Govardhan Puja 2024: जब इंद्रदेव के अभिमान को चकनाचूर कर श्रीकृष्ण ने उठाया था गोवर्धन पर्वत, जानिए पूरी पौराणिक कथा
कार्तिक मास में दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का पर्व बड़े ही खुशी से साथ मनाया जाता है. इस वर्ष गोवर्धन पूजा 14 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी. प्रतिपदा तिथि 13 नवंबर दोपहर 02:56 बजे से शुरू होकर 14 नवंबर को दोपहर 02:36 बजे तक रहेगी, जिसके कारण उदया तिथि के आधार पर पूजा का आयोजन 14 नवंबर को किया जा रहा है.;
Govardhan Puja 2024: कार्तिक मास में दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का पर्व बड़े ही खुशी से साथ मनाया जाता है. इस वर्ष गोवर्धन पूजा 14 नवंबर
2023 को मनाई जाएगी. प्रतिपदा तिथि 13 नवंबर दोपहर 02:56 बजे से शुरू होकर 14 नवंबर को दोपहर 02:36 बजे तक रहेगी, जिसके कारण उदया तिथि के आधार पर पूजा का आयोजन 14 नवंबर को किया जा रहा है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत का विशेष पूजन किया जाता है, जिसे अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है. इस दिन घरों के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और गौधन की आकृति बनाई जाती है और विभिन्न पकवानों का भोग अर्पित किया जाता है.
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा
धार्मिक मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में एक बार श्रीकृष्ण ने देखा कि ब्रजवासी इंद्रदेव की पूजा की तैयारी में लगे हुए हैं. उन्होंने अपनी मां यशोदा से पूछा कि लोग इतनी श्रद्धा से पूजा क्यों कर रहे हैं. मां यशोदा ने बताया कि इंद्रदेव वर्षा कर हमें पानी और अन्न उपजाने में मदद करते हैं, जिससे हमारी गायें चारा प्राप्त कर सकती हैं. यह सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा कि वर्षा करना तो इंद्रदेव का कर्तव्य है और असल में हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, जो हमें फल-फूल, सब्जियां और चारा प्रदान करता है.
श्रीकृष्ण की सलाह मानते हुए ब्रजवासियों ने इंद्रदेव की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी, जिससे इंद्रदेव क्रोधित हो गए. उन्होंने ब्रज में प्रलयकारी वर्षा शुरू कर दी, जिससे हर जगह जल भराव और त्राहि-त्राहि मच गई. भयभीत ब्रजवासियों ने अपनी रक्षा के लिए श्रीकृष्ण से प्रार्थना की. भगवान श्रीकृष्ण ने सभी की सुरक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया, जिससे ब्रजवासियों ने पर्वत के नीचे आश्रय लिया. कई दिनों की वर्षा के बाद इंद्रदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा की परंपरा चली आ रही है.
डिस्क्लेमर: यह लेख सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसके सही या गलत होने की पुष्टि नहीं करते.