ति ह्रदय रोग से पीड़ित हो सकता है. इसके अलावा एक दूसरा सूत्र यह भी है कि सूर्य अगर नीच भाव में और अशुभ होकर चौथे भाव में हों तो व्यक्ति को ह्रदय से संबंधित बीमारियां होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है. इसके अलावा कुंडली के छठे भाव में अगर सूर्य नीच के यानी तुला राशि में हो या फिर सूर्य के साथ शनि नीत की अवस्था में विराजमान हो तो व्यक्ति को ह्रदय से संबंधित बीमारियों का सामना करना पड़ता है.

3- हड्डियों से संबंधित परेशानियां

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य का संबंध हड्डियों से भी होता है यानी हड्डियों के कारक ग्रह सूर्यदेव होते हैं. कुंडली में सूर्यदेव की कमजोर स्थिति और अशुभ ग्रहों के साथ संबंध बनने पर व्यक्ति को हड्डियों से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

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