Ekadashi Shradh 2024: एकादशी श्राद्ध है आज, जानें शुभ मुहर्त और पूजा विधि

Ekadashi Shradh 2024: इस वर्ष, एकादशी श्राद्ध का आयोजन विशेष महत्व रखता है. इसे ग्यारस श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है, और इसे पितृ पक्ष के दौरान सबसे पवित्र दिन माना जाता है. मान्यता है कि इस प्रक्रिया से दिवंगत आत्माओं को शांति मिलती है और उनका निरंतर अस्तित्व सुरक्षित रहता है.;

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Ekadashi Shradh 2024: इस वर्ष, एकादशी श्राद्ध का आयोजन विशेष महत्व रखता है. इसे ग्यारस श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है, और इसे पितृ पक्ष के दौरान सबसे पवित्र दिन माना जाता है. इस दिन, श्रद्धालु अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं और तर्पण का आयोजन करते हैं. मान्यता है कि इस प्रक्रिया से दिवंगत आत्माओं को शांति मिलती है और उनका निरंतर अस्तित्व सुरक्षित रहता है. एकादशी श्राद्ध जीवित और मृतकों के बीच एक विशेष संबंध स्थापित करता है.

एकादशी श्राद्ध की विधि

इस दिन प्रातः जल्दी उठकर पवित्र स्नान करें भगवान सूर्य को जल अर्पित करें और अपने घर को साफ रखें फिर, एक ब्राह्मण को आमंत्रित करें और पितृ तर्पण का आयोजन करें. उन्हें भोजन, वस्त्र और दक्षिणा अर्पित करें इस दिन गाय, कौवे, कुत्ते और चींटियों को भी भोजन देना चाहिए. भोजन में काले तिल, दूध और चावल का दान करना अत्यंत फलदायी माना जाता है पिंडदान भी इस दिन पुण्य फल देने वाला माना जाता है. जिन पर पितृ दोष है, वे प्रमुख तीर्थ स्थलों जैसे उज्जैन, गया, प्रयागराज और पुष्कर में पितृ दोष निवारण पूजा करवा सकते हैं.

एकादशी श्राद्ध का मुहूर्त

- कुतुप मुहूर्त: सुबह 11:48 बजे से 12:36 बजे तक ..

- रौहिण मुहूर्त: दोपहर 12:36 बजे से 1:24 बजे तक

- अपराह्न काल: 1:24 बजे से 3:48 बजे तक .

आगामी श्राद्ध की तिथियां

- 29 सितंबर 2024: मघा श्राद्ध, द्वादशी श्राद्ध.

- 30 सितंबर 2024: त्रयोदशी श्राद्ध.

- 1 अक्टूबर 2024: चतुर्दशी श्राद्ध .

- 2 अक्टूबर 2024: सर्वपित्रू अमावस्या.

पितरों को याद करने के उपाय

पितृ पक्ष के दौरान, नियमित रूप से अपने पितरों को जल अर्पित करें. यह जल दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके दोपहर के समय अर्पित किया जाता है, जिसमें काला तिल मिलाया जाता है. जिस दिन आपके पूर्वज का निधन हुआ, उस दिन अन्न और वस्त्र का दान करें और किसी निर्धन को भोजन कराएं इस प्रकार, पितृ पक्ष के सभी कार्य पूर्ण होते हैं.

इस एकादशी श्राद्ध के दौरान अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देना न केवल धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि यह आत्मिक शांति का भी एक मार्ग है.

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